उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में गोली मार कर नौ लोगों की हत्या और छह लोगों को घायल कर दिए जाने के मामले को आप चाहे जैसे लें – खबर बड़ी है और कानून व्यवस्था की खराब हालत बताती है। भारतीय जनता पार्टी जब विरोध में होती थी तो ऐसी हालत को “जंगलराज” कहा जाता था। अब हत्याकांड का “कारण” बताया जा रहा है कि यह जमीन के विवाद में हुआ है। ऐसे जैसे जमीन के विवाद में गोली मार दिया जाना सरकार से संबंधित नहीं हो या उसमें सरकार कुछ कर ही नहीं सकती है। आपने देखा होगा पहले दिन से हत्याकांड की खबर के साथ जमीन का विवाद जुड़ा हुआ है। जमीन का विवाद खबर नहीं, कारण है। खबर का हिस्सा हो सकता है पर खबर तो हत्याकांड ही है। ऐसा नहीं है कि जमीन विवाद में मौत अलग होती है या हत्या जायज है। जहां तक प्रशासन की बात है, उसका काम ही है कि व्यवस्था बनाकर रखे और लोग आपस में फैसला न करें। और करें भी तो फैसला ही, सजा न देने लगें।
ऐसी हालत होने का साफ मतलब है कि लोगों का सरकार पर विश्वास नहीं है। लोगों को न्याय की उम्मीद नहीं है। और इससे बचने के लिए कुछ भी बोलना और अखबारों में खबर नहीं छपना – समस्या का समाधान नहीं है। इस क्रम में प्रियंका गांधी का सोनभद्र जाने की जिद्द करना और रोकने पर धरने पर बैठ जाना अच्छी राजनीति है। इससे निपटने का राजनीतिक तरीका 1955 के इतिहास में जाना नहीं है। खबर तो यह है कि प्रियंका गांधी को जहां रखा गया वहां बिजली-पानी बंद कर दिया गया। निश्चित रूप से यह राजनीति है, स्तर चाहे जो हो। पर इसकी रिपोर्टिंग तो होनी ही चाहिए। मैं जो अखबार देखता हूं उनमें दैनिक जागरण अकेला अखबार है जिसमें यह खबर पहले पन्ने पर नहीं है। इससे पहले भी दैनिक जागरण ने अपने राष्ट्रीय संस्करण में सोनभद्र की खबर को तो ‘नेशनल न्यूज’ माना था और अंदर के पन्ने पर खबर होने की सूचना पहले पन्ने पर दी थी लेकिन चंदौसी में दो सिपाहियों की हत्या की खबर को इस लायक भी नहीं माना था। आज लगभग सभी अखबारों में प्रियंका गांधी की खबर पहले पन्ने पर है – जागरण को छोड़कर। जागरण के जिस संस्करण को मैं देखता हूं उसमें आज पहले पन्ने पर कोई विज्ञापन नहीं है, तब भी।
वैसे भी, मामला प्रियंका गांधी को सोनभद्र जाने से रोकने भर का नहीं है। उनका धरने पर बैठ जाना, हिरासत में लिया जाना, जमानत लेने से इनकार करना और गेस्ट हाउस की बिजली-पानी गुल हो जाना भी खबर है। ऐसे में अमर उजाला ने इस खबर को लीड बनाया है और साथ में मुख्यमंत्री की फोटो और उनका यह कथन भी प्रमुखता से प्रकाशित किया है, “कांग्रेस जिम्मेदार, 10 दिन में बेनकाब होंगे चेहरे”। इस खबर के मुताबिक मुख्यमंत्री ने सोनभद्र में हुए खूनी संघर्ष के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराया है। कहा कि इस घटना की नींव 1955 में कांग्रेस सरकार के दौरान पड़ गई थी। मुख्यमंत्री को हत्याकांड के बाद पता चला और वे अब बता रहे हैं कि इस जमीन को 1989 में बिहार के एक आईएएस अफसर के नाम पर कर दिया गया। उस समय भी कांग्रेस की सरकार थी।
बाद की सरकारों ने कोई कार्रवाई नहीं की या उन्हें पता ही नहीं चला – इन सब बातों में मेरी दिलचस्पी नहीं है और ना ही मैं मुख्यमंत्री की जिम्मेदारियां तय कर सकता हूं पर सवाल यह है कि जो मर गए उनका क्या दोष था और अगर था भी तो क्या उन्हें इस तरह मार देना या मरवा देना सही है। उन्हें न्याय मिलेगा? और अगर हां तो कैसे? कल ही मैंने लिखा था कि इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के अनुसार मुजफ्फरनगर दंगे के 41 मामलों में 40 के आरोपी बरी हो गए। उनपर आरोप साबित नहीं हुए। जिस एक मामले में आरोप साबित हुआ है वह हिन्दू को मारने के आरोपी मुसलमान हैं और उन्हें सजा हुई है। कहा जाता है कि दंगे की शुरुआत इसी हत्या से हुई थी।
फिर भी, सोनभद्र नरसंहार मामले में आपकी सरकार क्या कर रही है? यह कौन बताएगा और अखबार इस मामले में चुप क्यों हैं? क्या यह असामान्य नहीं है कि 1955 से लेकर अभी तक यह मामला फाइलों में दबा रहा – पर हत्याकांड के लिए आपका कार्यकाल क्यों चुना गया? क्या इसलिए कि आप अब मामले को दुरुस्त कर देंगे? कम से कम यह आश्वासन तो देते। पर वह भी नहीं है। यह भी दिलचस्प है कि मुख्यमंत्री के इतने महत्वपूर्ण बयान को सिर्फ अमर उजाला ने इतनी प्रमुखता दी है और दैनिक जागरण में यह खबर भी पहले पन्ने पर नहीं है।
दैनिक भास्कर ने प्रियंका गांधी की खबर आज पहले पन्ने पर तीन कॉलम में छापी है। इसके साथ, “कांग्रेस के समय हड़पी जमीन, जिससे विवाद हुआ है:योगी” शीर्षक खबर और राहुल बोले- इस गिरफ्तारी से भाजपा की असुरक्षा दिखती है, भी है। दैनिक हिन्दुस्तान में यह खबर टॉप पर तीन कॉलम में है दो कॉलम की फोटो के साथ। नवभारत टाइम्स में यह खबर दो कॉलम की फोटो के साथ दो कॉलम में है। नवोदय टाइम्स में टॉप पर चार कॉलम की फोटो के नीचे तीन कॉलम की खबर है। अमर उजाला में यह खबर पांच कॉलम में है। इसमें कोई डेढ़ कॉलम में मुख्यमंत्री की खबर भी है। दोनों खबरों का फ्लैग शीर्षक है, “प्रियंका ने पूछा गोलीकांड के पीड़ितों से मिलने जाने से क्यों रोका, उधर सीएम का कांग्रेस पर हमला”। और मामला 1955 का। राजस्थान पत्रिका में यह खबर तीन कॉलम में है, दो कॉलम में दो फोटो के साथ। दैनिक जागरण में यह खबर पहले पन्ने पर नहीं, नेशनल न्यूज के पन्ने पर टॉप में फोटो के साथ है।