भक्तजन बहुत जोर-शोर से फैला रहे हैं कि आंतरिक मामले में हस्तक्षेप करने वाला ट्वीट करने के लिए पॉप स्टार रिहाना को 2.5 मिलियन डॉलर दिए गए थे। ढाई मिलियन डॉलर कोई छोटी-मोटी रकम नहीं है जो ऐसे ही दे दी जाएगी। और देने वाला भी नफा नुकसान समझ कर देगा। फिर भी इससे तकलीफ उनको है जो ट्रोल सेना रखते हैं और ट्रोल सेना पर पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी की एक पूरी किताब है, ‘आई ऐम अ ट्रोल।’ इसमें लगाए गए आरोपों का तो कोई जवाब नहीं दिखा पर एक साथ एक ही मैटर ट्वीट किए जाने के मामले दिखते रहे हैं। इससे पैसे देकर ट्वीट करवाने के आरोपों को दम मिलता है। इसके बावजूद एक ट्वीट के लिए इतनी भारी राशि दिए देने की खबर और उसपर यकीन करना मुश्किल है।
why aren’t we talking about this?! #FarmersProtest https://t.co/obmIlXhK9S
— Rihanna (@rihanna) February 2, 2021
मुझे लगता है कि इंटरनेट बंद किया जाना गंभीर मामला है। मेरे ख्याल से यह एक सामान्य सा ट्वीट था जो मुख्य रूप से इंटरनेट काटने से संबंधित है। आज के जमाने में इंटरनेट काटने का मतलब रिहाना ने जैसा समझा होगा वैसा भारत में आम लोगों के लिए शायद नहीं है। इसीलिए यहां उसका विरोध नहीं है। और भक्तों को परेशानी का अंदाजा ही नहीं है। दूसरी ओर, रिहाना को अटपटा लगा है क्योंकि आज के समय में इंटरनेट काटना बिजली-पानी काटने से बर्बर है। बिजली-पानी कट जाए तो टैंकर में आ सकता है, जेनरेटर / इनवर्टर से काम चल सकता है। पर किसी इलाके में इंटरनेट काट दिया जाए तो आज की तारीख में उसका विकल्प नहीं है। इंटरनेट पर ‘रिहाना’ गूगल करने वाले अभी रिहाना को नहीं समझेंगे। भारत में तो अभी मीडिया को ही समझ में नहीं आ रही है – खबर सीएनएन ने की है।
इस साधारण ट्वीट से सरकार मानो हिल गई। नुकसान की भरपाई के लिए सारे घोड़े खोल दिए गए। तामाम नामुमकिन मुमकिन हुए। और इसी में यह भी रिहाना को 80 करोड़ रुपए दिए गए थे। अव्वल तो यह सरकार पैसा नहीं है और जो लोग सरकारी पैसे की बर्बादी से परेशान नहीं होते हैं वे इस ट्वीट या उसके लिए दिए गए पैसे से परेशान हो गए जबकि ट्वीट सीएनएन की खबर को किया गया था और विदेशों में बदनामी से बचना हो तो विदेशी रिपोर्टर्स को देश निकाला दे दिया जाना चाहिए या उनकी खबरें सेंसर की जानी चाहिए। इमरजेंसी का विरोध करने वाले लोगों को सबकुछ इमरजेंसी जैसा लगता है, व्यवहार भी वैसा ही है पर स्वीकार नहीं करना है। पर वह दूसरा मुद्दा है। जहां तक आम लोगों या सरकार समर्थकों के परेशान होने की बात है, यह वाजिब है। वे तो यहां दो रुपए ट्वीट का ही दर जानते हैं। फिर भी मैं यह जानने में लगा था कि आखिर कोई इतने पैसे एक ट्वीट के लिए क्यों देगा। इतने पैसे से बहुत सारे काम हो सकते थे।
Lest you forget:
It was @ThePrintIndia which spread canards about the toolkit posted by @GretaThunberg & created an entire conspiracy out of it while even claiming Rihanna was paid $2.5mn.
All of this was done quoting unnamed “sources”.@ShekharGupta will do anything for BJP.
— Saket Gokhale (@SaketGokhale) February 6, 2021
“सूत्रों के अनुसार, कानाडा आधार वाले संगठन पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन (पीजेएफ) ने कनाडा आधार वाले राजनीतिक नेताओं और ऐक्टिविस्टों के समर्थन से वैश्विक अभियान शुरू करने में अहम भूमिका निभाई”। जो लोग भारतीय एजेंसियों के रडार पर है उनमें पीजेएफ के संस्थापक एमओ धालीवाल, पीआर (जनसंपर्क) फर्म स्काईरॉकेट की निदेशक मैरिना पैटरसन शामिल हैं जो पीआर फर्मों के साथ रिलेशनशिप मैनेजर के रूप में काम कर चुके (चुकी) हैं। इनके साथ, कनाडा आधार वाले वर्ल्ड सिख ऑर्गनाइजेशन और पीजेएफ के सह संस्थापक तथा कनाडा के सांसद जगमीत सिंह भी शामिल हैं। सूत्रों के अनुसार कथित रूप से स्काईरॉकेट ने पॉप स्टार रिहाना को भारत में किसानों के विरोध में ट्वीट करने के लिए 2.5 मिलियन डॉलर का भुगतान किया। सूत्रों ने कहा कि धालीवाल कनाडा आधार वाले सिख हैं जो एक स्वघोषित सिख अलगाववादी हैं और जगमीत सिंह के भी करीब हैं।”
यह दिलचस्प है कि व्हाट्सऐप्प पर फर्जी खबरें चलाने और ट्वीटर पर ट्रोल सेना का उपयोग करने वाले तमाम मौकों पर चुप रहे हैं और दो कौड़ी के घटिया ट्वीट और ट्वीट करने वालों पर चुप रहने वालों को एक ट्वीट 2.5 मिलियन डॉलर का लग रहा है और कुछ कुछ रुपल्ली पाने वाले फैला रहे हैं कि वैसे ही काम के लिए लिए 2.5 मिलियन डॉलर भी दिए लिए जा सकते हैं। काश वे अपनी गरीबी, अपना शोषण भी समझ पाते या फिर समझ पाते कि उनसे क्या करवाया जा रहा है। विदेशों में बदनामी की चिन्ता है पर विदेशी अखबारों के रिपोर्टर्स के खिलाफ नहीं बोलने का काम नहीं दिया जाता है पर उन्हें समझ में भी नहीं आता है।
पुनश्च: द प्रिंट ने पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन का खंडन छापकर अपना पत्रकारिता ‘धर्म ‘निभाया है। यह वह शातिर तरीक़ा है जिसमें पहले झूठ को प्रचारित करो, फिर कहीं कोने में खंडन छाप दो। जबकि पहली पड़ताल में इस झूठ का पता लग सकता है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।