अभिषेक श्रीवास्तव
देश के हिंदीभाषी इलाकों में महज एक फिल्म ‘पद्मावत’ को लेकर हो रही हिंसा और प्रदर्शनों के शोर में उत्तर-पूर्व से आ रही चिंताजनक खबरों को एक साथ बड़ी कुशलता के साथ दबा दिया गया है। असम के पहाड़ी जिले दीमा हसाओ की सड़कों पर ”आरएसएस गो बैक” यानी ”आरएसएस वापस जाओ” के नारे लग रहे हैं, लेकिन ये तस्वीरें टीवी से पूरी तरह नदारद हैं और प्रिंट माध्यम में भी तकरीबन नहीं के बराबर हैं। नगालैंड और मणिपुर के कुछ उग्रवादी गुटों ने गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की घोषणा यह कहते हुए की है कि उन्होंने इस गणतंत्र का हिस्सा होना स्वेच्छा से नहीं चुना था। उधर, नगालैंड के सबसे बड़े उग्रवादी समूह एनएससीएन(आइएम) ने एक बयान जारी करते हुए यहां विधानसभा चुनावों के बहिष्कार की बात की है और कहा है कि चुनाव से पहले नगा समझौते को लागू कर दिया जाना चाहिए।
सारा मसला उस नगा समझौते पर अटका पड़ा है जिसकी घोषणा आज से दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में की थी और कहा था कि भारत सरकार ने नगा गुटों के साथ शांति का एक फॉर्मूला निकाल लिया है। वह फॉर्मूला क्या था, इस पर दो साल से अटकलें लग रही हैं लेकिन दीमा हसाओ सड़कों पर उतरे नगाओं की आवाज़ और बैनर-पोस्टर में झलक रहा एक शख्स का नाम यह बताने के लिए काफी है कि नगा समझौते के साथ आरएसएस का रिश्ता क्या है और आखिर इस मामले में भारत सरकार ने कैसे नगाओं के साथ धोखा किया है।
करीब ढाई साल पहले 3 अगस्त 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्विटर पर अचानक एलान किया था कि उसने नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) के साथ एक समझौता कर लिया है और यह संधि ”न केवल समस्या का अंत होगी बल्कि एक नए भविष्य का आरंभ भी होगी”। इस नगा संधि पर 3 अगस्त 2015 को दिल्ली में भारत सरकार के गृह मंत्रालय और एनएससीएन(आइएम) ने दस्तख़त किए थे, लेकिन इसके इर्द-गिर्द जिस किस्म की गोपनीयता बरती गई थी उसे लेकर नगालैंड और उत्तर-पूर्व के कई संगठनों के बीच आशंकाएं व्याप्त थीं कि कहीं केंद्र इन राज्यों की सरहद के साथ छेड़छाड़ कर के एनएससीएन(आइएम) की बहुत पुरानी नगालिम यानी ग्रेटर नगालैंड वाली मांग के आगे घुटने न टेक दे। नगालिम के तहत उन नगा बहुल इलाकों को जोड़ने की मांग की जाती रही है जो असम, अरुणाचल और मणिपुर में आते हैं। वैसे, पहले इन इलाकों में म्यांमा के कुछ इलाकों की भी चर्चा होती रही है।
अब चुनाव आयोग ने पिछले दिनों जैसे ही नगालैंड, त्रिपुरा और मेघालय में विधानसभा चुनावों का एलान किया है, वैसे ही इस बात की चर्चा ने जोर पकड़ी कि आखिर उस बहुप्रतीक्षित नगा समझौते का क्या होगा। कुछ संगठनों ने दिल्ली को लिखकर भेजा कि जब तक समझौता लागू नहीं हो जाता, तब तक चुनाव टालें जाएं और राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए। इस बीच एक चौंकाने वाले घटनाक्रम में आरएसएस की ओर से नगा समझौते का एक मसौदा दस्तावेज़ सामने रखा गया जिसे उत्तर-पूर्व में चार दशक से कथित रूप से सक्रिय संघ के कार्यकर्ता जगदम्बा मल्ल ने तैयार किया है। असम की सड़कों पर इन्हीं सज्जन के खिलाफ पिछले दो दिनों से नारे लग रहे हैं और ”आरएसएस वापस जाओ” की मांग की जा रही है।
जगदम्बा मल्ल पिछले दिनों उत्तर-पूर्व में बीजेपी की चुनावी घुसपैठ में अहम व निर्णायक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति हैं। उन्होंने दि वायर को बताया है कि नगा संधि का प्रस्तुत मसौदा दस्तावेज़ उनका ”निजी प्रयास” है जो ”45 साल से ज्यादा समय तक नगा मसले पर उनके अध्ययन” की उपज है। मल्ल कहते हैं कि केंद्र को समझौता लागू करने के लिए अंतिम समयसीमा 31 जनवरी, 2018 की तय करनी चाहिए। इस समय सीमा में अब केवल छह दिन का वक्त शेष है जबकि नगालैंड सहित दो अन्य राज्यों में चुनाव आचार संहिता पहले ही लग चुकी है।
प्रस्तावित मसौदे में केंद्र के साथ वार्ताकारों की सूची में न केवल एनएससीएन(आइएम) बल्कि खपलां गुट, एनएससीएन(पुनर्गठित) और नगा नेशनल काउंसिल के दो धड़ों समेत 12 अन्य नगा समूहों को भी जोड़ता है। मल्ल के मुताबिक प्रस्तावित मसौदे पर इन सभी के दस्तखत होने हैं। ध्यान रहे कि एनएससीएन (आइएम) के अध्यक्ष इसाक चिशी स्वू और खपलांग गुट के मुखिया खपलांग की पिछले दिनों मौत हो चुकी है।
मल्ल ने प्रस्ताव दिया है कि नगालैंड के पांच सीमावर्ती जिलों के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर एक सीमांत नगालैंड नाम के केंद्र शासित प्रदेश का गठन किया जाए। यह नगालिम की मांग के एकदम खिलाफ है और इसके चलते सीमावर्ती राज्यों को भी दिक्कत होगी, हालांकि मल्ल का कहना है कि उन्होंने ऐसा कर के ग्रेटर नगालैंड यानी नगालिम के पुराने सवाल को ही संबोधित किया है। इसी बात ने मणिपुर के नगालैंड से लगे जिलों सेनापति, तामेंगलांग, उखरुल, चंदेल, नोनी, कामजांग और तेंगनोपाल के लोगों को चिंता में डाल दिया है जबकि दीमा हसाओ के लोग सड़कों पर उतर चुके हैं और आज उनहोंने 12 घंटे के बंद का एलान कर दिया है। पिछले महीने इस चिंता को लेकर मणिपुर के आठ नागरिक समाज समूहों का एक दल प्रधानमंत्री मोदी से मिला था और राज्य की सरहद को दोबारा तय करने का उसने विरोध किया था।
Raising Kukiland cry, KNF-N boycotts R-Day
KYKL, KCP, others ban R-Day celebrations
CorCom calls general strike on R-Day
केवल मणिपुर ही नहीं, असंतोष असम तक फैल गया है क्योंकि मल्ल के दस्तावेज़ में कहा गया है कि दस साल की अवधि के लिए एक ऐसी अथॉरिटी बनाई जाएगी जो मणिपुर के सात नगा बहुल जिलों, अरुणाचल के दो नगा बहुल जिलों चांगलांग और तिरप तथा असम के एक जिले दीमा हसाओ में विकास परियोजनाओं का संचालन करेगी।
इस बीच कुकीलैंड की मांग को लेकर केएनएफ-एन नाम के संगठन ने गणतंत्र दिवस का बहिष्कार करने का आवाहन किया है। एक बयान में संगठन ने कहा है कि 25 जनवरी की शाम से लेकर 26 जनवरी तक मणिपुर से गुजरने वाले सभी राष्ट्रीय राजमार्गों और स्टेट हाइवे को बंद कर दिया जाएगा। इसके अलावा जिसे वेस्टर्न साउथ-ईस्ट एशियाई क्षेत्र कहा जाता है जिसके तहत उत्तर-पूर्वी भारत, बांग्लादेश और म्यांमा के कुठ इलाके आते हैं, वहां केवाइकेएल, केसीपी, एचएनएलसी, एनएलएफटी और पीडीसीके नामक उग्रवादी संगठनों ने एक संयुक्त बयान जारी करते हुए गणतंत्र दिवस के बहिष्कार की बात कही है।
इन संगठनों ने संयुक्त बयान में कहा है कि डब्लूएसईए का क्षेत्र कभी भी भारतीय गणतंत्र का हिस्सा नहीं होना चाहता था और सही मायने में यहां कभी भी उन्हें गणतांत्रिक शासन का सुख नहीं मिला है। बयान कहता है कि इस क्षेत्र के लोगों का मुख्य कार्यभार कथित भारतीय उपनिवेशवाद से लोगों की मानसिकता को आजाद कराना है। मनोवैज्ञानिक उपनिवेशवाद से मुक्ति के बाद उपनिवेशवाद से राजनीतिक मुक्ति की राह खुलेगी।
विडंबना है कि देश के सात राज्य इस वक्त एक ऐसे संकट से गुज़र रहे हैं जहां चुनाव तक दांव पर लगा पड़ा है और गणतंत्र दिवस पर बंद की घोषणा की गई है, लेकिन समूचा मीडिया उत्तर-पूर्व से बेख़बर एक फिल्म के प्रदर्शन में फंसा पड़ा है। टेलिग्राफ, इंडिया टुडे और दि वायर जैसे कुछ वेबसाइटों को छोड़ दें तो कहीं भी नगा संधि पर हो रहे टकराव की खबर मौजूद नहीं है। दीमा हसाओ में आरएसएस के खिलाफ सड़क पर उतरे लोगों की तस्वीरें तो खैर यहां भी नदारद हैं।