सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को बताया गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े 77 आपराधिक मामलों को वापस लिया, और वापस लेने का कोई कारण भी नही बताया गया है। इन मामलों में कुछ मामले ऐसे है जो आजीवन कारावास से दंडनीय अपराधों से संबंधित हैं। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार को सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों का जल्द निपटारा किए जाने का आग्रह करने से संबंधित मामले में नियुक्त किए गए एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने दी।
बता दें की , सुप्रीम कोर्ट ने हल ही में राजनीति में बढ़ रहे अपराधीकरण को लेकर महत्वपूर्ण फैसला दिया था। जिसमे कहा गया था की कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश संबंधित हाई कोर्ट की पूर्व सहमति के बिना अपने एमपी, एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामले वापस नहीं ले सकता है। इस फैसले के बाद, वापस लिए गए अपराधिक मामलों को लेकर राज्यों से स्टेटस रिपोर्ट मांगी गई। यूपी सरकार की तरफ से दी गई रिपोर्ट 24 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में पेश की गई।
वापस लिए गए मामले डकैती के अपराधों से संबंधित..
एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया ने अपराधिक मामलों की एक रिपोर्ट दाखिल की, जिसमें कहा गया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने मुजफ्फरनगर दंगों से जुड़े कुल 77 मामले सीआरपीसी की धारा 321 के तहत वापस ले लिए हैं। राज्य सरकार द्वारा सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मामले को वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया गया है। वहीं रिपोर्ट में बता गया की 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के संबंध में 510 आपराधिक मामले दर्ज किए गए थे। इस सभी दर्ज मामलों में 175 मामले में चार्जशीट दाखिल किया गया, 165 मामलों में अंतिम रिपोर्ट पेश की गई तो वहीं 170 मामलों को खारिज कर दिया गया। एमिकस क्यूरी हंसरिया ने यह खुलासा भी किया की वापस लिया गए मामलों में कई मामले ऐसे है जो आईपीसी की धारा 397 के तहत डकैती के अपराधों से संबंधित हैं, और इनमे आजीवन कारावास का प्रावधान है।
रिपोर्ट में हंसरिया ने सुप्रीम कोर्ट सुझाव दिया कि वह राज्य सरकार को सभी मामलों पर अलग-अलग कारण बताते हुए आदेश जारी करने को कहे। इसके अलावा राज्य सरकार से कहा जाए कि वह यह बताए कि क्या यह मुकदमा बिना किसी ठोस आधार के, कदाचार के तहत दर्ज कराया गया था।
राज्य सरकारें सीआरपीसी की धारा 321 की शक्ति का करती हैं दुरुपयोग…
आपको बता दें की इससे की सुनवाई में वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने कोर्ट को जानकारी दी थी कि यूपी सरकार कई वर्तमान और पूर्व जनप्रतिनिधियों के ऊपर मुजफ्फरनगर दंगे में लंबित मुकदमों को वापस लेने की तैयारी में है। उन्होंने बताया था की तमाम राज्य सरकारें सीआरपीसी की धारा 321 के तहत मिली मुकदमा वापस लेने की शक्ति का दुरुपयोग करती हैं। कई राज्यों में जनप्रतिनिधियों के खिलाफ मुकदमे इसी तरह वापस लिए गए हैं।
कर्नाटक सरकार ने भी ऐसा ही किया..
एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसरिया द्वारा दाखिल रिपोर्ट में कोर्ट को दूसरे राज्यों के बारे में भी जानकारी दी गई है। हंसारिया की रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा किया गया है कि कर्नाटक सरकार ने भी बिना कोई कारण बताए 62 मामले वापस ले लिए।
अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर 2017 में एक फैसले के बाद से ही शीर्ष अदालत, विशेष अदालतों की स्थापना करके एक साल के भीतर सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे के पूरा होने की निगरानी कर रही है। इसी मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में इन दिनों सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मुकदमा के तेज़ी से निपटारे के लिए विशेष अदालतों के गठन पर सुनवाई चल रही है।