सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस एस.ए.बोबड़े ने आज कृषि क़ानूनों पर आंदोलन का समाधान न करन के लिए वैसे तो सरकार को कड़ी फटकरा लगाई लेकिन महिलाओं को लेकर उनकी एक टिप्पणी पर विवाद हो गया है। उन्होंने कहा कि वे समझ नहीं पा रहे कि बुजुर्ग और महिलाएँ आंदोलन में क्या कर रहे हैं। उन्हें घर जाने को कहा जाये। इस सबमें उन्हें अंग्रेजी के ‘केप्ट’ शब्द का इस्तेमाल किया जिसका अर्थ ज़बरदस्ती रोकना लगाया जा सकता है। तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है और मुख्य न्यायधीश के बयान को महिला विरोधी बताते हुए पूछा है कि क्या महिलाएँ अपनी मर्जी से आंदोलन में शामिल नहीं हो सकतीं?
पहले जानिये कि क्या कहा सीजेआई ने।
दरअसल, किसानों की ओर से वरिष्ठ वकील एच.एस. फुल्का ने कहा कि बॉर्डर पर एक–डेढ़ लाख लोग बैठे हैं, हजारों की संख्या में लोग अपने जिलों में ही प्रदर्शन कर रहे हैं। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि ‘शांतिपूर्ण तरीके से हर किसी का दिल्ली में स्वागत है, आप उनसे कहें कि सिर्फ अपनी सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए वापस जाएँ। बच्चे, महिलाएं और बुजुर्गों का आंदोलन में शामिल होना जरूरी नहीं है’।
इसपर एच.एस. फुल्का ने दलील दी कि महिलाएँ और बुजुर्ग अपनी मर्जी से आंदोलन में बैठे हैं पर चीफ जस्टिस बोले, ‘मैं यहां रिस्क लेता हूं और एक सीधा संदेश उन्हें देता हूँ। आप महिलाओं और बुजुर्गों से कहें कि CJI चाहते हैं कि आप घर चले जाएँ।’
मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी पर चर्चित महिला नेता और सीपीआई एम.एल पोलित ब्यूरो की सदस्य कविता कृष्णन ने तीखा सवाल उठाया। उन्होंने ट्वीट करके पूछा कि बुज़ुर्ग और महिलाएँ अपनी मर्ज़ी से आंदोलन में शामिल क्यों नहीं हो सकते। कविता ने कहा कि सीजेआई का रुख दरअसल आंदोलन खत्म कराने का एक तरीक़ा है।
Dear CJI – can you maybe get it into your heads that women, the elderly HAVE AGENCY and CHOOSE to be in protests? They're not "kept" by anyone. Anyway we all see what you're doing – orchestrating "stay" & mediation committee to clear protests, only to help the Govt keep the laws. https://t.co/f9E6RAIole
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) January 11, 2021
किसानों के आंदोलन का समन्वय कर रही 7 सदस्यीय समन्वय समिति के सदस्य योगेंद्र यादव ने भी मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि तथ्य यह है कि भारत में, खेती-किसानी में 70% से अधिक श्रम महिलाओं द्वारा किया जाता है।
FACT: In India, more than 70% of the farm labour is done by women.
"Kept!" https://t.co/HzEN7Jhu8X
— Yogendra Yadav (@_YogendraYadav) January 11, 2021
कुछ ऐसा ही सवाल साउथ एशियन सॉलीडेरिटी ने भी उठाया। उसके ट्वीट में चीफ़ जस्टिस की टिप्पणी को साफ़ तौर पर महिला विरोधी बताया गया।
Women are 'kept' in the protest! The CJI shows his disgusting #sexism and #misogyny once again!#FarmersProtests #FarmersDemandJustice https://t.co/j7wzn2oSAJ
— SouthAsia Solidarity (@SAsiaSolidarity) January 11, 2021
ये टिप्पणियाँ बताती हैं कि सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पहली नज़र में भले ही आंदोलन के पक्ष में लग रही हैं, लेकिन आंदोलनकारी अदालत को लेकर बेहद सशंकित हैं। यह संयोग नहीं है कि आंदोलन को संगठित करने वाले किसान नेताओं और संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट आने से इंकार कर दिया है।
तस्वीर लाइव लॉ से साभार।