भागलपुर: हज़ारों करोड़ के सृजन घोटाले को पचा कर चुनावी सन्‍नाटे में पड़ा एक शहर



पुष्यमित्र

हमारा तो नाम ही खराब हो गया है. जिस तरह की खबरें मीडिया में आयी हैं, उससे हर कोई सोचता होगा सबौर वालों ने खूब माल काटा है. कुछ लोग तो मुंह पर बोल देते हैं. हकीकत यह है कि हमारा ही पैसा सृजन में डूब गया है. चंधेरी, राजपुर और आसपास के जिस गांव में जाइयेगा, वहां किसी का पचास हजार डूबा है तो किसी का पांच लाख भी. सृजन से जुड़ी दस हजार से अधिक महिलाओं ने पेट काट-काट कर दस रुपया, पांच रुपया जमा कराया था और पूंजी जोड़ी थी कि गाढ़े वक्त में काम आयेगा. अब तो सब पैसा डूब गया. हम जायें भी तो किससे मांगने जायें?

भागलपुर के सबौर से सटे चंधेरी गांव में उस युवक ने जब यह बात कही तो उसकी आंखों में अफसोस भी था और नाराजगी भी. दरअसल, भागलपुर के सबौर को पहले लोग एग्रीकल्चर कॉलेज की वजह से जानते थे. यहां खेती बाड़ी को लेकर होने वाले प्रयोग की खबरें अखबारों में छपती थी. आज इस जगह की पहचान सृजन घोटाले से होती है.

हमने उससे कहा कि ऐसी कुछ महिलाओं से हमें मिलवा दे, जिनका पैसा सृजन घोटाले में डूबा है. वह बहाने बनाने लगा. वहां खड़े एक अन्य व्यक्ति कहा- ‘’कोई महिला आपको यह नहीं बतायेगी कि उसका पैसा सृजन में डूबा है क्योंकि हर कोई डरा हुआ है कि मीडिया में नाम आने पर कहीं सीबीआई पूछताछ करने न धमक जाये. जांच में कब किसका नाम फंस जाये, कोई नहीं जानता’’.

लोगों ने नाम न छापने की शर्त पर कई महिलाओं का जिक्र किया, जिनके दो लाख से पांच लाख तक की कमाई सृजन घोटाले में फंसी थी. पड़ोस के हर गांव में ऐसी 40-50 औरतें थीं, जो सृजन संस्था द्वारा संचालित स्वयं सहायता समूह की सदस्य थीं और वहां पैसे जमा करती थीं. इनमें से एक भी हमारे सामने नहीं आयी.

हां, चंधेरी औऱ राजपुर गांव की सीमा पर एक महिला मीना देवी ने अपना पासबुक जरूर दिखाया और तस्‍वीरें खिंचवाने के लिए तैयार हो गयीं, हालांकि उन्‍होंने अपना पैसा समय रहते ही निकाल लिया था. खनकित्ता गांव की अर्चना देवी ने अपना पासबुक दिखाया. उनका साढ़े पांच हजार रुपया फंसा था. तकरीबन दो घंटे इन तीनों गांवों में भटकने पर हमें अपना पासबुक दिखाने के लिये यही दो महिलाएं तैयार हुईं, मगर हर तरफ एक किस्म की उत्तेजना थी. ज्यादातर लोग हमें पत्रकार मानने के लिए तैयार नहीं थे, उन्हें लगता था कि हम लोग जांच एजेंसी वाले हैं.

तेरह सौ करोड़ के इस अजीबोगरीब सृजन घोटाले को लेकर मीडिया में कई तरह की खबरें आयीं, मगर इन औरतों के मसले पर कभी ठीक से बात नहीं हुई, जिनका गाढ़ी कमाई का पैसा इसलिए डूब गया कि उन्होंने इस संस्था पर भरोसा किया था और मीडिया ने मनोरमा देवी की सशक्त नारी वाली जो छवि बनायी थी, वे उससे प्रभावित थीं. अब वे इस घोटाले के सामने आने के बाद पिछले दो साल से वे दहशत में हैं. उनका पैसा तो डूबा ही, मगर सृजन से जुड़े रहने की वजह से वे हमेशा इस बात को लेकर आशंकित रहती हैं कि कहीं उन्हें इसकी कीमत न चुकानी पड़ी. इस चुनाव के मौसम में भी वे अपना दुख किसी को बताने से डर रही हैं.

भागलपुर शहर में भी सृजन को लेकर सन्नाटा है. इस मुद्दे पर अमूमन कोई बात नहीं करता. ऐसा लगता है कि इस शहर में यह घोटाला हुआ ही नहीं है. केवल तिलकामांझी भागलपुर विश्‍वविद्यालय के प्रॉक्टर डॉ. योगेंद्र अपनी सामाजिक और राजनीतिक प्रतिबद्धता की वजह से इस चुनाव में भी बार-बार सृजन का सवाल फेसबुक पर उछालते हैं मगर उन्हें भी कोई जवाब नहीं मिलता.

2014 में आम आदमी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ चुके डॉ. योगेंद्र ने इस बार भी चुनाव लड़ने का मन बनाया था मगर आखिरी मौके पर अपने सलाहकारों के सुझाव पर उन्होंने अपना मन बदल लिया. वे कहते हैं, ‘’सृजन घोटाला हर मामले में चारा घोटाले से बड़ा है’’. वे इसे 27 हजार करोड़ का घोटाला कहते हैं और बताते हैं कि जिस गलती की वजह से लालू प्रसाद आज जेल में हैं, सृजन मामले में भी तो नीतीश कुमार और सुशील मोदी ने वही गलती की है. 2008 में सीएजी की रिपोर्ट विधानसभा में पेश हुई थी जिसमें इस घोटाले का जिक्र था, मगर तत्कालीन सरकार के इन दो मुखिया ने कोई कार्रवाई नहीं की. वे पूछते हैं, ‘’यही गलती तो लालू ने भी की थी, फिर इन दोनों को क्यों जेल नहीं भेजा जा रहा?”

इस चुनाव के दौरान सृजन को लेकर जो भागलपुर में चुप्पी है, इस मसले पर वे कहते हैं, ‘’चूंकि शहर के ज्यादातर प्रभावशाली व्यक्ति किसी न किसी रूप में सृजन के लाभार्थी हैं, तो फिर कोई सवाल क्यों करेगा. यहां के व्यवसायियों की तो चांदी हो गयी है. मनोरमा देवी से उन्होंने जो पैसा उधार लिया था, अब वह पैसा उनका हो गया है. विपक्षी दल राजद के सामने दिक्कत यह है कि जैसे वह सृजन पर सवाल करेगा, लालू का चारा घोटाला भी बहस में आ जायेगा. वह क्यों इस घोटाले का मसला उछालना चाहेगा. बाकी सत्ता पक्ष के नेताओं की तस्‍वीरें तो मनोरमा देवी के साथ हर जगह नजर आ ही रही हैं’’.

भाजपा और आरएसएस का गढ़ माने जाने वाले इस क्षेत्र में एनडीए की तरफ से जदयू के अजय मंडल को टिकट मिला है. उन पर बकरी चोरी तक के आरोप हैं, लिहाजा शहर के संभ्रांत लोगों को यह उम्मीदवार पच नहीं रहा. वैसे भी भागलपुर भाजपा के तीन दिग्गज नेताओं शाहनवाज, अश्विनी चौबे और निशिकांत दुबे का ठिकाना है. वे तीन यहां वर्चस्व की लड़ाई लड़ते हैं. अश्विनी चौबे को बक्सर से और निशिकांत दुबे को गोड्डा से टिकट मिल गया है और उनके समर्थक उनके इलाकों की तरफ चले गये हैं, जबकि बेटिकट शाहनवाज के समर्थक कोप भवन में हैं. इस बार उनकी गाड़ियों में पेट्रोल भराने वाला और मौज कराने वाला कोई नेता चुनावी मैदान में नहीं है. ऐसे में भागलपुर शहर उदास भाव से इस चुनाव को देख रहा है. कई लोग इतने खफा हैं कि नोटा की मुहिम भी चलाने लगे हैं. इन परिस्थितियों में भी कोई सृजन की वजह से आक्रोश में नहीं है कि उनके इलाके में कैसे इतना बड़ा घोटाला हो गया और क्यों अब तक बड़ी मछलियों पर हाथ नहीं डाला गया है.

2013 से इस मसले को लेकर पीएम औऱ सीएम को चिट्ठी लिखकर शिकायत करने वाले स्थानीय चार्टर्ड अकाउंटेंट संजीत कुमार कहते हैं, ‘’लोगों को समझ नहीं आ रहा कि सृजन की वजह से भागलपुर का विकास कैसे ठप होता जा रहा है. पिछले कुछ साल में मार्केट में इतना पैसा डंप हो गया कि अचानक प्रॉपर्टी की कीमतें आसमान छूने लगीं. अब अगर कोई इमानदारी से व्यवसाय करना चाहे तो उसके लिए लागत निकालना भी मुश्किल होगा. इसी वजह से शहर में कई मॉल खुलते हैं और बंद हो जाते हैं. अब यह थोड़ा जटिल गणित है इसलिए किसी को समझ नहीं आता. सभी बेफिक्र हैं’’.

वरिष्ठ पत्रकार और बिहार चैंबर ऑफ कामर्स, भागलपुर के पूर्व अध्यक्ष मुकुटधारी अग्रवाल कहते हैं, ‘’चूंकि सरकारी फंड को मनोरमा देवी के अकाउंट में भेजा जाता था इसलिए लोगों को लगता था कि उनका कोई नुकसान नहीं हुआ. मगर सच तो यही है कि जो पैसा मनोरमा देवी के अकाउंट में जाता था, वह उनका ही पैसा था. उनके विकास के लिए आया था. विकास की गतिविधियों को रोककर पैसा सृजन को दिया जाता था. नुकसान तो उन्हीं का हुआ’’.

भागलपुर के लोग हालांकि इसे अपना नुकसान नहीं मान रहे. उनके लिए फिलहाल यह कोई मुद्दा नहीं है. दोनों गठबंधनों ने इस बार ग्रामीण पृष्ठभूमि के दबंग गंगौता उम्मीदवारों को चुनाव में उतार दिया है. दोनों की पृष्ठभूमि आपराधिक है इसलिए शहर के लोग चुनाव को लेकर उदासीन हैं. यह एक ऐसा घोटाला है जिसे लेकर भागलपुर ही नहीं पूरे बिहार राज्य में सवाल उठने चाहिए थे. इस चुनाव में यह बड़ा मुद्दा होना चाहिए था मगर हर तरफ चुप्पी है. विपक्ष भी शांत है, क्योंकि उसके हाथ भी भ्रष्टाचार से सने हैं.



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