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प्रकाश के रे
ओ जेरूसलम की बेटियों, मेरी ख़ातिर मत रोओ, बल्कि अपने लिए और अपने बच्चों के लिए रोओ. क्योंकि एक ऐसा भी वक़्त आएगा, जब तुम कहोगे, ‘ख़ुशकिस्मत हैं बाँझ औरतें, ख़ुशकिस्मत हैं वो कोखें जिनने जना नहीं और ख़ुशकिस्मत हैं वो छातियाँ जिनने दूध नहीं पिलाया.’
– ईसा मसीह (अपनी सलीब ढोते हुए)
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वर्ष 2016 में इजरायली पुरातत्व से जुड़े शोधकर्ताओं ने दावा किया था कि उन्होंने जेरूसलम की उस ‘तीसरी दीवार’ के एक हिस्से को खोज निकाला है जिससे होकर रोमनों ने 70 ईस्वी में शहर पर हमला किया था. जिस जगह को खोजा गया है, वहां बड़ी संख्या में पत्थरों के गोले मिले हैं, जो यह इंगित करते हैं कि रोमनों का हमला कितना जोरदार था. विद्वानों का मानना है कि यह जगह दीवार के ऊपर विद्रोहियों की चौकी रही होगी. रक्षकों पर काबू पाकर या उन्हें भगाकर टाइटस और उसके सैनिक इसी दीवार से घुसकर अंतोनिया किले पर काबिज हुए होंगे. उस किले के एक टावर पर उसने अपने रहने की जगह बनायी जहां से वह मंदिर और शहर को ठीक से देख सकता था. मंदिर प्रांगण में आग लग चुकी थी और टाइटस आग पर काबू पाने का हुक्म देकर जूडिया की राजकुमारी बेरेनिस के साथ आराम करने चला गया था. बेरेनिस की शादी दो बार पहले हो चुकी थी और दोनों दफा वह रानी रह चुकी थी.
फिलहाल वह अपने भाई और जूडिया के राजा अग्रिप्पा हेरोड के साथ टाइटस के खेमे में थी. जेरूसलम की इस लड़ाई के बाद हेरोड के वंश के साथ भाई-बहन की किस्मत तो बदलनी ही थी, यहूदी और ईसाई धर्म में भी बड़े बदलाव होने थे, और इस बदलाव से सैकड़ों साल बाद आने वाले इस्लाम को भी अछूता नहीं रहना था.
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बहरहाल, टाइटस के आदेश के अनुसार कुछ रोमन सैनिक आग बुझाने की जुगत कर रहे थे, तभी विद्रोहियों ने उन पर हमला कर दिया. घमासान लड़ाई में रोमनों ने विद्रोहियों को मंदिर में धकेल दिया. तभी जंग के माहौल और यहूदियों से घृणा के उन्माद में एक सिपाही ने जलता हुआ लकड़ी का एक टुकड़ा उठाया और दूसरे सिपाही का सहारा लेकर एक सुनहली खिड़की और उसके परदे में आग लगा दी. यह खिड़की असली मंदिर के इर्द-गिर्द बने कमरों से जुड़ी हुई थी. सुबह होते-होते आग मंदिर तक पहुंच चुकी थी. जोसेफस लिखता है कि टाइटस मंदिर को बचाने के लिए हजारों सैनिकों के साथ परिसर की ओर दौड़ा. इतिहासकारों में एक राय यह भी है कि यह यहूदी इतिहासकार अपने शरणदाता को मंदिर तबाह करने के आरोप से हमेशा के लिए बचा लेना चाहता था. लेकिन रोमन राजकुमार की बात को परिसर के भीतर लड़ रहे रोमनों ने अनसुना कर दिया था. वे जानते थे कि युद्ध के नियम यही कहते हैं कि जिस शहर ने इतनी दृढ़ता से मुकाबला किया है, उसे पूरी तरह उजाड़ दिया जाना चाहिए.
मंदिर की आग बढ़ते जाने और सैनिकों द्वारा उसकी बात अनसुनी किए जाने से गुस्साये टाइटस ने अपने निजी सुरक्षाकर्मियों के साथ रोमनों की टुकड़ियों पर ही हमला बोल दिया. भाला लिए सुरक्षाकर्मियों के दस्ते के मुखिया लाइबेरालियस को आदेश दिया कि जो रोमन उनकी बात न सुनें, उसे मार दो. जोसेफस लिखता है कि जैसे उस सिपाही ने किसी अदृश्य चेतना के वशीभूत होकर मंदिर की खिड़की में आग लगायी थी, वैसे ही रोमन सैनिक एक अजीब उन्माद से ग्रस्त थे. उनमें टाइटस या उसके निजी गार्डों का जरा भी खौफ न था. आग बढ़ती जा रही थी, लड़ाई चरम पर थी, जीत से ज्वरग्रस्त और यहूदियों के लिए घृणा से भरे चिल्लाते रोमनों, पवित्र मंदिर को किसी तरह बचाने की जिद्द में लड़ रहे विद्रोहियों का घोष, पुजारियों और नगरवासियों की चीत्कार से भयानक शोर बरपा हुआ था. यह शोर आसपास की पहाड़ियों से टकराकर यूं गूंज रहा था, जैसे धरती अभी प्रलय की जद में हो. मंदिर प्रांगण के साथ नगर के अन्य इलाकों में भी जनसंहार जारी था.
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जेरूसलम के पवित्र मंदिर, जिसे हम ‘सेकेंड टेंपल’ या ‘हेरोड टेंपल’ के नाम से जानते हैं, की पवित्रता को इससे पहले अगर किसी विदेशी ने भंग किया था, तो वह रोमन राजनेता पॉम्पे था जो 63 ईसा पूर्व में यहां आया था. हेरोड के आदेश के अनुसार किसी विदेशी को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं थी. अमूमन जेरूसलम पर नियंत्रण रखने वाले रोमनों या जब-तब शहर पर हमला करने वाले अन्य समूह मंदिर, खासकर उसके पवित्रतम हिस्से, से दूर ही रहते थे. जंग की अफरातफरी और चीख-पुकार की वहशत के बीच से रास्ता निकालता हुआ अंततः टाइटस पवित्रतम हिस्से तक पहुंच गया. अभी आग वहां नहीं पहुंची थी. यह वह स्थान था जहां सबसे बड़े पुजारी को भी साल में सिर्फ एक बार जाने का नियम था. हजारों यहूदियों और रोमनों की लाश, घायलों की आह और आग की लपटों से होता हुआ पवित्र मंदिर में यहूदियों के देवता येहोवा का घर माने जाने वाले हिस्से को रोमन राजकुमार निहार रहा था. जोसेफस लिखता है कि टाइटस वहां रखी चीजों और सजावट से प्रभावित हुआ तथा उन्हें यहूदियों के बखान से बेहतर ही पाया.
कुछ देर बाद टाइटस को सुरक्षित जगह ले जाया गया क्योंकि आग बढ़ती ही जा रही थी. कत्लेआम का अंत भी नहीं दिख रहा था. अब कोई रोमनों को आग पर काबू पाने का निर्देश भी नहीं दे रहा था. यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि जेरूसलम में उस युद्ध में कितने लोग मारे गए. इतिहासकार टैसिटस बताता है कि शहर में छह लाख लोग थे. जोसेफस के मुताबिक यह संख्या दस लाख से अधिक थी. खैर, यह तो कहा ही जा सकता है कि भूख और युद्ध में बहुत लोग मारे गए. हजारों लोगों को सलीब पर चढ़ाया गया, हजारों मिस्र की खदानों में गुलाम बना कर भेजे गए, हजारों को रोमन खेलों में हिंसक जानवरों का शिकार बनाया गया. रोमनों ने मारने-तड़पाने में लोगों की उम्र का भी कोई ख्याल नहीं रखा. रोमन साम्राज्य के आर्थिक हितों को साधने के लिए ज्यादा से ज्यादा गुलामों की जरूरत की भी रोमन सैनिकों और उनके स्थानीय सहयोगियों ने परवाह न की. उनका मुख्य जोर हत्या पर था. इसका मुख्य कारण यहूदियों के प्रति उनकी सामूहिक घृणा थी.
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जेरूसलम विजय ने टाइटस को भी पागल बना दिया था. जीत के बाद राजा अग्रिप्पा और उसकी बहन बेरेनिस ने रोमन राजकुमार को गोलन पहाड़ियों पर स्थित अपने महल में आमंत्रित किया. वहां उसके मनोरंजन के लिए यहूदी कैदियों को आपस में लड़ाया जाता था. सर्कस के खेल में हजारों यहूदियों को मरते हुए भी टाइटस ने देखा. सलीब पर इतने लोग लटकाये गए कि इलाके में पेड़ नहीं बचे. रोम के रास्ते में जगह-जगह यहूदियों को मार कर रोमन अपना मन बहलाते थे. जेरूसलम को पूरी तरह से नष्ट कर दिया गया. इसकी दीवारें गिरा दी गईं। सिर्फ हेरोड के महल के टावरों को विजय की निशानी के रूप में रहने दिया गया और यहीं रोम की सेना की दसवीं लीजन ने अपना डेरा डाला. जोसेफस लिखता है कि इस तरह से जेरूसलम खत्म हुआ, जो कि कभी बेहद शानदार था और पूरी मानवजाति में उसकी ख्याति थी.
पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
दूसरी किस्त: पवित्र मंदिर में आग
(जारी)
Cover Photo : Rabiul Islam