जुलियन असांज की गिरफ्तारी: यह ‘’लोकतंत्र जैसा आभास देने वाला फासीवाद’’ है!

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स्‍लावोज़ जिज़ेक

आखिरकार वही हुआ जिसकी आशंका थी- जुलियन असांज को इक्‍वेडर के दूतावास से घसीट कर बाहर लाया गया और गिरफ्तार कर लिया गया। इसमें कोई अचरज नहीं होना चाहिए: लंबे समय से इस बात के संकेत मिल रहे थे।

हफ्ते दो हफ्ते पहले विकीलीक्‍स ने उनकी गिरफ्तारी का पूर्वानुमान लगाया था और इक्‍वेडर के विदेश मंत्रालय ने इस पर जो प्रतिक्रिया दी थी, आज हम सब जानते हैं कि वह साफ़ झूठ था। इस खेल में चेल्सिया मैनिंग की हुई हालिया गिरफ्तारी एक और पहलू है (जिसे मोटे तौर पर मीडिया ने अनदेखा किया है)। उन्‍हें विकीलीक्‍स के साथ उनके रिश्‍तों के बारे में जबरन सूचना उगलवाने के लिए हिरासत में लिया गया है। असांज यदि (और जब भी) अमेरिका के हाथ लग गए, उनके खिलाफ मुकदमे में मैनिंग के बयान का इस्‍तेमाल किया जाएगा।

इस गिरफ्तारी के संकेत पिछले लंबे समय से असांज के सुनियोजित चरित्र हनन अभियान से भी मिल रहे थे। यह कुत्‍सा अभियान कुछ महीने पहले अकल्‍पनीय स्‍तर तक गिर गया था जब उसने इन अपुष्‍ट अफवाहों को जन्‍म दिया कि उनकी देह से आ रही बदबू और गंदे कपड़ों के चलते इक्‍वेडर उनसे निजात पाना चाहता है।

असांज के खिलाफ हमलों के पहले चरण में उनके पुराने दोस्‍तों और सहयोगियों ने सार्वजनिक रूप से दावा किया कि विकीलीक्‍स की शुरुआत ठीकठाक हुई थी लेकिन असांज की राजनीतिक पक्षधरता के चलते उसका पतन हुआ (असांज के हिलेरी विरोधी विचार, रूस के साथ उनके संदिग्‍ध रिश्‍ते…)। इसके बाद उन पर सीधे आरोप मढ़े गए: वे सनकी और अहंकारोन्‍मादी हैं। उन्‍हें सत्‍ता और नियंत्रण की ख़ब्‍त है।

असांज, और सनकी? जब आप लगातार एक ऐसे अपार्टमेंट में रह रहे हों जहां चारों ओर से आपकी जासूसी की जा रही हो, लगातार आपके ऊपर गुप्‍तचर सेवाएं नज़र रख रही हों, तो कौन नहीं सनक जाएगा? अहंकारी उन्‍माद? जब सीआइए का मुखिया (अब भूतपूर्व) कह रहा हो कि आपकी गिरफ्तारी उसकी प्राथमिकता है, तो क्‍या इसका आशय यह नहीं निकलता कि आप कम से कम कुछ लोगों के लिए तो ‘’बड़ा’’ खतरा हैं? किसी गुप्‍तचर संगठन के जासूस के जैसा व्‍यवहार? लेकिन विकीलीक्‍स तो वाकई एक जासूसी संगठन है, फ़र्क बस इतना है कि वह जनता के हित में है, लोगों को यह बताने का काम करता है कि उनके पीठ पीछे क्‍या कुछ चल रहा है।

एक ज़रूरी सवाल पर आते हैं: आखिर अभी ही क्‍यों? मेरे खयाल से इस सब के पीछे केवल एक नाम है: कैम्ब्रिज एनालिटिका- यह नाम असांज की पहचान है, कि वे किसके खिलाफ खड़े हैं, और यह बड़े निजी निगमों और सरकारी एजेंसियों के बीच के संबंधों को बताता है।

याद करें कैसे अमेरिका के चुनाव में एक रूसी की संलिप्‍तता का मुद्दा अचानक इतना बड़ा बन गया था- आज हमें पता है कि रूसी हैकरों (असांज सहित) ने लोगों को ट्रम्‍प की ओर नहीं धकेला था। इसके बजाय हमारी खुद की डेटा-प्रसंस्‍करण एजेसियों ने राजनीतिक ताकतों के साथ गठजोड़ कर के ट्रम्‍प के लिए माहौल बनाया था।

इसका अर्थ यह नहीं कि रूस और उसके सहयोगी निर्दोष हैं: उन्‍होंने ठीक उसी तरह चुनाव नतीजों को प्रभावित करने की कोशिश की जैसा अमेरिका दूसरे देशों के मामले में करता आया है (और अमेरिका जब ऐसा करता है तो उसे लोकतंत्र की मदद का नाम दिया जाता है)। इसका मतलब तो यह हुआ कि जो भीमकाय भेडि़या हमारे लोकतंत्र को नोचने-खसोटने में लगा हुआ है वह क्रेमलिन में नहीं, यहीं है- और असांज भी तो लगातार यही दावा कर रहे थे!

सवाल उठता है कि यह भीमकाय भेडि़या ठीक-ठीक किस जगह पर है? नियंत्रण और छल-कपट के इस समूचे परिदृश्‍य को समझने के लिए हमें निजी निगमों और राजनीतिक दलों के बीच के संबंधों (कैम्ब्रिज एनालिटिका का मामला) के पार जाकर यह देखना होगा कि गूगल, फेसबुक जैसी डेटा-प्रसंस्‍करण कंपनियां और राज्‍य की सुरक्षा एजेंसियां कैसे एक-दूसरे के भीतर घुसी हुई हैं।

हमें चीन को नहीं, खुद को देखकर सदमे में आ जाना चाहिए कि हमने भी उन्‍हीं बंदिशों को अपना लिया है जबकि हम अब भी यह मानकर चल रहे हैं कि हम पूरी तरह आजाद हैं और हमारा मीडिया हमें अपने लक्ष्‍यों को साकार करने में मदद कर रहा है। चीन में कम से कम लोगों को इस बात का अहसास तो है कि उन्‍हें नियंत्रित किया जाता है।

इससे जो व्‍यापक तस्‍वीर उभरती है, उसे यदि हम बायोजेनेटिक्‍स की हालिया खोजों के साथ जोड़ दें (मानव मस्तिष्‍क की वायरिंग, इत्‍यादि), तो हमारा साक्षात्‍कार सामाजिक नियंत्रण के उन भयावह और नए स्‍वरूपों से होगा जिनके आगे 20वीं सदी का अधिनायकवाद नियंत्रण के एक औजार के बतौर तुलनात्‍मक रूप से आदिम और फूहड़ लगने लगेगा।

इस नए सैन्‍य-ज्ञानात्‍मक परिसर की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि अब जनता के प्रत्‍यक्ष और स्‍वाभाविक दमन की कोई जरूरत नहीं रह गई है। अब लोगों को बस इस बात का अहसास कराना है कि वे आजाद हैं और उनका जीवन स्‍वायत्‍त है, बस ऐसा कर के बड़ी आसानी से उन्‍हें नियंत्रित किया जा सकता है और इच्छित दिशा में हांका जा सकता है। विकीलीक्‍स अध्‍याय का यह एक और अहम सबक है: हमारी गुलामी सबसे ज्‍यादा खतरनाक तब होती है जब उसी को हम अपनी आजादी का माध्‍यम समझने लगते हैं- सूचना-संचार के अबाध प्रवाह से ज्‍यादा मुक्‍त और क्‍या चीज़ हो सकती है, जो प्रत्‍येक को अपने विचार सार्वजनिक करने और लोकप्रिय करने की छूट देती हो और अपनी स्‍वतंत्रेच्‍छा के हिसाब से आभासी समुदाय बनाने की आजादी देती हो?

हमारे समाजों में चुनने की आज़ादी और रियायत चूंकि सर्वोच्‍च मूल्‍य के रूप में स्‍थापित हैं, लिहाजा सामाजिक नियंत्रण और वर्चस्‍व का स्‍वरूप ऐसा नहीं होना चाहिए जो व्‍यक्ति की आजादी का अतिक्रमण करते हुए प्रत्‍यक्ष दिखायी दे। उसे व्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के निजी अनुभव का हिस्‍सा जान पड़ना चाहिए, तभी वह कायम भी रह पाएगा। आखिर वेब पर निर्बाध रूप से सर्फिंग करने से ज्‍यादा आजादी और किस बात की हो सकती है? बिलकुल इसी तर्ज पर ‘’लोकतंत्र जैसा आभास देने वाला फासीवाद’’ आज अपना काम कर रहा है।

इसी वजह से डिजिटल नेटवर्क को निजी पूंजी और राज्‍यसत्‍ता के नियंत्रण से पूरी तरह बाहर रखना अपरिहार्य है। उसे सार्वजनिक विमर्श के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए। असांज ने अपनी किताब (आश्‍चर्यजनक रूप से जिसकी उपेक्षा कर दी गई) वेन गूगल मेट विकीलीक्‍स में बिलकुल सही लिखा है: आज हमारी जिंदगी कैसे नियामित है और कैसे इस नियमन को हम अपनी आजादी के रूप में अनुभव करते हैं, यह समझने के लिए हमें अपने सामूहिक संसाधनों का नियंत्रण कर रहे निजी निगमों और राजकीय एजेंसियों के संदिग्‍ध संबंधों पर ध्‍यान केंद्रित करना होगा।

अब आप समझ सकते हैं कि असांज का मुंह क्‍यों बंद करना पड़ा: कैम्ब्रिज एनालिटिका कांड के सामने आने के बाद सभी सत्‍ताधारियों ने मिलकर कोशिश की कि इसे कुछ निजी निगमों और राजनीतिक दलों के विशिष्‍ट ‘’दुरुपयोग’’ का मामला बनाकर निपटा दिया जाए- लेकिन सवाल उठता है कि इन सब के बीच राज्‍य खुद कहां है? वह राज्‍य, जो ‘’डीप स्‍टेट’’ का आधा अदृश्‍य हिस्‍सा है?

असांज खुद को जनता का और जनता के हित वाला जासूस मानते हैं। वे सत्‍ताधीशों के हित जनता की जासूसी नहीं कर रहे, वे जनता के हित सत्‍ता में बैठे लोगों की जासूसी कर रहे हैं। इसीलिए उनकी मदद अगर कोई करेगा तो वे हम होंगे, हम यानी जनता। केवल हमारी एकजुटता और दबाव बनाने से ही वे आसन्‍न संकट से बच सकते हैं। अकसर हम पढ़ते हैं कि कैसे सोवियत रूस की गुप्‍तचर सेवा न सिर्फ अपने गद्दारों को दंडित करती थी (भले उसमें दशकों लग जाएं) बल्कि दुश्‍मन के हाथों अपने आदमी के पकड़े जाने पर उसे मुक्‍त करवाने के लिए पूरी जान भिड़ा देती थी। असांज के पीछे कोई राज्‍यसत्‍ता नहीं है- तो आइए हम वह करें जो सोवियत की गुप्‍तचर सेवा करती थी। चाहे कितना ही समय क्‍यों न लगे, आइए उनके लिए लड़ा जाए!

विकीलीक्‍स तो महज एक शुरुआत है। हमारा लक्ष्‍य माओ के विचार से प्रेरित होना चाहिए: हजार विकीलीक्‍स को खिलने दो। जिस हड़बड़ी और घबराहट में सत्‍ताधीशों ने- जो हमारे डिजिटल संसाधनों को नियंत्रित करते हैं- असांज पर प्रतिक्रिया दी है, वह इस बात का सबूत है कि असांज ने उनकी दुखती रग पर उंगली रख दी थी।

इस जंग में हमारे ऊपर कई अनुचित हमले भी होंगे। हम पर आरोप लग सकता है कि हम दुश्‍मन के हाथों में खेल रहे हैं (जैसा आरोप असांज पर लगाया गया कि वे पुतिन के लिए काम कर रहे थे), लेकिन हमें अब इन सब की आदत डाल लेनी चाहिए। हमें पलटवार करना सीखना होगा और सत्‍ता के दोनों पक्षों के अंतर्विरोधों को बेरहमी से इतना तीखा करना होगा कि सब भरभरा कर एक साथ गिर पड़ें।


यह लेख independent.co.uk से साभार प्रकाशित है। अनुवाद अभिषेक श्रीवास्‍तव ने किया है।