पत्रकारिता के जरिये जनता की आवाज़ उठाने वाले चर्चित पत्रकार रवीश कुमार को वर्ष 2019 का प्रतिष्ठित रेमन मैग्सेसे पुरस्कार मिला है. रवीश कुमार को यह सम्मान उनकी साहसिक और बेबाक पत्रकारिता के लिए दिए जाने की घोषणा हुई है. रवीश कुमार यह पुरस्कार पाने वाले 11वें भारतीय पत्रकार हैं. अवॉर्ड फाउंडेशन की वेबसाइट पर विजेताओं की जारी सूची में कहा गया है कि भारत के पत्रकार रवीश कुमार को कमजोरों की आवाज बनने के लिए यह पुरस्कार दिया जा रहा है.
https://twitter.com/MagsaysayAward/status/1157122862110502912
रेमन मैग्सेसे पुरस्कार एशिया के व्यक्तियों और संस्थाओं को उनके अपने क्षेत्र में विशेष रूप से उल्लेखनीय कार्य करने के लिए प्रदान किया जाता है. यह पुरस्कार फिलीपीन्स के भूतपूर्व राष्ट्रपति रेमन मैग्सेसे की याद में दिया जाता है.
इस वर्ष यह पुरस्कार पांच लोगों को मिला है. जिनमें रवीश कुमार के अलावा म्यांमा के को सी विन, थाइलैंड की अंगहाना नीलपाइजित, फिलिपींस के रमेंड और दक्षिण कोरिया के किम जोंग की को भी मैग्सेसे अवॉर्ड देने की घोषणा की गई है.
रवीश कुमार अपनी पत्रकारिता के माध्यम से लगातार जन मुद्दों को उठाते रहे हैं. इसी कारण वे लगातर सत्ताधारी पार्टी बीजेपी के निशाने पर रहे हैं. रवीश कुमार एनडीटीवी के मैनेजिंग एडिटर हैं और सत्ताधारी दल बीजेपी ने उनका बहिष्कार किया हुआ है, क्योंकि वे लगातर सरकार की नीतियों पर सवाल करते हुए शिक्षा, बेरोजगारी, किसान-मजदूर और धार्मिक ध्रुवीकरण आदि मुद्दों को उठाते रहे हैं.
रवीश कुमार भारत में साहसिक पत्रकारिता के प्रतीक बन चुके हैं. वे लगातर सत्ता और सत्ता पक्ष के समर्थक ताकतों के निशाने पर रहे हैं और ट्रोल होते रहे हैं. अपनी बेबाक पत्रकारिता के कारण उन्हें लगातर धमकियां मिलती रही हैं. रवीश कुमार पहले भी कई पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं.
‘रेमन मैग्सेसे‘ संस्था द्वारा रवीश कुमार की पत्रकारिता पर दिया गया वक्तव्य :
पिछले कुछ सालों में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में आज़ाद और ज़िम्मेदार पत्रकारिता के स्पेस को सिकुड़ते देखा है। इसके पीछे कई सारे कारण हैं: नई सूचना प्रोद्योगिकी के कारण बदलता मीडिया का स्वरूप, ख़बर और रायशुमारी का बाज़ारीकरण, सरकार का बढ़ता नियंत्रण और सबसे चिंताजनक है लोकप्रिय अधिनायकवाद और धार्मिक-जातीय-राष्ट्रवादी कट्टरपंथियों का अपने सतत विभाजनकारी, असहिष्णु और हिंसक तरीके से उभार।
इन बढ़ते ख़तरों के विरोध में भारत में एक अहम आवाज़ हैं टीवी पत्रकार रवीश कुमार। हिंदीभाषी राज्य बिहार के जितवापुर गांव में पैदा हुए और पले-बढ़े रवीश ने अपने शुरुआती रुझान के मुताबिक अपनी परास्नातक डिग्री दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास और पब्लिक अफेयर्स में ली।
1996 में उन्होंने एनडीटीवी ज्वाइन किया और एक फील्ड रिपोर्टर के तौर पर शुरुआत की। देश की 42 करोड़ हिंदी भाषी जनता के बीच एनडीटीवी ने जब अपना हिंदी चैनल एनडीटीवी-इंडिया लॉंच किया तो रवीश कुमार का अपना शो शुरु हुआ – प्राइम टाइम। आज एनडीटीवी के सीनियर एक्सीक्यूटिव एडीटर के तौर पर रवीश कुमार, देश के सबसे प्रभावशाली टीवी पत्रकारों में से एक हैं।
हालांकि उनकी सबसे बड़ी विशेषता वो पत्रकारिता है, जिसका वो प्रतिनिधित्व करते हैं। एक ऐसे मीडिया के माहौल में, जो एक दखलअंदाज़ सत्ता से डरा हुआ है, जो कट्टर राष्ट्रवादी ताकतों और ट्रोल्स से ज़हरीला हो गया है और फ़ेक न्यूज़ से भरता जा रहा है और जहां बाज़ार की रेटिंग्स ने सारा दांव ‘मीडिया शख्सियतों’, ‘पीत पत्रकारिता’ और दर्शकों को लुभाने वाली सनसनी पर लगा रखा है, रवीश पत्रकारिता की सभ्य, संतुलित और तथ्य आधारित रिपोर्टिंग शैली को ही पेशेवर पत्रकारिता बनाए रखने पर अड़े हुए हैं। एनडीटीवी पर उनका कार्यक्रम ‘प्राइम टाइम’ ताज़ातरीन सामाजिक मुद्दों को उठाता है, गंभीर बैकग्राउंड रिसर्च करता है और मुद्दे को एक या उससे भी अधिक एपीसोड्स में एक बहुआयामी चर्चा के साथ सामने रखता है। इस कार्यक्रम में मुद्दे असल ज़िंदगी में आम लोगों की अनकही दिक्कतों की बात करते हैं – जो सीवर में नंगे हाथ-पैर उतरने वालों और रिक्शा चालकों से लेकर सरकारी कर्मचारियों और किसानों की तक़लीफ़ से अर्थाभाव से जूझते सरकारी स्कूलों और अकर्मण्य रेलवे तंत्र तक हो सकते हैं।
रवीश सरलता से गरीब जनता से संवाद करते हैं, खूब यात्राएं करते हैं और अपने दर्शकों से संपर्क में रहने के लिए सोशल मीडिया का खूब इस्तेमाल करते हैं और इसके ज़रिए भी अपने कार्यक्रम के लिए स्टोरीज़ तैयार करते हैं। जन-आधारित पत्रकारिता की लगातार कोशिश करते हुए, वो अपने न्यूज़ रूम को जनता का न्यूज़ रूम कहते हैं।
रवीश भी कई बार कुछ नाटकीयता का सहारा लेते हैं क्योंकि उनका मानना है कि ये प्रभावी तरीका है। उन्होंने 2016 में एक अनोखे ढंग के शोर में नाटकीय ढंग से बताया था कि कैसे टीवी न्यूज़ शोज़ में बहस का स्तर कितना गिर चुका है। शो की शुरुआत में स्क्रीन पर आते हुए रवीश बताते हैं कि कैसे टीवी न्यूज़ शोज़ गुस्सैल और कानफो़ड़ू आवाज़ों के अंधेरे जगत में बदल गए हैं। उसके बाद स्क्रीन काली हो जाती है और अगले एक घंटे तक स्क्रीन काली रहती है और पीछे से असल टीवी शोज़ के कर्कश ऑडियो, ज़हरीली धमंकियां, बौखलाहट भरी रट, साउंडबाइट्स और दुश्मन का खून बहाने को तत्पर भीड़ का शोर सुनाई देते रहते हैं। रवीश के मुताबिक उनके लिए हमेशा संदेश अहम है, जिसे दिया जाना ही चाहिए।
एक एंकर के तौर पर रवीश हमेशा भद्र हैं, संतुलित हैं और सूचना से सुसज्जित रहते हैं। वो अपने अतिथि पर हावी नहीं होते बल्कि उनको अपनी बात कहने का मौका देते हैं। वो चिल्लाते नहीं, लेकिन सबसे ऊंचे शक्ति की ज़िम्मेदारी भी गिनाते हैं और देश में सार्वजनिक-विमर्श में भूमिका के लिए मीडिया की भी निंदा कर डालते हैं: इस वजह से उनको लगातार अलग-अलग तरह की कट्टर शक्तियों की धमकिय़ों और ख़तरों का सामना करना पड़ता रहा है।
इन सारी मुश्किलों और बाधाओं के बावजूद भी रवीश एक समीक्षात्मक, सामाजिक तौर पर जवाबदेह मीडिया के स्पेस को बढ़ाते रहने के अपने प्रयासों में लगे रहे हैं। एक ऐसी पत्रकारिता में भरोसा रखते हुए, जिसके केंद्र में आम लोग हैं, रवीश पत्रकार के तौर पर अपनी भूमिका को मूलभूत रूप से परिभाषित करते हैं, “अगर आप लोगों की आवाज़ बन सकते हैं, तो ही आप पत्रकार हैं।”
2019 के रेमन मैग्सेसे पुरस्कार के लिए रवीश कुमार का चुनाव करते हुए, बोर्ड ऑफ ट्रस्टीज़ उनके उच्चतम कोटि के तिक पत्रकारिता के प्रति अडिग समर्पण को ध्यान में रखता है: उनका नैतिक साहस जिसके दम पर वो सच के लिए खड़े होते हैं, उनकी ईमानदारी, आज़ादी और उनके उस सैद्धांतिक विश्वास को सम्मानित करता है, जिसके मुताबिक पत्रकारिता लोकतंत्र की उन्नति में अपना सबसे आदर्श लक्ष्य तब हासिल करती है, जब वो सच को साहस से बोलती है, बेआवाज़ों की आवाज़ को सत्ता के सामने ताकत देती है, लेकिन अपनी भद्रता नहीं खोती।
यह वक्तव्य न केवल रवीश कुमार की पत्रकारिता पर है, बल्कि पिछले 6 सालों में हिंदुस्तान के हालात पर भी टिप्पणी है.
अनुवाद – मयंक सक्सेना ने किया है, उनकी फेसबुक दीवार से साभार