जम्मू और कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद वहां के ज़मीनी हालात का जायज़ा लेने गए सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के एक दल को यहां प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में दस मिनट की एक वीडियो फिल्म दिखाने से मना कर दिया गया। पहले प्रेस कॉन्फ्रेंस के साथ वीडियो फिल्म का प्रदर्शन होना तय था, लेकिन प्रेस क्लब के प्रबंधन ने वीडियो दिखाने की अनुमति नहीं दी।
After much of the mainstream media becomes the propaganda arm of the govt, even the Press Club falls in line. It denies permission for showing videos of the situation in Kashmir. After cutting communications of Kashmir, imposing curfew, govt want us not to see Kashmir! https://t.co/80zDoZSXO0
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 14, 2019
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माले) की नेता कविता कृष्णन, अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़, एनएपीएम के विमल भाई और अन्य की एक टीम जम्मू-कश्मीर में पांच दिन बिताकर आयी है। आज प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में इन्होंने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर के वहां के हालात के बारे में बताया। इन्होंने दस मिनट की एक फिल्म बनायी है जिसमें वहां के लोगों के बयानात शामिल हैं लेकिन उनके चेहरों को छुपा लिया गया है।
इसी फिल्म के प्रदर्शन से प्रेस क्लब प्रबंधन ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसके ऊपर काफी दबाव है और उसके ऊपर निगरानी रखी जा रही है। ज्यां द्रेज़ ने अपने संबोधन में यह बात वहां जुटे लोगों को बतायी। क्लब के प्रबंधन ने लिखित में कुछ नहीं दिया। अनौपचारिक रूप से सरकार के दबाव की बात स्वीकार की गयी और फिल्म को रुकवा दिया गया।
Watch the short film – Kashmir Caged – based on footage we collected in Kashmir here. Press Club of India wouldn't let us show it on their premises. But do watch and share. https://t.co/93Ir9un5k3
— Kavita Krishnan (@kavita_krishnan) August 14, 2019
प्रेस क्लब के प्रबंधन ने पहली बार ऐसी हरकत नहीं की है। इससे पहले भी क्लब में कश्मीर के मसले पर तीन साल पहले बवाल हो चुका है जिसमें क्लब के प्रबंधन के ऊपर सरकारी दबाव खुलकर सामने आया था। कश्मीर पर आयोजित एक कार्यक्रम में कथित रूप से कश्मीर की आज़ादी को लेकर नारे लगाए गए थे जिसके बाद एक शिकायत पर दिल्ली युनिवर्सिटी के प्रोफेसर और क्लब के सदस्य अली जावेद के खिलाफ़ पुलिस ने इस बिनाह पर मुकदमा कायम कर लिया था कि कार्यक्रम के लिए उन्होंने सभागार बुक करवाया था।
इस मसले पर तत्कालीन प्रबंधन और प्रेसिडेंट राहुल जलाली ने न केवल मामले से पल्ला झाड़ लिया था बल्कि अली जावेद की सदस्यता भी समाप्त कर दी थी। इसी घटना के बाद से प्रेस क्लब का प्रबंधन ऐसे कार्यक्रमों और प्रेस कॉन्फ्रेंसों को लेकर सख्त हो गया था और सभागार बुक करवाने की प्रक्रिया को कठोर बना दिया गया था।
राहुल जलाली के बाद चुनकर आया प्रबंधन न केवल अलोकतांत्रिक निकला बल्कि इसके निर्वाचित पदाधिकारियों उसने क्लब पर लंबे समय से आरएसएस समर्थित पत्रकारों द्वारा की जा रही कब्ज़े की कोशिशों को भी संरक्षण दिया। इसका पता गौतम लाहिड़ी के पिछले कार्यकाल में हुए कार्यक्रमों की सूची से चलता है, जिसमें गोरक्षा अभियान के कार्यक्रमों से लेकर गौरी लंकेश की हत्या पर परदा डालने के उद्देश्य से रामबहादुर राय द्वारा की गई प्रेस कॉन्फ्रेंस और भाजपा सांसद मनोज तिवारी का नाच-गाना रहा। इस प्रबंधन के कुकृत्यों का विवरण मीडियाविजिल पहले प्रकाशित कर चुका है:
कौन तोड़ेगा दुर्गद्वार को? प्रेस क्लब में गुजरात मॉडल वाले ‘निर्वाचित’ प्रबंधन की अंतर्कथा!
प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में सरकारी संरक्षण, निगरानी और दबाव का पहला अध्याय कायदे से संदीप दीक्षित के कार्यकाल में लिखा गया जब रक्षा मंत्रालय के दिए पैसे यहां ब्रह्मोस मिसाइल की प्रतिकृति लगायी गयी और और ऊपर का सभागार बनवाया गया। उसके बाद से अब तक चुनी गई सभी प्रबंधन कमेटियां कमोबेश उसी ढर्रे पर चल रही हैं। कुछ सदस्यों का मानना है कि अब भी प्रेस क्लब के चुनाव में संदीप दीक्षित का ही दखल रहता है और वे किसी न किसी तरीके से अपने समर्थित पैनल को चुनाव में जितवा देते हैं।
प्रेस क्लब में 2018 में हुए चुनाव इस आरोप की ताकीद करते हैं जब चुनाव की तैयारियों के लिए बने गौतम लाहिड़ी के पैनल सदस्यों के वॉट्सएप समूह में संदीप दीक्षित भी सदस्य के रूप में मौजूद थे जबकि वे नौकरी दिल्ली के बाहर कर रहे थे।
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लाहिड़ी के कार्यकाल में प्रेस क्लब के कुछ वरिष्ठ पत्रकारों के ऊपर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई थी और कमेटी में चुनी गई एक महिला पत्रकार को एकतरफा तरीके से निष्कासित किया गया था। उस कार्यकाल में अनुशासनात्मक सब-कमेटी का प्रभार अनंत बगैतकर के पास था। पिछले चुनाव में लाहिड़ी ने बगैतकर को ही अध्यक्ष पद के लिए लड़वाया और इस बार वे क्लब के अध्यक्ष हैं।
इससे पता चलता है कि कैसे देश में पत्रकारों की सबसे बड़ी संस्था प्रेस क्लब ऑफ इंडिया को समय के साथ एक खास किस्म के पत्रकारों के समूह ने सरकार के दबाव में लाकर यहां लोकतंत्र का गला घोंटने का काम किया है। आज की घटना इस बात की ताकीद करती है कि प्रेस क्लब के प्रबंधन पर आरएसएस की सरकार का कब्ज़ा पूरा हो चुका है।