तोगड़िया की किताब- सैफरन रिफलेक्शन: फेसेज़ एंड मास्क
पुण्य प्रसून वाजपेयी
तो जिस शख्स की पहचान ही अयोध्या में राम मंदिर आंदोलन से जुड़ी हुई हो, जिस शख्स ने अयोध्या आंदोलन के लिये देशभर के युवाओं को संघ परिवार से जोड़ा, राम मंदिर के लिये बजरंग दल से लेकर विश्व हिन्दू परिषद को एक राम मंदिर संघर्ष के आसरे नई पहचान दी, हिन्दुत्व के आसरे देश भर संघ परिवार को विस्तार दिया, उसी प्रवीण तोगडिया को अब लगने लगा है सियासत ने हिन्दुओं को राम मंदिर के नाम पर ठग लिया है। सत्ता में आने के लिये बीजेपी ने हिन्दुओं की भावनाओं से खिलवाड़ किया है। और पहली बार बाकायदा सैफरन रिफलेक्शन: फेसेज़ एंड मास्क यानी केसरिया प्रतिबिंब-चेहरे और मुखौटे नाम से किताब लिखकर सीधे सीधे बीजेपी की उस राजनीति को कठघरे में खडा कर दिया है जिस राजनीति में राम मंदिर की गूंज बार बार होती है।
तोगडिया के अपनी किताब में 1990 में निकाली गई आडवाणी की रथयात्रा और 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वस के बाद से बीजेपी की उस राजनीति की नब्ज को पकड़ा है, जिसके आसरे बीजेपी सत्ता पाने के लिये छटपटाते रही। और संघ परिवार बेबस होकर हर हालात को सिर्फ देखता रहा। तोगडिया ने किताब में लिखा है राजनीति ने हिन्दुओं के सामने राम मंदिर को किसी गाजर की तरह ये कहकर हिलाया है कि, “आज बनेगा, कल बनेगा, राम मंदिर अवश्य बनेगा”। खास बात ये है कि 80 के दशक से नरेन्द्र मोदी के करीबी रहे प्रवीण तोगडिया ने पहली बार केन्द्र की मोदी सरकार पर इस किताब में ये कहकर हमला बोला है कि सरकार ने राम मंदिर के लिये संसद में कानून बनाने की जगह हिन्दुओं की आकांक्षा से खेलना शुरु किया तो अयोध्या तक नहीं गये। उन्होंने राम मंदिर को हिन्दुओं का लॉलीपाप बना दिया और भावनाओं को उभार कर चुनाव जीत लिया।
1983 में सिर्फ 22 बरस की उम्र में विहिप से जुडे प्रवीण तोगडिया पेशे से डाक्टर हैं पर राम मंदिर आंदोलन में उनकी सक्रिय भूमिका को देखते हुये ही दो दशक पहले उन्हें विहिप का महासचिव और 2011 में अशोक सिंघल के जीवित रहते हुये विहिप का अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया। और अब हिन्दुओं को हिन्दुत्व के नाम पर बीजेपी की राजनीति जिस तरह छल रही है, उस पर अपनी किताब में तोगडिया ने सीधा हमला किया है। इसमें लिखा है कि राम मंदिर, धारा 370, कामन सिविल कोड, बांग्लादेशी घुसपैठियों को वापस भेजना, गोवंश हत्या बंदी, विस्थापित कश्मीरी हिन्दुओं को फिर से बसाने के सवाल पर भी धोखा दिया गया। चुनाव के वक्त इन मुद्दो को उठा कर हिन्दू यूफोरिया खड़ा किया गया और सत्ता मिलते ही यू टर्न ले लिया गया।
खास बात ये भी है कि एक तरफ मोदी विकास का नारा लगाते हैं तो दूसरी तरफ तोगड़िया ने अपनी किताब में लिखा है कि -हिन्दुओं के मुद्दों से टोटल यू टर्न का नाम ही है विकास।
और गुजरात चुनाव के वक्त किसानों की त्रासदी और युवाओं की बेरोजगारी का सवाल उठाने वाले तोगडिया ने अपनी किताब केसरिया प्रतिबिंब : चेहरें और मुखौटे में साफ लिखा है कि हिन्दू एक वाइब्रेंट ज़िंदा समाज मन है। हिन्दू साँस लेते हैं, उन्हें नौकरी चाहिए, अच्छी सस्ती शिक्षा चाहिए, किसानों को उचित मूल्य चाहिए, महिलाओं को सुरक्षा चाहिए, महंगाई पर नियंत्रण चाहिए , आरोग्य की सुविधाएँ चाहिए। पर राजनीति के ज़रिए सत्ता साधने वाले राजनेताओं ने हिन्दुत्व आंदोलन को ही चुनावी कठपुतली बना दिया है।
जाहिर है ये किताब अभी तक बाजार में आई नहीं है और प्रवीण तोगडिया अपनी इस किताब को बाजार में लाने के लिये खुद को विहिप से निकाले जाने का इंतजार कर रहे है क्योंकि माना जा रहा है भुवनेश्वर में 27, 28,29 दिसंबर को होने वाले विहिप के सम्मेलन में तोगडिया को विहिप से बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा, चूंकि प्रधानमंत्री मोदी को भी लगने लगा है कि उनकी राजनीतिक आंकाक्षा से हिन्दुत्व का सवाल टकराने लगा है और प्रवीण तोगडिया अब उनकी सियासत में फिट बैठते नहीं है तो फिर आरएसएस भी मोदी के इशारे पर चलने को मजबूर हो चला है या फिर उनके सामने बेबस है। और इसी कड़ी में छह महीने पहले से किसान संघ और मजदूर संघ में उलटफेर शुरु भी हो चुके हैं। पर हर की नजर इसी बात को लेकर है कि प्रवीण तोगडिया जो सौराष्ट्र के पटेल हैं, किसान परिवार से आते हैं, हिन्दुत्व के चेहरे बने। अब किताब लिखने के बाद उनका अगला कदम होगा क्या। क्योंकि ये सवाल तो हर जहन में है कि एक वक्त गोविन्दाचार्य ने वाजपेयी को मुखौटा कहा। और एक वक्त संजय जोशी गुजरात में ही मोदी को सांगठनिक तौर पर चुनौती देते दिखे। तो दोनों के सितारे कैसे अस्त हुये इसे आज दोहराने की जरुरत नहीं है। बल्कि प्रवीण तोगडिया की किताब जो नये बरस के पहले हफ्ते में बाजार में आयेगी उसके बाद उनकी राह कौन सी होगी इसका इंतजार अब हर किसी को है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। फिलहाल आज तक से जुड़े हैं।