सोशल मीडिया बहुत ताक़तवर है. लेकिन क्या ये सोशल विज्‍़डम से भी ज्यादा ताक़तवर है?


इस देश की करोड़ों-करोड़ जनता आज भी सोशल मीडिया से दुनिया नहीं देखती


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सौरभ बाजपेयी

जब सोशल मीडिया नहीं था तब भी इस देश की जनता बड़े-बड़ों के दर्प चूर कर देती थी. टीवी और अखबारों पर इंडिया चाहे कितना भी शाइन क्यों न करता हो, जनता ने अटल बिहारी सरकार पर जो चोट मारी तो सहलाते भी नहीं बना. इंदिरा गाँधी को लगा कि जनता उनकी ज़रखरीद गुलाम है तो जनता ने जो पटकनी दी कि होश ठिकाने आ गए. तीन साल के भीतर ही इंदिरा-विरोधी जिन लोगों ने जनता की आकांक्षाओं को दरकिनार कर सत्ता की बेशर्म बंदरबांट करनी शुरू कर दी, जनता ने अर्श से फिर फर्श पर ला पटका. 

यह सब इसलिए संभव हुआ क्योंकि सोशल विज्‍़डम क़ायम है. भारत का लोकतंत्र इसी सोशल विज्‍़डम पर क़ायम है जिसको प्रभावित करने की एक सीमा है और उस सीमा पार जाकर जो भी जनता को मूर्ख समझ बैठता है, वो ही दरअसल सबसे बड़ा मूर्ख बन जाता है और फ़िलहाल इस मामले में मोदीजी और अमित शाह के बराबर कोई नहीं है. 

आप सोशल मीडिया से इस देश को मत देखिये, अपने आस-पास देखिये. क्या आपको लगता है कि जनता में युद्ध को लेकर कोई उन्माद है? ज्यादा दूर नहीं कारगिल के दिनों को याद करिए जब हर गली-मोहल्ले, नुक्कड़-चौराहे पर लोग कारगिल के लिए मदद इकठ्ठा कर रहे थे. हर कहीं लोगों में देश के लिए अपना सर्वस्व कुर्बान कर देने वाला जज्बा था. लेकिन पुलवामा से सर्जिकल स्ट्राइक और उससे लेकर आज तक क्या आपको जनता का वो जोश दिखाई दे रहा है? 

अगर नहीं तो उसकी साफ़ वजह है कि सोशल विजडम से लोगों को यह पता है कि मोदीजी अपनी असफलताओं को युद्धोन्माद के अँधेरे से ढकने की कोशिश कर रहे हैं. सत्तर सालों में यह शायद पहला ऐसा मौक़ा है जब लोग अपनी सेना के साथ खड़े हैं लेकिन सरकार की नीयत पर उनको गहरा शक है. अपने सोशल विज्‍़डम से लोग देख रहे हैं मोदीजी सैनिकों की लाशों पर अपनी सत्ता बनाये रखने की इबारत लिख रहे हैं. लोगों को शक है कि यह सरकार देश की सुरक्षा जैसे अहम् मसलों पर भी भला सच बोलती है या नहीं?

इस देश की करोड़ों-करोड़ जनता आज भी सोशल मीडिया से दुनिया नहीं देखती. सुस्त और स्वार्थी शहरी मध्यवर्ग भले ही सोशल मीडिया की दूरबीन का आदी हो गया हो, वोट डालने वाली आम जनता “नफ़ा-नुकसान” के सूक्ष्मदर्शी से सरकार का आकलन करती है. भारतीय लोकतंत्र का यह जो सोशल विजडम है वो ऐसा अंडरकरंट है जिसे समझने के लिए मोदीजी को अपनी आँखों से घमंड का जाला साफ़ करना होगा. एक बार अगर वो यह कर सके तो वो देखेंगे कि उनके झूठ-फरेब से इस देश की जनता ऊब चुकी है और धीरे-धीरे उनका पराभव निकट आता जा रहा है.