जनता दल (युनाइटेड) ने 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी से नाता तोड़कर लालू प्रसाद यादव की आरजेडी से सत्ता चलाने में सहयोग लिया था। चुनाव आते-आते एनडीए गठबंधन के बरअक्स जेडीयू-आरजेडी और कांग्रेस का गठबंधन हो गया। इसी गठबंधन से निपटने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकलुभावन वादे के साथ धुआंधार चुनावी प्रचार आरंभ किया था। इसी सिलसिले में 18 अगस्त 2015 को नरेन्द्र मोदी हेलिकॉप्टर से आरा के रमना मैदान में आए, जहां उन्होंने बिहार के विकास के लिए दोनों हाथ की उंगलियों को हवा में लहराते हुए कथित ऐतिहासिक आर्थिक पैकेज की घोषणा की थी।
उस दौरान उन्होंने पोडियम को बाएं हाथ से थपथपाते हुए पूछा था- घोषणा करूं? फिर उन्होंने रैली में आए लोगों से पूछा- पचास हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? साठ हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? सत्तर हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? पचहत्तर हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? अस्सी हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? नब्बे हज़ार करूं कि ज्यादा करूं? उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने विराम लेते हुए पोडियम पर आगे की ओर झुकते हुए कहा कि ‘’कान बराबर रख के सुन लीजिए’’। फिर दोनों हाथों की उंगलियों को लहराकर उन्होंने कहा कि ‘’दिल्ली की सरकार सवा लाख करोड़ रुपये की घोषणा करती है। बिहार का भाग्य बदलने के लिए सवा लाख करोड़ रुपए की घोषणा करता हूं।‘’ इस घोषणा के वक्त वहां मौजूद एनडीए के नेता खड़े हो गए और ख़ुशी से झूमने लगे। मोदी के बगल में आरा के तत्कालीन सदर विधायक अमरेंद्र प्रताप सिंह भी मौजूद थे।
इसके बाद की कहानी इतिहास है। आगामी चुनाव में आरा की सातों विधानसभा सीटों पर एनडीए का एक भी प्रत्याशी जीत हासिल नहीं कर सका। अभी आरा और बक्सर दोनों लोकसभा क्षेत्रों से सांसद भाजपा के हैं। इलाक़े की राजनीति पर पैनी नज़र रखने वाले जितेंद्र कुमार कहते है कि बिहार विधानसभा चुनाव जीतना था तो मोदी ने बक्सर-आरा फोर लेन राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने का शिलान्यास कर दिया। राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने की योजना का सैद्धांतिक निर्णय तो मनमोहन सिंह सरकार ले ही चुकी थी। इसलिए प्रधानमंत्री मोदी ने आरा में तपाक से यह आश्वासन दे दिया कि यह राष्ट्रीय राजमार्ग तीन साल में पूरा हो जाएगा।
इधर आरा के इलाक़े में यह शोर हुआ कि फोर लेन का निर्माण आरा के सांसद आरके सिंह की विशेष पैरवी से हो रहा है। बिहिया के सरोज सिंह कहते है कि आरके सिंह आइएएस थे। उन्हें मालूम है कि काम कैसे और कहां से निकालना है, इसलिए उसका सारा श्रेय आरके सिंह को ही जाना चाहिए। उधर तरारी से भाकपा माले के विधायक सुदामा प्रसाद ने 25 अप्रैल को राजू यादव की नामांकन सभा के मंच से कहा कि आरके सिंह का दो-तिहाई सांसद फंड वापस हो चुका है। उन्होंने सवाल उठइाया- ‘’कैसा विकास और कहां का विकास?”
जब नरेंद्र मोदी की घोषणा के तीन साल पूरा होने को आए तो 14 मई 2018 को बक्सर के भाजपा सांसद और केन्द्रीय मंत्री अश्विनी चौबे ने बक्सर में राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 84 यानी बक्सर-पटना फोर लेन का उद्घाटन व भूमिपूजन कर दिया, जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री 18 अगस्त 2015 को आरा में पहले ही कर चुके थे।
इस मामले में आरा के सांसद आरके सिंह फिर क्यों पीछे रहते? सिंह के सहयोगियों ने अश्विनी चौबे के समानांतर यह कहना आरंभ कर दिया कि सोन नदी पर कोइलवर पुल के समानांतर एक सिक्स लेन पुल निर्माण का कार्य भारत सरकार और आरके सिंह के सौजन्य से हो रहा है। फोर लेन के मौजूद दस्तावेज़ और नक्शा को देखने से यह पता चलता है कि सोन नदी पर पुल और बक्सर में गंगा नदी पर पुल बक्सर-आरा राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 84 निर्माण योजना का ही अंग है।
बहरहाल, जिस अवधि में निर्माण कार्य पूरा होना था वह खत्म हो चुकी है। आइए, अब समझते हैं कि बक्सर-पटना फोर लेन योजना में क्या है?
बक्सर से पटना के लिए बन रहे फोरलेन की कुल लंबाई 125 किलोमीटर है जिस पर कुल लागत 2100 करोड़ रुपये आने की उम्मीद है। निर्माण कार्य में सुविधा के लिए इस योजना को तीन आर्थिक पैकेजों में बांट दिया गया है। पहले पैकेज के अंतर्गत राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 30 के पटना-कोइलवर खंड का फोर लेन 34 किलोमीटर लंबा होगा जिसकी लागत 598 करोड़ रुपये आंकी गयी है।
दूसरे पैकेज में 44 किलोमीटर लंबाई के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 30 और 84 के कुछ हिस्से को मिलाया जाएगा। इसकी लागत 825 करोड़ रुपये आंकी गयी है। इसी तरह इस योजना के तीसरे पैकेज के अंतर्गत बक्सर-भोजपुर (आरा) खंड, जिसे राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 84 कहा जाता है, उसमें 48 किलोमीटर की कार्ययोजना है जिसकी लागत 682 करोड़ रुपये आंकी गयी है।
फिलहाल 125 किलोमीटर की कुल निर्माण योजना में भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवज़ा राशि मात्र 55 करोड़ ही भारत सरकार की तरफ से जारी हुई है। बक्सर जिले के रहने वाले डिग्री सिंह का खेत भी इस फोर लेन के निर्माण में अधिग्रहित किया गया है। वे बताते है कि उन्हें अब तक एक पैसा भी मिला है। डिग्री सिंह खेती करते हैं। वे कहते हैं, ‘’मैं चाहता हूं कि मेरी खेत में सड़क न बने। हम कहा खेती करेंगे?‘’ आरा के कोइलवर निवासी सुरेंद्र शर्मा बताते हैं, ‘’साढ़े छह कट्ठा पर 38 लाख रुपये मिलने की बात हुई थी लेकिन भूमि अधिग्रहण हो जाने के बाद अभी तक भू-अर्जन कार्यालय में राशि अटकी पड़ी है।‘’
अब जबकि प्रधानमंत्री द्वारा इस योजना के शिलान्यास के चार साल बीत गए है, सोन नदी पर कोइलवर में अब्दुल बारी पुल के समानांतर सिक्स लेन पुल के पिलर ढाले जा रहे हैं। नए पुल बनाना फोर लेन के लिहाज़ से आवश्यक भी है। वहां लगे शिलापट्ट के अनुसार अब्दुल बारी कोइलवर पुल 1862 में ब्रिटिश सरकार ने 1857 के महासंग्राम के बाद बनवाया था। उस समय उस पुल की अवधि 100 साल आंकी गयी थी जबकि इस समय पुल की उम्र 156 वर्ष है और यह काफी जर्जर हो चुका है।
एक ट्रक ड्राइवर ने बताया कि गोरखपुर में सोन की रेत 80 हज़ार और लखनऊ में एक लाख रुपये ट्रक की दर से बिक रही है। रेत उत्खनन के इस धंधे में बहुत बड़ी-बड़ी हस्तियां लगी हुई हैं, जिन्हें इस इलाक़े में माफ़िया कहा जाता है। जिस तरह सोन नदी की रेत का उत्खनन हो रहा है और उसकी आपूर्ति भारी-भरकम ट्रकों से उत्तर प्रदेश से लेकर हरियाणा तक की जा रही है, ऐसे में यह पुराना पुल कभी भी ढह सकता है। घोषणाओं और शिलान्यासों से आगे फोर लेन कब बनेगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं