कासगंज का एक युवा सचेतक जिसे सब ने अनसुना कर दिया…



संकल्‍प फाउंडेशन के पदाधिकारी का दावा- केंद्रीय गृहमंत्री, यूपी के मुख्‍यमंत्री और यूपी पुलिस को दंगे से पांच दिन पहले ही इसके बारे में आगाह कर दिया गया था

 

अभिषेक श्रीवास्‍तव / कासगंज से लौटकर

दंगे की आग में अब तक झुलस रहे उत्‍तर प्रदेश के कासगंज से एक ऐसा डिजिटल साक्ष्‍य सामने आया है जो दिखाता है कि केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, उत्‍तर प्रदेश के मुख्‍यमंत्री योगी आदित्‍यनाथ और यूपी पुलिस को गणतंत्र दिवस पर संभावित सांप्रदायिक हिंसा की चेतावनी घटना से पांच दिन पहले ही दी जा चुकी थी। इस साक्ष्‍य ने मौजूदा दंगों में सरकार और पुलिस प्रशासन की भूमिका के बारे सवाल खड़े कर दिए हैं जिसमें अभिषेक उर्फ चंदन गुप्‍ता नाम के एक नवयुवक की जान चली गई थी।

मृतक गुप्‍ता के एक करीबी दोस्‍त और सीनियर ने अज्ञात रहने की शर्त पर यह साक्ष्‍य उपलब्‍ध कराया है। उसे डर है कि अगर उसकी पहचान मीडिया में खुल गई तो उसे अपवने समुदाय सहित प्रशासन की ओर से नतीजे भुगतने पड़ सकते हैं। यह युवक संकल्‍प फाउंडेशन नाम के उसी एनजीओ का पदाध्रिाकारी है जिसमें चंदन गुप्‍ता सक्रिय सदस्‍य था। सोमवार को कासगंज में इस रिपोर्टर के साथ हुई निजी बातचीत में उसने विस्‍तार से बताया कि कैसे उसने लगातार किए अपने ट्वीट में सांप्रदायिक हिंसा की आशंका जताते हुए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, यूपी के मुख्‍यमंत्री आदित्‍यनाथ और यूपी पुलिस के आधिकारिक ट्विटर हैंडल को बाकायदा टैग किया था। इतना ही नहीं, उसने यही चेतावनी कासगंज के पुलिस अधीक्षक को फेसबुक मैसेंजर पर भी दी थी।

गणतंत्र दिवस यानी जिस दिन दंगा भड़का, उससे कथित रूप से पांच दिन पहले जो पहला ट्वीट किया गया उसमें @myogiadityanath और @Uppolice को टैग करते हुए लिखा गया, ”कृपया इस मामले को देखें। यह मामला हिंदु-मुस्लिम की भीषण शक्‍ल ले सकता है।” दूसरा ट्वीट उसने फेसबुक कमेंटों के लिंक डालते हुए @Uppolice और @uppol को किया, ”कृपया सारे कमेंट देख जाएं।” तीसरा ट्वीट @rajnathsingh और @Uppolice को टैग है जो कहता है, ”सर, कृपया इस मामले को देखें। यहां भारी हिंदू-मुस्लिम मामला बन सकता है।”

जब 26 जनवरी को दंगा शुरू हुआ, उसके कुछ घंटे बाद दोपहर 2.22 पर उक्‍त युवक ने अपने फेसबुक पेज पर एक लंबी पोस्‍ट लिखी थी। इस फेसबुक पेज पर इसके विवरण में ”पॉलिटिशियन” यानी नेता लिखा हुआ है और इसके 8000 से ज्‍यादा फॉलोवर हैं। पोस्‍ट कहती है:

” कासगंज मे हुये हिन्दू मुसलमान दंगे की आशंका मैने पहले ही जतायी थी, मेने tweet करके माननीय मुख्यमंत्री जी, माननीय ग्रहमंत्री जी, यू पी पुलिस और नगर के IPS अधिकारी जी से मामले को देखने को कहा था| मेरी बात को गंभीरता से किसी ने नहीं लिया| ये दंगा सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की लापरवाही से हुआ है|”

यह फेसबुक पोस्‍ट अब भी उसके पेज पर जस का तस है जिसमें यूपी पुलिस, मुख्‍यमंत्री और केंद्रीय गृहमंत्री को किए उसके ट्वीट के स्‍क्रीनशॉट बतौर साक्ष्‍य लगे हैं। दिलचस्‍प है कि इस पोस्‍ट को कुल 51 बार शेयर किया गया है और ऐसा करने वाले अधिकतर युवा न केवल कासगंज के हैं, बल्कि वे भी हैं जो कासगंज के मूल निवासी हैं लेकिन दिल्‍ली में रहते हैं।

ज़ाहिर है, फिर यह कोई संयोग नहीं कि सोमवार को जब कासगंज के जिला मजिस्‍ट्रेट शहर के मुख्‍य बाजार के बीच स्थित शिवालय गली में मृतक चंदन गुप्‍ता के निवास पर उसके पिता को 20 लाख का चेक बतौर मुआवजा देने पहुंचे, तो उन्‍हें व्‍यापारी समुदाय की ओर से काफी विरोध का सामना करना पड़ा। यह मामूली झड़प का दृश्‍य राजनीतिक सुर लेने लगा जब स्‍थानीय जनता ने ”योगी मुर्दाबाद” के नारे लगाने शुरू कर दिए। मामला बिगड़ सकता था लेकिन माहौल को भांपते हुए अर्धसैन्‍य बल आरएएफ की टीमें तुरंत बुला भेजी गईं और समूचे बाजार में उनकी कतारें पलक झपकते ही तैनात हो गईं। कासगंज का व्‍यापारी समुदाय चंदन गुप्‍ता की मोत पर इसलिए भी आक्रोशित है क्‍योंकि लोग इस बात से अच्‍छे से वाकिफ़ हैं कि चंदन के दोस्‍त की तरफ़ से जिला प्रशासन और सरकार को आगाह किया जा चुका था। इसीलिए लोग अब सीधे उसकी मौत का जिम्‍मेदार प्रशासन को मान रहे हैं।

जो ट्विटर अलर्ट 26 जनवरी से बाकायदा पांच दिन पहले भेजा गया, उसकी एक पृष्‍ठभूमि भी है जिसे बताया जाना जरूरी है। ट्विटर पर शासन को अलर्ट करने वाले विसलब्‍लोवर युवक ने बातचीत में फेसबुक पर युवकों के बीच चली एक जंग के बारे में बताया। करीब दो हफ्ते तक दोनों समुदायों के युवक एक पोस्‍ट पर भिड़े रहे थे। दरअसल, कुछ दिनों पहले यूपी शासन का आदेश आया था कि धार्मिक स्‍थलों से लाउडस्‍पीकर हटाए जाएं। उसके मुताबिक एक हिंदू युवा इस बात से आक्रोशित था कि कासगंज के मंदिरों से तो लाउडस्‍पीकर हटा दिए गए लेकिन मस्जिदों पर उन्‍हें बने रहने दिया गया। इसी की प्रतिक्रिया में उसने एक नफ़रत भरी पोस्‍ट फेसबुक पर लिख मारी जिसकी दूसरे समुदाय की ओर से भीषण प्रतिक्रिया हुई। तकरीबन हज़ार कमेंट वाली उस पोस्‍ट में दोनों समुदायों के युवकों ने एक-दूसरे को अपने मोहल्‍ले में आने की चेतावनी दे डाली। पोस्‍ट लिखने वाले हिंदू युवा ने उस चेतावनी को वहीं स्‍वीकार कर लिया।

मृतक चंदन का दोस्‍त इस सब से काफी आहत हुआ। उसने दोनों पक्षों के लड़कों को बुलाकर सुलह करवायी और आगाह किया कि कुछ गड़बड़ नहीं होनी चाहिए। उसने बताया, ”शुरू में तो मैं आश्‍वस्‍त था कि लड़के कुछ गलत नहीं करेंगे लेकिन एक जिम्‍मेदार नागरिक के बतौर मैंने सोचा कि अगर कुछ हो ही गया, तो कम से कम उसकी अग्रिम आशंका से प्रशासन को सचेत कर दिया जाए।” उसने बताया कि संकल्‍प का वरिष्‍ठ पदाधिकारी होने के बावजूद उसे 25 जनवरी की रात में लड़कों ने तिरंगा यात्रा निकालने की योजना से अवगत कराया। उसने कहा, ”संदेह के बावजूद मैंने उन्‍हें शुभकामनाएं दीं और अपने न आ पाने का खेद जताया क्‍योंकि मुझे सुबह साढे तीन बजे साइट पर मजदूरों के बीच जाना था।”

अब तक कासगंज से जो भी कहानी निकलकर सामने आई है, कहीं भी इस पृष्‍ठभूमि का जि़क्र नहीं है जिसने वहां दंगे की ज़मीन तैयार की और अंतत: दंगा भड़का। इस रिपोर्टर के पास वे सारे साक्ष्‍य और विवरण मौजूद हैं जो बताते हैं कि एनजीओ संकल्‍प फाउंडेशन की तिरंगा रैली और बड्डू नगर के मुस्लिम युवाओं द्वारा तिराहे (जिसे कुछ मीडिया की खबरों में वीर अब्‍दुल हमीद नगर तिराहा बताया गया है लेकिन इसके बारे में स्‍वतंत्र पुष्टि नहीं की जा सकी है क्‍योंकि स्‍थानीय लोग इस नाम से परिचित नहीं थे) पर ध्‍वजारोहण- जो कि दोनों ही कथित रूप से कासगंज के इतिहास में पहली बार हुआ- दरअसल स्‍थानीय नौजवानों के बीच फेसबुक पर चली जंग की परिणति थी। यहां 26 जनवरी को जो कुछ भी घटा, वह दो समुदाय के युवकों की राजनीतिक महत्‍वाकांक्षा, खुदमुख्‍तारी और सिनेमाई प्रतिशोध का मिलाजुला परिणाम है। दोनों ही समुदाय पहले से इसके लिए तैयारी किए बैठे थे- एक समुदाय दूसरे के इलाके में घुसने को तैयार होकर गया था जबकि दूसरा समुदाय उसे मौके पर ही रोकने को रासता जाम कर के तैयार था ताकि बाइक रैली को आगे न जाने दिया जा सके।

इस तमाम पृष्‍ठभूमि से एक सचेत युवक पर्याप्‍त अवगत था। उसने वही किया जो एक जिम्‍मेदार नागरिक अपनी क्षमता के हिसाब से उन परिस्थितियों में अधिकतम कर सकता था। ऐसा जान पड़ता है कि बहुप्रचारित डिजिटल इंडिया और ई-गवर्नेंस ने बार-बार किए गए ट्वीट और टैग के अलर्ट को अनसुना कर के एक जिम्‍मेदार नागरिक को नाकाम कर डाला। इसके बाद जो हुआ, वह इतिहास बन चुका है।


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