प्रेस क्‍लब में निरंकुश प्रबंधन का नंगा नाच, The Hindu के वरिष्‍ठ पत्रकार को कानूनी नोटिस


प्रेस क्‍लब ने प्रबंधन से असहमत सदस्‍यो को चुप कराने के लिए उनके ऊपर मुकदमेबाजी का रास्‍ता चुना है


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प्रेस क्‍लब ऑफ इंडिया में 15 दिसंबर को हुए चुनाव के बाद आए नए निज़ाम को लेकर जैसी आशंकाएं जतायी जा रही थीं, वे अब ज़मीन पर साफ़ दिखाई देने लगी हैं। पिछले कुछ साल से पत्रकारों और गैर-पत्रकारों के मिलेजुले एक ही गिरोह द्वारा चलाए जा रहे प्रबंधन ने नई कमेटी के पदभार संभालने के बाद सबसे पहले भड़ास4मीडिया के संपादक यशवंत सिंह को निष्‍कासित करने का नोटिस थमाया। अब इस कमेटी ने दि हिंदू के वरिष्‍ठ पत्रकार निर्निमेष कुमार के ऊपर छह लाख के हर्जाने का मुकदमा ठोक दिया है।

निर्निमेष कुमार प्रेस क्‍लब के उन वरिष्‍ठ सदस्‍यों में एक हैं जो पिछले एक दशक से लगातार हर चुनाव में विभिन्‍न पदों पर खड़े होते रहे हैं और हर चुनाव में उनकी हार हुई है। गौरतलब है कि हर चुनाव के साथ उनको मिलने वाले वोटों में इजाफा होता रहा है। पिछली बार के चुनाव में वे कोषाध्‍यक्ष के पद पर लड़े थे और 546 वोट लेकर आए थे। निर्निमेष कुमार के हर बार चुनाव में खड़े होने की केवल एक वजह यह रही कि वे हर बार सदस्‍यता देने में होने वाले घपलों से लेकर अलग-अलग गड़बडि़यों पर अपनी आवाज़ बुलंद करते रहे हैं और उनकी यही अदा प्रेस क्‍लब के प्रबंधन को नागवार गुज़रती रही है।

पिछले प्रबंधन ने लगातार साल भर तक दो वरिष्‍ठ पत्रकारों कुमार और अनिल चमडि़या के खिलाफ कार्रवाई करने और उन्‍हें नोटिस थमाने की कोशिश की थी। प्रबंधन समिति की बैठकों में पिछले अध्‍यक्ष गौतम लाहिड़ी ने कई बार इन दो वरिष्‍ठ पत्रकारों का नाम लेकर अपशब्‍द कहे और कई मौकों पर तो उन्‍होंने नियम-कानूनों को ताक पर रखकर खुद को ‘’मोदी’’ घोषित किया। इन गर्वोक्तियों को सदस्‍य हलके में लेते रहे थे और अपने अंतर्विरोधों के कारण कमेटी कुमार और चमडि़या को नोटिस देने में नाकाम रही थी।

इस बार जिस तरीके से अल्‍पावधि के नोटिस पर चुनाव करवाए गए और विपक्ष को खड़े होने का मौका ही नहीं दिया गया, उसने प्रबंधन की तानाशाही का रास्‍ता पूरी तरह तैयार कर दिया। मौजूदा कमेटी ने पदभार संभालते ही सबसे पहले यशवंत सिंह को नोटिस थमाया। उसके बाद क्‍लब के सदस्‍यों के लिए क्‍लब में प्रवेश के लिए रजिस्‍टर पर दस्‍तखत करना अनिवार्य कर दिया जो क्‍लब के इतिहास में पहली बार हुआ। इसके बाद 2 फरवरी को क्‍लब की साठवीं जयंती चुपचाप मर्नाइ गई और पत्रकारों को कानोकान खबर तक नहीं हुई। इससे भी बुरा यह रहा कि पत्रकारों पर हमले के चौतरफा परिदृश्‍य में प्रेस क्‍लब ने अपनी जयंती पर हास्‍य कवि सम्‍मेलन करवा दिया।

अब क्‍लब के प्रबंधन ने निर्निमेष कुमार को छह लाख के हर्जाने का कानूनी नोटिस थमा दिया है। इस नोटिस में कहा गया है कि निर्निमेष कुमार द्वारा क्‍लब पर किए गए मुकदमों के एवज में क्‍लब को अपने वकील को तीन लाख रुपये देने पड़े, उसके बदले में क्‍लब छह लाख का दावा कर रहा है।

पूरे नोटिस को पढ़ने पर दो बातें समझ में आती हैं। एक तो प्रबंधन को यह बात नागवार गुजरी है कि एक क्‍लब का सदस्‍य लगातार सात बार से चुनाव लड रहा है, जबकि यह किसी भी सदस्‍य का लोकतांत्रिक अधिकार है कि वह कितनी बार चुनाव लड़े। नोटिस में इसी को संदर्भ में लेते हुए कहा गया है कि निर्निमेष कुमार की क्‍लब के प्रबंधन में चुने जाने की ‘’राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा’’ है। यह शब्‍द ही अपने आप में अपमानजनक है और क्‍लब के बुनियादी मैनडेट के खिलाफ है चूंकि प्रेस क्‍लब एक कंपनी है, न कि कोई राजनीतिक संगठन या दल।

इसी नोटिस में यह भी कहा गया है कि निर्निमेष कुमार चुनाव लड़ कर हारते रहे हैं और उन्‍हें वोट नहीं मिलते। नोटिस में दिए आंकड़े इस बात को खुद झुठलाते हैं क्‍योंकि साल दर साल कुमार को मिले वोटो की संख्‍या में लगातार इजाफा हुआ है। वैसे भी किसी उम्‍मीदवार को वोट मिलना या न मिलना उसके खिलाफ कोई् मुद्दा नहीं है।

ऐसा लगता है कि प्रेस क्‍लब ने प्रबंधन से असहमत सदस्‍यो को चुप कराने के लिए उनके ऊपर मुकदमेबाजी का रास्‍ता चुना है।   


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