भारतीय जनता पार्टी ने गुजरात और उत्तराखंड में पूर्ण बहुमत वाले अपने मुख्यमंत्रियों को बदल दिया, लेकिन अब यह बदलाओं का सिलसिला फिर से शुरू होने वाला है लेकिन इस बार भाजपा के निशाने पर अपनी ही पार्टी के मौजूदा विधायक हैं। दरअसल, बीजेपी 2022 में जहां विधानसभा चुनाव होने हैं, उन राज्यों में अपने आधे मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की योजना बना रही है। इसके पीछे का कारण है एंटी इनकंबेंसी को कम करना। यानी ऐसा करके पार्टी सत्ता विरोधी लहर को घटाना चाहती है।
विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं तो टिकट नहीं..
हिन्दुस्तान टाइम्स के अनुसार एक पार्टी सूत्र ने बताया, ‘बीजेपी ने राज्यों में जमीनी स्तर पर सर्वे कराए हैं ताकि लोगों के मिजाज़ का अंदाजा लगाया जा सके। विधायकों को पिछले पांच साल में किए गए अपने काम का रिपोर्ट कार्ड भी जमा करने को कहा गया है, जिसे पार्टी द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट का मिलान करके भी देखा जाएगा। जिन विधायकों का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहेगा, उन्हें इस बार टिकट नहीं दिया जाएगा।
20% से भी कई अधिक विधायकों के टिकट काटे के आसार..
साल 2022 में पंजाब, मणिपुर, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, गोवा, गुजरात और हिमाचल प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने हैं। इन्हीं राज्यों में बीजेपी मौजूदा विधायकों के टिकट काटने की तैयारी कर रही हैं। हालांकि, पिछले विधानसभा चुनाव में भी BJP ने अपने 15-20% विधायकों के टिकट काटे थे। लेकिन सूत्रों की माने तो यह आंकड़ा इस बार काफी ज्यादा हो सकते है क्योंकि लोगों के मन में बीजेपी सरकार के खिलाफ गुस्सा बढ़ गया है। बीजेपी पार्टी ने सभी निर्वाचन क्षेत्रों में सर्वेक्षण किया है जहां सरकार के प्रदर्शन के बारे में लोगों से फीडबैक लिया गया है। विधायकों का टिकट कटने के लिए उनका मूल्यांकन कुछ मापदंडों पर किया जाएगा, जैसे…
- स्थानीय विकास निधि (development funds) का कितना उपयोग किया है।
- गरीबों के उत्थान के लिए कितनी परियोजनाएं चलाई हैं
- महामारी के दौरान पार्टी द्वारा शुरू की गई ‘सेवा ही संगठन’ योजना में उन्होंने कितना योगदान दिया है।
हालांकि यह प्रक्रिया पहली बार नहीं हो रही है, लेकिन इससे यह सवाल नही बदलेगा कि जब बीजेपी को ही अपने विधायकों के कामों पर भरोसा नही तो जनता कैसे करेगी? जब पार्टी को ही अपने कारकर्ताओ के कामों पर संदेह है तो किस आधार पर बीजेपी राज्यों में अच्छे कामों का ढिंढोरा पीटती है। मौजूदा समय में सत्ता विरोधी लहर को काटना भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। इसी वजह से पार्टी ने विजय रूपाणी को हटाकर और भूपेंद्र पटेल को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया। हिन्दुस्तान टाइम्स से एक अन्य सूत्र ने कहा कि टिकट वितरण के लिए प्रदर्शन ही एकमात्र कारक नहीं है। भाजपा को भी ऐसे चेहरे तलाशने होंगे जिनकी स्थानीय जाति-समुदाय में पकड़ हो और चुनाव में अच्छे परिणाम लाने में सक्षम हों।
राजनीति विज्ञान विभाग में कार्यरत प्रोफेसर ने कहा..
एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में कार्यरत प्रोफेसर एमएम सेमवाल कहते हैं, ”विधायकों के टिकट काटने से कई मकसद पूरे होते हैं, जैसे लोगों का ध्यान भटकाना और गुस्सा कम करना.”
अब चुनाव हो और एंटी इनकंबेंसी (Anti Incumbency) का दूर-दूर तक जिक्र भी ना हो। एक प्रथा रही है कि अगर मतदान का औसत ज्यादा हो तो सत्ता पक्ष को नुकसान और अगर मतदान का औसत कम तो सत्ता पक्ष को फायदा। यह किसी चुनाव का आंकलन करने का एक बड़ा अचूक तरीका होता था। बीजेपी पार्टी सत्ता विरोधी लहर यानी एंटी इनकंबेंसी को कम करना चाहती है लेकिन सवाल है की सत्ता विरोधी लहर यानी कौन? जाहिर है सत्ता का समर्थन और विरोधी जनता ही करती है और उसका असर वह अपने क्षेत्र और राज्यों में मतदान का उपयोग कर सरकार बनाते या पलटते है। लेकिन जब सरकारें अच्छा काम करने का दावा कर रही हैं अखबारों में कामों के बड़े-बड़े विज्ञापन निकलवाए जा रहे तो सरकारों को सत्ता विरोधी लहर का डर ही क्यों? क्यों बदलना पढ़ रहा विधायकों का चेहरा?