सुप्रीम कोर्ट में जज लोया की फाइल, महाराष्‍ट्र सरकार के जमा किए दस्‍तावेज़ों में घपला



अतुल देव / The Caravan / 26 जनवरी 2018

जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की मौत से जुड़ी सुनवाई के सिलसिले में महाराष्‍ट्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में जमा कराए गए दस्‍तावेज़ कई मामलों में एक-दूसरे के विरोधाभासी हैं। ये कागज़ात एक रिपोर्ट के साथ जमा किए गए हैं जिसे महाराष्‍ट्र राज्‍य गुप्‍तचर विभाग (एसआइडी) के आयुक्‍त संजय बर्वे ने राज्‍य के गृह विभाग के अतिरिक्‍त मुख्‍य सचिव के लिए तैयार किया है। इन काग़ज़ात की प्रतियां उन याचिकाकर्ताओं को सोंपी गई हैं जिन्‍होंने नागपुर में 2014 में लोया की रहस्‍यमय मौत की जांच की मांग की थी। ये काग़ज़ात केस की परिस्थितियों पर कई और सवाल खड़े कर रहे हैं तथा द कारवां द्वारा इस मामले में उजागर की गई चिंताजनक विसंगतियों में से एक का भी समाधान कर पाने में नाकाम हैं। इनसे यह भी संकेत मिलता है कि रिकार्ड में जानबूझ कर ऐसी हेरफेर की गई रही होगी जिससे लोया को दिल का दौरा पड़ने से हुई स्‍वाभाविक मौत की एक कहानी गढ़ी जा सके।

बयान कहता है कि दांडे अस्‍पताल की ईसीजी मशीन काम नहीं कर रही थी

जो काग़ज़ात जमा किए गए हैं, उनमें उन चार जजों के बयानात हैं जिनका दावा है कि वे आखिरी घंटे तक लोया के साथ मौजूद थे- श्रीकांत कुलकर्णी, एसएम मोदक, वीसी बर्डे और रुपेश राठी। इनमें से किसी भी जज ने आज तक न कोई बयान दिया है और न ही अपना कोई बयान दर्ज कराया है। राठी ने एसआइडी को हाथ से लिखा एक बयान सौंपा है जिसमें उन्‍होंने कहा है कि वे 2014 में नागपुर में कार्यरत थे और यह कि जब लोया को उनकी मौत की रात वहां ले जाया गया, तब दांडे अस्‍पताल की ईसीजी मशीन काम नहीं कर रही थी।

जस्टिस लोया की संदिग्ध मौत पर मीडिया की रिपोर्टिंग में विसंगति और विरोधाभास की धुंध

राठी के बयान में कहा गया है कि दांडे अस्‍पताल ”पहले तल पर था इसीलिए हम सभी सीढि़यों से चढ़कर वहां पहुंचे। वहां एक सहायक डॉक्‍टर मौजूद था। श्री लोया ने सीने में तेज़ दर्द की बात कही। उनके चेहरे पर पसीना हो रहा था और वे लगातार सीने में ज्‍यादा दर्द और दिल जलने की शिकायत कर रहे थे। उस वक्‍त डॉक्‍टर ने उनका ईसीजी करने की कोशिश की लेकिन ईसीजी मशीन के नोड टूटे हुए थे। डॉक्‍टर ने कोशिश की और कुछ वक्‍त बरबाद किया लेकिन मशीन काम नहीं कर रही थी।” सुप्रीम कोर्ट में जमा राठी के दो पन्‍ने के बयान में ये पंक्तियां पहले पन्‍ने पर सबसे नीचे मौजूद हैं। साफ़ दिख रहा है कि महाराष्‍ट्र सरकार ने याचिकाकर्ताओं को बयान की जो प्रति दी है, उसमें पहले पन्‍ने पर यह बात अजीबोगरीब तरीके से कटी हुई दर्ज है।

जज राठी का बयान लोया की बहन डॉ. अनुराधा बियाणी के द कारवां को दिए बयान से मेल खाता है जिसे नवंबर 2017 में पत्रिका में रिपोर्ट किया गया था। बियाणी ने बताया था कि लोया की मौत के ठीक बाद जज के परिवार को सूचना दे दी गई थी कि दांडे अस्‍पताल में उनका कोई ईसीजी नहीं किया गया क्‍योंकि ”ईसीजी काम नहीं कर रहा था।”

इस बीच इंडियन एक्‍सप्रेस ने लोया परिवार की चिंताओं की उपेक्षा करते हुए उसे बदनाम करने की कोशिश में एक ईसीजी चार्ट यह कहते हुए प्रकाशित कर डाला कि यह दांडे अस्‍पताल में लोया का ईसीजी है। ईसीजी पर पड़े समय और तारीख के मुताबिक ईसीजी 30 नवंबर, 2014 की सुबह किया गया था जबकि लोया की मौत 30 नवंबर और 1 दिसंबर की दरमियानी रात हुई थी। बाद में इंडियन एक्‍सप्रेस ने दांडे अस्‍पताल के मालिक के हवाले से बताया कि यह एक ”तकनीकी गड़बड़ी” है। इसी ईसीजी चार्ट के बारे में नागपुर के पुलिस आयुक्‍त ने मीडिया को दिए अपने बयान में उद्धृत किया, जिसे एनडीटीवी ने रिपोर्ट करते हुए कहा कि ”उसे ईसीजी की रिपोर्ट नागपुर पुलिस ने दी है।”

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एसआइडी को दिए अपने बयानात में मोदक और कुलकर्णी ईसीजी का कोई जि़क्र तक नहीं करते। बर्डे सरसरी तौर पर जि़क्र करते हैं कि दांडे अस्‍पताल में ड्यूटी पर तैनात मेडिकल अफसर ने लोया का मेडिकल परीक्षण किया जिसमें ईसीजी भी शामिल था। खुद एसआइडी की रिपोर्ट ईसीजी टेस्‍ट का कोई जि़क्र नहीं करती है।

राठी की प्रत्‍यक्षदर्शी गवाही कि ”मशीन काम नहीं कर रही थी”, ईसीजी चार्ट की विश्‍वसनीयता पर संदेह करने की ज़मीन को और पुख्‍़ता करती है। यदि वास्‍तव में दांडे अस्‍पताल में लोया का ईसीजी हुआ ही नहीं, तो यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि कि आखिर कैसे ऐसे किसी परीक्षण से निकला एक कथित चार्ट जिसके हाशये पर हाथ से ”दांडे अस्‍पताल” लिखा है, चुनिंदा मीडिया प्रतिष्‍ठानों तक द कारवां में पहली स्‍टोरी आने के हफ्ते भर के भीतर पहुंचा। दिसंबर में प्रकाशित एक फॉलो अप रिपोर्ट में द कारवां ने लोया की मौत से जुड़े प्रासंगिक रिकार्डों में संभावित हेरफेर के संकेतों की ओर इशारा किया था। ध्‍यान देने लायक बात है कि उक्‍त रिपोर्ट में संभावित छेड़छाड़ वाले जिन रिकॉर्ड की बात की गई है- मुख्‍यत: ईसीजी चार्ट, नागपुर में लोया जिस गेस्‍टहाउस में रुके थे वहां की उपस्थिति पंजिका के पन्‍ने और उनके पंचनामे का पन्‍ना, आदि- उसमें से एक भी काग़ज़ सुप्रीम कोर्ट में जमा 60 पन्‍नों के दस्‍तावेज़ में शामिल नहीं है। जमा किए गए दस्‍तावेज़ों की सूची में लोया के पंचनामे का जि़क्र है लेकिन अदालत के सामने अब तक केवल आंशिक दस्‍तावेज़ ही रखे गए हैं। जमा किए गए दस्‍तावेज़ों में पेज संख्‍या 25 पर पंचनामे का पहला पन्‍ना लगा बताया गया है लेकिन यह पन्‍ना मौजूद ही नहीं है। द कारवां की दिसंबर वाली रिपोर्ट में लोया के पंचनामा रिपोर्ट का पहला पन्‍ना छपा था जिसमें बताया गया था कि उस पर लिखी तारीख पर दोबारा लिखाई की गई है। सुप्रीम कोर्ट ने 22 जनवरी को लोया संबंधी याचिकाओं के बारे में जो निर्देश दिया था, उसके मद्देनज़र एक याचिकाकर्ता ने जब अदालत में गायब पन्‍ने का सवाल उठाया तो महाराष्‍ट्र सरकार की पैरवी कर रहे वकीलों हरीश साल्‍वे और मुकुल रोहतगी के एक सहायक ने जवाब दिया कि उसे ”जल्‍द ही उपलब्‍ध करा दिया जाएगा”। द कारवां को अब तक पता नहीं चल सका है कि याचिकाकर्ताओं को गायब पन्‍ने की प्रति मिल पाई है या नही।

अपनी आखिरी रात लोया ने कथित रूप से सीने में दर्द की जब शिकायत की तो उन्‍हें कथित तौर पर जिस पहली जगह ले जाया गया वह दांडे अस्‍पताल था। वहां से उन्‍हें नागपुर के मेडिट्रिना अस्‍पताल रेफर कर दिया गया। मेडिट्रिना में मेडिको-लीगल कंसल्‍टेंट निनाद गवांडे ने मुझे 5 दिसंबर 2017 को बताया कि लोया की मौत की रात उनके साथ अस्‍पताल में कोई ईसीजी चार्ट नहीं लाया गया था। उन्‍होंने कहा, ”मैंने वह ईसीजी नहीं देखा उस वक्‍त।” गवांडे ने बताया कि ईसीजी चार्ट अगले दिन ”लाया गया”। वे बोले, ”उसमें कुछ बदलाव दिख रहे थे… म्‍योकार्डियल इनफार्क्‍शन का संकेत था। मान लें कि उनके पास पहले का ईसीजी था ही, तो मेरे खयाल से… हमने भी अपने निदान में मरीज़ में म्‍योकार्डियल इनफार्क्‍शन पाया होता और बहुत संभव होता कि इस बारे में हम पुलिस को सूचित नहीं करते। ऐसा तभी होता जब ईसीजी उस वक्‍त होता। उस वक्‍त हालांकि असल बात यह थी कि कोई ईसीजी नहीं था।” मैंने उसी वक्‍त गवांडे से पूछा था और इस बात की पुष्टि उन्‍होंने की थी कि दांडे अस्‍पताल का ईसीजी लोया की मौत के एक दिन बाद मेडिट्रिना पहुंचा था। उन्‍होंने जवाब दिया था, ”मैंने उसे अगले दिन देखा, जब वह यहां आया लेकिन कब आया, मैं पक्‍के तौर पर नहीं कह सकता क्‍योंकि मेरे खयाल से ईसीजी मरीज़ की मौत की घोषणा से पहले तो नहीं आया था क्‍योंकि मैंने उसे तब तक नहीं देखा था। उस वक्‍त ईसीजी यहां नहीं था।”

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मेडिट्रिना से जारी किए गए मेडिको-लीगल प्रमाण पत्र के नीचे गवांडे के दस्‍तखत हैं। उस पर 1 दिसंबर 2014 की तारीख पड़ी है। इसे सुप्रीम कोर्ट में जमा किया गया है। इस काग़ज़ को डेथ समरी (यानी मौत की संक्षिप्‍त रिपोर्ट) के आधार पर तैयार किया गया था। डेथ समरी भी मेडिट्रिना में तैयार की गई थी जिसमें ”मौत का कारण पता करने के लिए एमएलसी और पंचनामे” की सिफारिश की गई थी। सुप्रीम कोर्ट में डेथ समरी भी जमा कराई गई है, जो कहती है, ”मरीज़ को दांडे अस्‍पताल ले जाया गया। ईसीजी हुआ –  s/o tall ‘T’ on ant (इसे पढ़ा नहीं जा सकता) … शिफ्ट करते वक्‍त मरीज़ कोलैप्‍स कर गया।” मोटे तौर पर ऐसा लगता है कि गवांडे ने जज की मौत के दिन ही ईसीजी चार्ट के आधार पर मेडिको-लीगल रिपोर्ट तैयार की रही होगी जबकि साक्षात्‍कार में उन्‍होंने मुझे बताया था कि लोया की मौत के एक दिन बाद ही उन्‍हें दांडे अस्‍पताल की ईसीजी रिपोर्ट देखने को मिली थी।

यह विरोधाभास मेडिट्रिना से सुप्रीम कोर्ट में जमा कराए दस्‍तावेज़ों की विश्‍वसनीयता पर भी गंभीर सवाल खड़े करता है। आखिर मेडिट्रिना ने लोया की मौत के वक्‍त तैयार किए गए एक दस्‍तावेज़ में एक ऐसे काग़ज़ का जि़क्र कैसे कर दिया जो उस वक्‍त अस्‍पताल में उपलब्‍ध ही नहीं था?


यह स्‍टोरी द कारवां पर 26 जनवरी 2018 को प्रकाशित स्‍टोरी का एक अंश है और साभार है।

(जारी)