ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम, उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा जारी बर्बर दमनात्मक कार्यवाहियों की कड़ी निंदा करता है और मांग करता है कि प्रदेश सरकार तत्काल इस तरह की कार्रवाईयों पर रोक लगाए और सीएए-एनआरसी आंदोलन में शामिल सभी लोगों को तत्काल रिहा किया जाए और सैंकड़ों निर्दोषों पर लगाए जा रहे झूठे मुकदमों और नोटिसों की प्रक्रिया पर तत्काल रोक लगाई जाए.
सोमवार, 30 दिसम्बर को दिल्ली में हुई एआईपीएफ सचिवालय की बैठक में इस बात पर गहरा अफसोस जाहिर किया गया कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ जनता के गुस्से की आड़ में अल्पसंख्यकों-अंबेडकरवादियों, लोकतांत्रिक- गांधीवादी मूल्यों में विश्वास रखने वाले सभी बुद्धिजीवियों- आंदोलन के प्रति सहानुभूति रखने वालों से चुन चुन कर बदला ले रही है.
एआईपीएफ के नेतृत्वकारी साथियों ने उत्तर प्रदेश के मेरठ, मुजफ्फरनगर, कानपुर, अलीगढ़, में संयुक्त दौरा करते हुए जिस तरह की स्थितियों को पाया उससे स्पष्ट है कि प्रदेश में नागरिकों के न्यूनतम लोकतांत्रिक अधिकार भी समाप्त कर दिए गए हैं. यही नहीं अल्पसंख्यक समुदाय को चुन-चुन कर निशाना बनाया जा रहा है और आंदोलन के प्रति किसी भी तरह की सहानुभूति रखने वालों को गिरफ्तार कर लिया गया है.पूर्व आई जी एस आर दारापुरी,इंसाफ मंच और एआईपीएफ से जुड़े मो.शोएब,दीपक कबीर,सदफ जफर,सीपीआई एम एल केन्द्रीय कमेटी सदस्य मनीष शर्मा,सहित सैंकड़ों साथियों को झूठे आरोपों में गिरफ्तार किया गया है.आज उत्तर प्रदेश आपातकाल से बुरी स्थितियों का सामना कर रहा है.
एआईपीएफ सचिवालय ने मांग की है कि नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ पूरे प्रदेश में पुलिस कार्रवाइयों पर तत्काल रोक लगाई जाए, गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और निर्दोष नागरिकों को उन पर तामील सभी धाराओं को निरस्त करते हुए रिहा किया जाए. पूरे राज्य में जगह जगह हुई हिंसा -गोलीचालन-एक विशेष समुदाय की संपत्ति को नष्ट किए जाने और पुलिस की दमनात्मक कार्यवाहियों की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में समुचित अधिकार प्राप्त न्यायाधीशों की समिति से करवाई जाए.
गिरिजा पाठक,संयोजक, एआईपीएफ.
AIPF के फेसबुक पेज पर मनोज सिंह की पोस्ट से साभार प्रकाशित