झूठे आरोप पर सबूत नहीं माँगने की 56 इंची रणनीति, और धमकाने के सबूत हैं तो आरोप झूठ कैसे?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

आज के ज्यादातर अखबारों की लीड भारत सरकार पर ट्वीटर के पूर्व सीईओ, जैक डोर्सी का शर्मनाक आरोप और उसका सरकारी खंडन है। सरकारी खंडन में दम नहीं है और ‘पूरी तरह झूठ’ के अलावा ना कुछ कहा गया है और ना छपा है। इंडियन एक्सप्रेस ने ट्वीटर से संबंधित पुरानी कहानी भी पहले पन्ने पर छापी है तो अमर उजाला ने पूरी खबर को ही पहले पन्ने लायक नहीं माना है। नवोदय टाइम्स ने डोर्सी के दबाव के आरोप पर अनुराग बोले – सफेद झूठ, शीर्षक से छापा है। मुद्दा यह है कि अगर मामले में कुछ दम ही नहीं है तो पहले पन्ने पर क्यों है और डोर्सी ने अगर यह आरोप लगाया है कि अकाउंट बंद करने या ट्वीट हटाने जैसी मांग पूरी करने के लिए उसपर दबाव डाला गया तो सरकार ने इनकार क्यों किया है, सबूत क्यों नहीं मांगा है। कारण साफ है, सबूत है। और चूंकि डोर्सी के आरोप का सबूत है और उसने कहा भी है इसलिए उसका सबूत नहीं मांगा गया है और सिर्फ सफेद झूठ कहकर काम चलाने की कोशिश की गई है। मीडिया सेवा में है तो अलग। 

हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड नहीं है और शीर्षक से बताया गया है कि ट्वीटर को भारत सरकार की धमकी पर डोर्सी की टिप्पणी के बाद तरह-तरह के आरोप- प्रत्यारोप चल रहे हैं। यहां भी नहीं लिखा है कि पहले के मामलों से ट्वीटर के आरोप सच लगते हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि सबने इसी लिए सरकारी पक्ष को छापकर सरकार को नई मजबूती दी है ताकि 2024 के चुनाव में उसकी जो भी सहायता की जा सके। टाइम्स ऑफ इंडिया में इस आशय के शीर्षक के बाद डोर्सी का यह कथन है, किसानों के विरोध के दौरान हमें ट्वीट हटाने के लिए धमकाया था। आपको याद होगा कि किसानों की मांग पूरी करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा था कि वे तपस्या कर रहे थे और शायद हमारी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई होगी। अब ‘तपस्या’ का यह रूप सामने आ रहा है तो मना करना जरूरी है। पर चुनौती क्यों नहीं दे रहे हैं यह समझना मुश्किल नहीं है। 

टाइम्स ऑफ इंडिया ने डोर्सी के आरोप के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे का बयान भी छापा है और साथ में दिल्ली पुलिस का बयान है कि डीसीपी रैंक का अफसर बैंगलोर गया था क्योकि दिल्ली ऑफिस में नोटिस भेजने का कोई असर नहीं हुआ। दिल्ली पुलिस का यह कहना (या उससे कहलवाया जाना) कि उस समय ट्वीटर ने जिम्मेदारी से बचने के लिए जान बूझकर एक कॉरपोरेट पर्दा बुना था जबकि भारतीय बाजार के सभी लाभ उठा रहा था। मुझे लगता है कि यही ट्वीटर का आरोप है। भारत उसके लिए बड़ा बाजार है और सरकार कह रही थी कि यहां रहना है तो जो कहा जाये करो या बंद करवा दिया जाएगा। दिल्ली पुलिस चूंकि दबाव डालने और डराने में शामिल थी इसलिए उससे बयान दिलवाया गया है और जो सच है वह यही है कि वाकई दिल्ली पुलिस का उपयोग ट्वीटर को धमकाने के लिए किया गया।  

नवोदय टाइम्स ने दो बुलेट प्वाइंट्स के जरिये यह बताने की कोशिश की है कि, “केंद्रीय मंत्री चंद्रशेखर बोले, ट्वीटर के उस बहुत संदिग्ध समय के दागों को मिटाने की कोशिश।” हालांकि चद्रशेखर ने यह नहीं बताया है कि ट्वीटर के सीईओ पद से इस्तीफा दे चुके डोर्सी को अब ऐसा करने की जरूरत क्यों पड़ी होगी। कहने की जरूरत नहीं है कि डोर्सी के इस आरोप को लेकर विपक्ष ने सरकार पर हमला बोल दिया है और पुरानी बातों से आरोप साबित ही है। एक यूट्यूब चैनल को दिये इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि सरकार की ओर से दबाव बनाने का काम कई तरह से किया गया। इनमें भारत में ट्वीटर को बंद कर देना, कर्मचारियों के घरों पर छापे मारना, जो उन्होंने किया और यह भारत है, एक लोकतांत्रिक देश।

मोटे तौर पर मुद्दा यह है कि ट्वीटर पर अगर कोई कुछ गलत पोस्ट करे तो सरकार खुद कार्रवाई कर सकती है। पुलिस इस काम में उस्ताद है, करती रही है। अगर गलत पोस्ट करने वालों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करती और ट्वीटर से कहा जाता था कि अमुक पोस्ट के लिए अमुक के खिलाफ अमुक कार्रवाई की गई है तो ट्वीटर के लिए पोस्ट को हटाना या हैंडल को बंद करना या धमकाना आसान और नियम संगत होता। यही तरीका भी है। लेकिन सरकार या पुलिस खुद कार्रवाई न करे, एक गुप्त पत्र के जरिये (एक समय जैसा सीलबंद लिफाफा सुप्रीम कोर्ट में देने का रिवाज बन गया था) कहा जाए कि अमुक ट्वीट या अमुक व्यक्ति के हैंडल को बंद कर दिया जाए तो पारदर्शी होने में यकीन करने वाला कोई भी व्यक्ति या संस्थान कैसे कार्रवाई करेगा और बचने की कोशिश को कॉरपोरेट पर्दा तो कहा ही जा सकता है पर उसमें गलत क्या है? 

दूसरी बात यह है कि जो केंद्रीय मंत्री डोर्सी के आरोप को गलत या झूठ कह रहे हैं वे इसे या ऐसे किसी भी मामले को कभी सच बोल सकते हैं क्या? केंद्रीय मंत्री राजीव चंद्रशेखर के मामले में कल मैंने लिखा था और द टेलीग्राफ ने अपनी खबर में बताया था कि वे कह रहे थे कि पहले की चोरी का डाटा सार्वजनिक होना शरारत है। अव्वल तो वे चोरी होना स्वीकार कर रहे थे, पहले बताया नहीं था और अब सार्वजनिक होने को शरारत और गलत कह रहे थे तथा यह भी कोविन सुरक्षित है। यही नहीं, द हिन्दू ने आज खबर दी है कि डाटा लीक की कल सार्वजनिक हुई खबर के बाद कोई जांच या कोई एफआईआर नहीं हो रही है। ट्वीटर और डोर्सी के आरोप  के बाद ऐसे मंत्री और उनके ऐसे बचाव का कितना महत्व है यह बताने वाली बात नहीं है लेकिन अखबारों ने कोशिश की है कि इससे भारत सरकार पर लगा गंभीर आरोप धुल जाए।

कहने की जरूरत नहीं है कि मीडिया को पूरी तरह नियंत्रण में लेने के बाद सरकार चाहती है कि सोशल मीडिया पर भी उसके खिलाफ कुछ नहीं चले और जो खिलाफ लिखते हैं उन्हें या तो लिखने ही नहीं दिया जाए या जो लिखें उसे हटा दिया जाए। यह सब अभिव्यक्ति की आजादी के दावे के साथ चलता रहे और अगर बुरा बनना हो तो सोशल मीडिया मंच बने। हालांकि बात इतनी ही नहीं है। सरकार नहीं चाहती है कि उसके समर्थकों के आपत्तिजनक पोस्ट हटाये जाएं या उनके मामले में कार्रवाई हो लेकिन सरकार के खिलाफ ऐसा कुछ हो तो कार्रवाई जरूर हो। वैसे तो यह कार्रवाई सरकार को निष्पक्ष होकर करनी है पर वह सरकार समर्थकों का बचाव भी वैसे ही करती है और इसके भी उदाहरण हैं और समस्या इसीलिये है। अखबार या मीडिया नहीं बताते हैं, सो अलग। 

कुल मिलाकर, ट्वीटर के आरोप के जवाब में सरकार की ओर से कहा गया है कि ट्वीटर ने सरकारी कानूनों (आदेशों) को नहीं माना। अगर यह सही है तो उसी समय कार्रवाई करनी चाहिए थी और बताया जाना चाहिए था कि कार्रवाई इस कारण से की गई है। जैसे बीबीसी के मामले में हुआ। लेकिन अब जब जैक डोर्सी ने कहा है और द हिन्दू ने बॉक्स में छापा है कि भारत एक ऐसा देश है जिसने किसानों के आंदोलन के समय कई आग्रह किये थे और यह कुछ खास पत्रकारों के लिए था। इसके जवाब में केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान है, जैक डोर्सी वर्षों की गहरी निद्रा के बाद अब जागे हैं और अपने काले कारनामे छिपाना चाहते हैं। पर सवाल यह है और रहेगा कि जैक डोर्सी या ट्वीटर ने अगर कुछ गलत किया तो उसके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की और दबाव नहीं डाले थे तो सबूत देने के लिए क्यों नहीं कह रहे हैं? 

यही नहीं, डोर्सी अब क्यों अपना कारनामा छिपाना चाह रहे हैं? हम तो भूल चले थे और वो झूठ बोल रहे हैं तो बोलने देने में क्या दिक्कत है? पूरा मामला इतना अविश्वनीय और लचर है कि द टेलीग्राफ ने आज अपनी इस खबर का शीर्षक लगाया है, जैक आप जरूर मजाक कर रहे हैं। हम छापा नहीं मारते हैं ….. इसके साथ बराबर में दूसरी खबर है जिसमें बताया गया है कि लव जिहाद के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले पंचायत करने पर आमादा हैं। खबर के अनुसार, उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के हिन्दुत्व समर्थक संगठन जिनपर पुरोला शहर के मुस्लिम दुकानदारों को भगा देने का आरोप है, ने 15 जून के महापंचायत को टालने के प्रशासन के आग्रह को मानने से इनकार कर दिया है। यह, जैसा वे कहते हैं, लव जेहाद के खिलाफ है। अखबार ने इस खबर का शीर्षक लगाया है ….. हम तो बस ऐसा करते हैं।     

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं। 


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