तेज बहादुर यादव पर सस्पेंस अभी खत्म नहीं हुआ है। वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर पर्चा दाखिल करने वाले सीमा सुरक्षा बल के बरखास्त जवान तेज बहादुर की किस्मत का फैसला अब दिल्ली को करना है। वाराणसी के जिला निर्वाचन अधिकारी और रिटर्निंग ऑफिसर की ओर से उसे मंगलवार को जारी नोटिस और बुधवार को नामांकन खारिज किए जाने के बाद मामला केंद्रीय निर्वाचन आयोग के अधिकारियों की झोली में जा गिरा है। अब दिल्ली में बैठे अधिकारियों की भूमिका का इंतजार है।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग उसका पर्चा खारिज़ करे या स्वीकार करे, दोनों ही परिस्थितियों में जो संदेश जनता के बीच जाएगा उससे मोदी-विरोधी मतदाताओं की एकजुटता कायम होगी क्योंकि बीते 24 घंटे के दौरान उसके समर्थन में काफी इजाफा हुआ है। वाराणसी स्थित जिलाधिकारी कार्यालय के सामने यादव के समर्थक धरने पर बैठ गए हैं। साथ ही देश के विभिन्न इलाकों में सक्रिय सामाजिक संगठन तेज बहादुर का चुनाव प्रचार करने की भी घोषणा कर चुके हैं जिनमें भीम आर्मी का नाम प्रमुख है।
गत 30 अप्रैल तक वाराणसी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के चुनाव में विपक्ष से दमदार उम्मीदवार न होने की बात करने वाले राजनीतिक जानकारों का मानना था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इस बार और भी ज्यादा मतों के अंतर से चुनाव जीतेंगे, लेकिन निर्वाचन आयोग से तेज बहादुर को मिले नोटिस और उसके बाद उपजे असमंजस के हालात ने वाराणसी के राजनीतिक रुझान को रातोरात बदल दिया है। इस घटना से सोशल मीडिया समेत मुख्यधारा की मीडिया में तेज बहादुर को मिली पब्लिसिटी ने उसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में पेश कर दिया है।
साथ ही तेज बहादुर के पर्चा दाखिल करने के बाद वाराणसी और केंद्रीय चुनाव आयोग में भाजपा के बड़े नेताओं की अचानक मौजूदगी और आपत्ति ने जनता के बीच तेज बहादुर के खिलाफ की जा रही एक साजिश की हवा बना दी है। इससे उसके पक्ष में सहानुभूति की लहर पैदा हो गई है और लोग निर्वाचन आयोग के फैसले पर नज़र गड़ाए हुए हैं।
इन हालात में अगर तेज बहादुर का पर्चा दिल्ली से खारिज भी हो जाता है तो इसके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा की साजिश का संदेश जनता के बीच जाएगा। यह मोदी को नुकसान पहुंचाते हुए गैर-भाजपाई मतदाताओं को गोलबंद करने की क्षमता रखता है। जाहिर तौर से इसका लाभ मैदान में सबसे प्रभावशाली विपक्षी उम्मीदवार को हो सकता है।
यदि किसी कारणवश तेज बहादुर का पर्चा खारिज़ नहीं होता है तो वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ एक सशक्त उम्मीदवार के रूप में सामने आएगा गैर-भाजपाई मतों के बिखराव को रोकेगा। इन हालात में भाजपा के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी को तेज बहादुर से कांटे की टक्कर मिल सकती है जिसमें उनकी हार भी हो सकती है।
बहादुर का पर्चा खारिज होने की स्थिति में बहुत संभव है कि समाजवादी पार्टी शालिनी यादव को ही अपना उम्मीदवार बनाए रखे, जिसे उसने बहादुर के लिए बैठा दिया था। ऐसे में तेज बहादुर के मामले पर समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की ओर से बरती गई चुप्पी उनकी डमी उम्मीदवार शालिनी यादव को नुकसान पहुंचा सकती है।
फिलहाल स्थिति यह है कि केंद्रीय निर्वाचन आयोग चाहे जो फैसला दे, यह प्रकरण नरेंद्र मोदी के खिलाफ ही करवट लेता दिख रहा है।