अमेठी यानी देश की वीआइपी सीटों में से एक। यहां के लोग जब वोट डालने के लिये अपने घर से निकलते हैं तो सोचते हैं कि उनका एमपी शायद इस बार पीएम बन जाए। अमेठी वालों के लिये एमपी का पीएम में बदलना महज शब्दों का खेल भर नहीं है। उन्हें इस घड़ी का इंतजार करते तीस बरस हो गए। अमेठी वाले मानते हैं कि यहां के सांसद राहुल गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री होंगे, लेकिन कब होंगे, ये कोई नहीं जानता। खुद राहुल गांधी भी नहीं।
अमेठी स्थित बारकोट के रामबरन कहते हैं, ‘’हमने इंदिरा को अपनी आंखों से देखा है। पहली बार से लेकर अब तक कांग्रेस को वोट दे रहे हैं, अब तो उनका नाती चुनाव लड़ रहा है। हम जब तक जिंदा हैं, तब तक तो कांग्रेस का साथ न छोड़ेंगे। बाकी उनकी किस्मत कि वो जीतें या हारें।‘’ इसी गांव के हुब्बा का कहना है कि ‘’हमारे लिए वोट देने का मतलब ही कांग्रेस होता है। इंदिरा हमें अपना परिवार मानती रहीं। राहुल भी हमें अपना परिवार ही मानते हैं, तो कहीं और वोट देने का तो सवाल नहीं है।‘’
इंदिरा और राजीव की याद अब भी अमेठी में जिंदा है। तीसरी पीढ़ी में हालांकि इस परिवार से थोड़ी निराशा दिखती है। नेहरू-गांधी परिवार द्वारा अमेठी में करवाए गए काम के सवाल पर नीरज कहते हैं, ‘’इंदिरा-राजीव जो करके गये थे, अमेठी उनकी वही थाती ढो रहा है। बाकी राहुल ने विकास के नाम पर कुछ खास नहीं किया, पिकनिक मनाने आते हैं और चले जाते हैं।‘’
इलाहाबाद,कानपुर, बनारस की अपेक्षा अमेठी तमाम छोटे शहरों जैसा ही एक आम शहर है। जब से गांधी परिवार ने इस क्षेत्र को अपनी सियासत के लिये चुना, तब से इस क्षेत्र की गिनती देश की सियासत के तमाम बड़े केंद्रों में होने लगी। कांग्रेस और अमेठी एक-दूसरे के पूरक माने जाने लगे। यहां के लोगों को लगता है कि इस परिवार से पहले अमेठी को पूछता ही कौन था। रामकुमार मानते हैं कि गांधी परिवार और उनके वारिसों की वजह से ही अमेठी देश-दुनिया में पहचाना जाता है।
कोई भी बड़ा नेता अगर किसी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करता है तो माना जाता है कि बुनियादी और सामाजिक रूप से उसका विकास होगा। इसको अमेठी का दुर्भाग्य माना जा सकता है कि राजनीति का सबसे प्रतिष्ठित खानदान और उसके वारिस कई दशकों से यहां के प्रतिनिधि हैं, लेकिन गरीबी, बेरोजगारी, भुखमरी यहां भी कुछ कम नहीं है।
तिलोई विधानसभा के गांव सरायमाधो की छदाना अपना टूटा-फूटा घर दिखाते हुए पूछती हैं, ‘’आप ही बताइये हम वोट देकर क्या करेंगे?’’ उन्हें न राहुल से कोई लेना-देना है, न भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी से। कुछ लोग हालांकि स्मृति ईरानी की ओर बेशक मुड़ गए हैं। चिलौली के हरदयाल इस बार बीजेपी को वोट देंगे। कारण पूछने पर वे कहते हैं, ‘’कांग्रेस को वोट देते-देते जिन्दगी बीत गई, लेकिन मिला क्या? राहुल 15 साल से सांसद हैं, लेकिन उन्होंने क्षेत्र के लिये किया क्या है? इन्दिराजी और राजीवजी के जमाने में जो हुआ, अभी तक बस वही चला आ रहा है।‘’
अमेठी के जगदीशपुर को इंडस्ट्रियल एरिया के तौर पर विकसित किया गया था। आज से कोई बीसेक साल पहले जब ट्रेन अमेठी से होकर गुजरती थी तो रात के वक्त अंधेरे के साम्राज्य में जगमग रोशन एक टापूनुमा क्षेत्र दिखता था। नियमित सवारी करने वाले बत्तियां देखकर समझ जाते थे कि जगदीशपुर आ गया। यहां शुरुआत में कुछ बड़े उद्योग लगे जिससे अमेठी के लोगों को लगा कि अब शायद उनकी किस्मत बदल जाए, लेकिन जल्द ही उनका दुर्भाग्य शुरू हो गया।
शुरुआत में स्थापित कुछ उद्योगों के बाद कोई नया उद्योग तो नहीं लगा, अलबत्ता पुराने जरूर बन्द हो गए। मालविका स्टील, सूर्या लाइट, स्टील अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया, आरिफ सीमेंट फैक्ट्री जैसी बड़ी और वृहद रोजगार देने वाली फैक्ट्रियां अब लगभग बन्द हैं, जो करीब 20 हजार लोगों को रोजगार उपलब्ध करा सकती थीं। अकेले सार्वजनिक उपक्रम भेल और एसीसी सीमेंट फैक्ट्री ही स्थानीय लोगों को एकमुश्त रोजगार उपलब्ध कराती हैं। सम्राट साइकिल फैक्ट्री (गौरीगंज), उषा इलेक्ट्रिफायर (गौरीगंज-बाबूगंज), वेस्पा स्कूटर फैक्ट्री (सलोन) अमेठी में अतीत में बंद होने वाली अन्य फैक्ट्रियां है, जिसने हजारों लोगों को बेरोजगार कर दिया।
जगदीशपुर के मुख्य बाजार में मिठाई की दुकान चलाने वाले कल्लू सड़क की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं, ‘ये जो सड़क है न, याद भी नहीं कि कब बनी थी।’ सलोन में सालों पहले बंद हो चुकी वेस्पा स्कूटर की फैक्ट्री में काम करने वाले 60 साल के जुबैर का कहना है कि जब वेस्पा की फैक्ट्री यहां लगी, तो हजारों लोगों को कई तरह का काम मिला। कुछ को फ़ैक्ट्री में, कुछ को उसके बाहर, लेकिन उसके बन्द होने के बाद रोजगार नहीं मिला, अब छोटा काम करके किसी तरह अपना पेट पाल रहे हैं।
जगदीशपुर विधानसभा के माठा गांव की कहानी विकास और सभ्यता के दावों की पोल खोलती है। आजादी के 70 साल बाद भी यहां तक पहुंचने के लिये न सड़क है और न कोई साधन। यहां पहुंचना अपने आप में किसी संघर्ष से कम नहीं। माठा के बारे में अरुण कहते हैं कि इसका भगवान ही मालिक है।
अमेठी से लेकर दिल्ली तक सभी के मन में सिर्फ एक सवाल है- क्या राहुल गांधी इस बार अमेठी से चुनाव हार जाएंगे? इसका जवाब तो 23 मई को मिलेगा, लेकिन फिलहाल इसकी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। अमेठी के राजनीतिक हालात ऐसे हैं कि यहां मुकाबला सीधा भाजपा और कांग्रेस के बीच है। सपा-बसपा के गठबंधन ने गांधी परिवार की प्रतिष्ठा को देखते हुए इस सीट पर अपने प्रत्याशी नहीं उतारे। बीजेपी यहां राहुल गांधी को हराने के लिये पूरे जी-जान से जुटी है।
अभी हाल में अमेठी के एक क्षेत्र में आग लग गई। उस दिन स्मृति ईरानी की हैंडपंप चलाती हुई तस्वीर सोशल मीडिया पर खूब चली। भाजपा कार्यकर्ताओं का मानना है कि हो न हो, इस एक घटना से अचानक भाजपा के वोटों में बीसेक हजार का इजाफा हो गया है, हालांकि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के दावे अलग हैं। कांग्रेस के एक कार्यकर्ता का कहना है कि राहुल गांधी यहां कम से कम तीन लाख वोटों से जीत रहे हैं। वे कहते हैं, ‘’जहां दमकल का काम है, वहां आप हैंडपंप से बाल्टी भर के आग बुझाने का प्रचार कर रहे हैं। जनता इतनी मूर्ख नहीं है।‘’
#WATCH Amethi: Union Minister and BJP Lok Sabha MP candidate from Amethi, visits the fire-affected fields in Purab Dwara village; meets the locals affected. Fire-fighting operations are still underway pic.twitter.com/JARKp5k2mh
— ANI UP/Uttarakhand (@ANINewsUP) April 28, 2019
अमेठी के राकेश अग्रवाल हालांकि राहुल से नाराज़ हैं। वे कहते हैं, ‘’देखिये, उन्होंने यहां के लिये किया तो कुछ है नहीं। पिछले 15 साल से हम उनको जिता रहे हैं। यहां के लोग चाहते हैं कि उनका शहर भी आगे बढ़े, इसका भी नाम हो, ऐसे में कुछ अच्छे की उम्मीद में अगर हम बीजेपी को वोट दें, तो कुछ गलत नहीं हैं न? स्मृति ईरानी राहुल जितनी न सही, लेकिन बड़ी नेता तो हैं ही।‘’
राहुल गांधी जहां पूरे देश में पार्टी के लिये प्रचार कर रहे हैं, वहीं स्मृति ईरानी पिछले एक हफ्ते से अमेठी में डेरा डाले हुए हैं और बूथ लेवल तक नजर बनाए हुए हैं। कांग्रेस के स्थानीय नेताओं से नाराज जनता उनको सुनने तक के लिये तैयार नहीं है और बाहर से राहुल का प्रचार करने आए कार्यकर्ताओं में भी स्थानीय समझ की कमी साफ दिख रही है। उधर स्मृति ईरानी रोज़ाना कांग्रेस के नाराज स्थानीय नेताओं को पार्टी में शामिल कर रही हैं।
राहुल गांधी का दो जगह से चुनाव लड़ना भी अमेठी वालों को रास नहीं आया है। वे इससे नाराजगी जता रहे हैं। अमेठी शहर के शिराज अहमद सवाल उठाते हैं, ‘’हमने राहुल गांधी को इतनी बार सांसद बनाया, लेकिन वे वायनाड़ चले गये। क्या उन्हें यहां की जनता पर विश्वास नहीं है? और अगर नहीं है, तो उन्होंने ऐसा क्या किया, जो यहां की जनता उनसे इतनी नाराज है?’’
अमेठी की पुरानी पीढ़ी अभी इन्दिरा और राजीव के जमाने में ही है और उनको बिसारने के मूड में नहीं दिख रही, वहीं नई पीढ़ी का राहुल और गांधी परिवार से ऐसा कोई खास लगाव नहीं है। उसकी प्राथमिकता में है कि जो भी अमेठी का विकास करेगा, वोट उसको दिया जाएगा।
अंगुरी के राजू यादव बताते हैं कि वे हमेशा से सपा को वोट देते रहे हैं, लेकिन इस बार सपा चुनाव नहीं लड़ रही है तो बीजेपी को वोट देंगे। वहीं बारकोट के गंगा पासी का कहना है कि वह कांग्रेस को वोट देते रहे हैं, लेकिन इस बार बीजेपी को वोट देंगे। कारण पूछ्ने पर कहते हैं, ‘’मैं कांग्रेस का सदस्य हूं, बीडीसी का सदस्य हूं, लेकिन मेरे घर में पीने के पानी की सुविधा नहीं थी।‘’ भाजपा सरकार के काम बताते हुए वे कहते हैं कि उनको उज्ज्वला योजना, स्वास्थ्य बीमा का लाभ मिला, भाजपा के सदस्य ने पानी का नल लगवाया है, तो उसी को वोट क्यों न दें?
उज्ज्वला योजना के तहत मिले गैस चूल्हे और स्वच्छ भारत अभियान के तहत बने शौचालयों ने बीजेपी के पक्ष में लोगों का मूड बदला है, लेकिन सबसे ज्यादा असर प्रधानमंत्री किसान योजना के तहत किसानों को मिल रहे दो हजार रुपए का दिख रहा है। कांग्रेस को सपा-बसपा के चुनाव न लड़ने का फायदा बेशक मिल रहा है, लेकिन बीजेपी ने उसमें सेंध लगाकर राहुल की राह मुश्किल कर दी है। कांग्रेस मुसलमानों के वोट को पूरी तरह से अपने पक्ष में मानकर चल रही है। मुसलमानों के अलावा यहां ब्राह्मण-पासी-मौर्या-कुशवाहा जातिगत आधार पर अच्छा दखल रखते हैं। इनमें से पासी और मौर्या जहां बीजेपी की तरफ झुके हुए हैं, वहीं ब्राह्मणों ने अभी तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं और दोनों पार्टियों में आवाजाही बना कर रखी हुई है।
सपा के मैदान में न होने से उम्मीद थी कि उसका वोट कांग्रेस को जाएगा, लेकिन बीजेपी ने इसमें सेंधमारी कर कांग्रेस की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। दूसरी ओर बीजेपी के कार्यकर्ता भी कम पलटी नहीं मार रहे। खरावां बूथ के बीजेपी अध्यक्ष अनिल मिश्र कई साल से बीजेपी में थे, लेकिन गांव में हुई स्मृति ईरानी की सभा में उचित सम्मान न मिलने से उनके जाने के तुरंत बाद कांग्रेस में शामिल हो गये। इन बनती-बिगड़ती परिस्थितियों से दोनों पार्टियों की चिंता बढ़ी हुई है।
अमन कुमार मीडियाविजिल से संवाददाता हैं और फिलहाल उत्तर प्रदेश के ज़मीनी हालात का जायज़ा ले रहे हैं