अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के वर्किंग ग्रुप ने सरकार से अपील की है कि वह कॉरपोरेट की सेवा मे अंधी होकर देश के किसानों की मांगों से अपना मुंह न मोड़े। कल की वार्ता की सफलता केवल इस बात पर निर्भर है कि ये तीनों खेती के कानून तथा बिजली बिल 2020 रद्द किये जायें। इन कानूनों के रद्द किये जाने की प्रक्रिया के बारे में बहुत चर्चा है। एआईकेएससीसी इस बात को स्पष्ट करना चाहती है कि यह काम एक अध्यादेश द्वारा भी किया जा सकता है और सरकार को कानून बनाने और वापस लेने, दोनों का अधिकर संविधान देता है। इसकी प्रक्रिया न तो समय लेती है और न ही जटिल है। अगर मोदी सरकार के पास इच्छा शक्ति है, तो यह केवल एक या दो दिनों में पूरा किया जा सकता है। मुख्य समस्या भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार की इच्छा शक्ति की है। इसमें मुख्य प्रश्न यह है कि क्या सरकार कॉरपोरेट के साथ खड़ा रहना चाहती है या किसानों के साथ?
एआईकेएससीसी ने कहा है कि सरकार द्वारा इसमें विकल्प की खोज निश्चित तौर पर विफलता को सामने लाएगी। इससे मामला और उलझ जाएगा और देश भर में आंदोलन बढ़ेगा। आज लाखों की संख्या में किसानों ने दिल्ली मे बारिश व कड़कती ठंड का सामना किया, जिससे सभी कैम्पों में उनके कपड़े व बिस्तर भीग गए, पर कैम्पों में किसानों का मूड बहुत उत्साहजनक हैं। किसान जोश के साथ अपने आंदोलन को बढ़ाने में जुटे हुए हैं। सभी विरोध स्थलों पर आंदोलन का समन्वय किया जा रहा है और नयी शक्तियां जुड़ती जा रही हैं।
एआईकेएससीसी ने कहा है कि जो किसान इस संघर्ष में अपनी जान की कुरबानी दे रहे हैं उनकी मृत्यु के लिए केन्द्र सरकार जिम्मेदार है, उसी की निर्देयता के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। सही बात यह है कि ये सभी आत्महत्याएँ नहीं, हत्याएँ हैं। सरकार को इसका जवाब देना चाहिये। पर लोगों की पीड़ा के प्रति सरकार ने अपना संवेदनहीन व निर्देयी चहरा ही सामने किया है।
एआईकेएससीसी की अपील पर और महिलाओं के नेतृत्व में किसानों, मजदूरों, बुद्धिजीवियों ने सावित्री बाई फुले के जन्मदिवस के अवसर पर उनके गरीबों के लिए संघर्ष में योगदान को व उनकी शिक्षाओं को याद किया और उससे प्रेरणा लेते हुए चल रहे किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया।
एआईकेएससीसी मीडिया सेल द्वारा जारी