बदलते मौसम में 10 देशाें पर टिड्डियों के हमले से 2.5 करोड़ लोगों की भाेजन सुरक्षा संकट में

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पर्यावरण Published On :

A man tries to catch locusts as they swarm over Sana’a in July 2019. The insects have since reached east Africa, threatening the food security of 25 million people. Photograph: Mohammed Huwais/AFP/Getty Images


आज विश्व मौसम दिवस है। भारत में राजस्थान के कुछ जिलों पर टिड्डियों के हमले से खेती को हुए नुकसान पर मीडियाविजिल ने बीते दिनों दो ग्राउंड रिपोर्ट की थीं। उस वक्त तक यह साफ़ नहीं था कि टिड्डियों के हमले की वजह क्या है क्योंकि राजस्थान में यह हमला नियमित रूप से देखा जाता रहा है, इस बार भले कुछ ज्यादा भयावह रहा। अब ताज़ा रिपोर्टों से पता चला है कि यह मामला टिड्डियों के प्रजनन के लिए प्रतिकूल मौसम के साथ जुड़ा है।राजस्थान ने जो संकट झेला है, उसे दुनिया के एक हिस्से में फैलने में देर नहीं लगेगी। विश्व मौसम दिवस पर प्रस्तुत है दि गार्डियन से साभार एक लंबी रिपोर्ट के कुछ अंश। (संपादक)


टिड्डियों के प्रजनन के लिए प्रतिकूल प्राकृतिक दुश्वारियों ने अरब की खाड़ी में फैले रेगिस्तान में अभूतपूर्व संकट उत्पन्न कर दिया है. इस ख़तरे का यमन के रास्ते फैलने की भयानक संभावना है जो गृहयुद्ध में बर्बादी के कारण इससे निबटने में पूरी तरह असमर्थ है.

2018 में आये मेकुनु चक्रवात ने मरूथलीय टिड्डियों के असंख्य हुजूम सऊदी अरब, यमन और ओमान के रास्ते पश्चिमी एशिया के अनेक देशों में भेजे थे. प्रजनन के उद्देश्य से इन देशाें में प्रवेश कर ये जीव करोड़ों डॉलर की फसल तबाह कर चुके हैं. ऐसा दावा संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के टिड्डी विशेषज्ञ कीथ क्रेसमन का है.

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क्रेसमन कहते हैं, “यहाँ तक कोई समस्या नहीं है लेकिन जैसे ही मौसम की आर्द्रता कम होने को होती है और प्रजनन की प्रक्रिया ख़त्म होने लगती है, तभी पूरा भूक्षेत्र दोबारा चक्रवात की चपेट में आ जाता है. लिहाज़ा जहाँ उनकी तादाद 400 गुना बढ़नी चाहिए थी, प्रजनन के लिए अनुकूल मौसम के कारण उनकी तादाद 8,000 गुना बढ़ गयी है.”

सामान्यतः चक्रवात से उत्पन्न नमी को पूरी तरह सूखने में छह महीने का समय लगता है और इस अवधि के बाद टिड्डी या तो स्वतः मर जाते हैं या फिर किसी और अनुकूल स्थान की तलाश में चले जाते हैं, लेकिन क्रेसमन के अनुसार उपरोक्त भूक्षेत्र टिड्डियों के लिए कमोबेश स्थायी ठिकाना बनता जा रहा है.

FAO ने हालांकि आगाह कर दिया था कि टिड्डियों के हमले के कारण तक़रीबन 2.5 करोड़ लोगों को भोजन की समस्या का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन चिंताजनक बात यह है कि आगामी महीनों में कोई 10 नये देश इस समस्या की चपेट में आ सकते हैं. गौरतलब है कि हालिया दिनों में केन्या में टिड्डियों का जो दस्ता देखा गया था, उसका आकार लक्जमबर्ग जितना बड़ा था.

FAO ने 140 मिलियन डॉलर की योजना का मसौदा तैयार किया है ताकि अप्रैल-मई तक इस समस्या का स्थायी समाधान ढूंढा जा सके अन्यथा जून तक टिड्डियों की मौजूदा तादाद में 400 गुना बढोतरी होने की आशंका है. वर्तमान समस्या पिछले कई दशकों में सबसे भयावह है और इसका तत्काल निदान नहीं ढूंढे जाने पर इस ख़तरे के काबू से बाहर होने के संकेत स्पष्ट हैं.

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यमन में इस ख़तरे से निबटने में जो सबसे बड़ी बाधा आड़े आ रही है वह गृहयुद्ध है. क्रेसमन के अनुसार, यमन टिड्डियों के लिए एक ‘फ्रंटलाइन’ देश है जहां ये साल भर उपस्थित रहते हैं लेकिन इस देश में इस समस्या को नियंत्रित करने की कोई ठोस योजना नहीं है. हौथी बाग़ियों की समानांतर सरकार ने ऐसी किसी कारगर योजना के क्रियान्वयन को हमेशा बाधित किये रखा.

टिड्डी उन्मूलन योजना के मुखिया आदिल अल-शिबानी यमन की राजधानी साना में रहते हैं जिसपर बागियों का कब्ज़ा है. “गृहयुद्ध छिड़ने के पहले हम यमन में कहीं भी आ-जा सकते थे लेकिन अभी हम सिर्फ लाल सागर के कुछेक तटीय इलाकों और कुछ गिने-चुने क्षेत्रों में जा सकते हैं,” उनकी दलील है. फिलहाल, यमन में टिड्डियों पर नियंत्रण के लिए दो केंद्र हैं लेकिन वर्तमान में कोई भी अपना उत्तरदायित्व पूरा कर पाने में असमर्थ है. साना में अवस्थित केंद्र तो आर्थिक तंगी से भी जूझ रहा है. उनके पास गाड़ियों तक की पर्याप्त संख्या नहीं है. इन्हीं कारणों से शिबानी के मुताबिक कुछ छोटे केंद्रों को सऊदी अरब की सीमाओं पर स्थानांतरित कर दिया गया है ताकि टिड्डियों को प्रभावी ढंग से समाप्त किया जा सके.

2019 के अंत मे टिड्डियों का दस्ता अफ्रीका से उड़कर पश्चिमी एशिया पहुंचा था जब एक गैरमौसमी चक्रवात ने सोमालिया के तटीय इलाकों में स्थायी रूप से प्रजनन करने लगे. अंतरराष्ट्रीय विकास के लिए फ्रांसीसी कृषि शोध केंद्र के प्रवक्ता सायरिल पीओ के अनुसार, “सोमालिया और यमन की जनसंख्या नियंत्रण में अक्षमता के कारण भी यह समस्या अधिक दीर्घकालिक साबित हो सकती है.”

असरदार और फ़ौरी कदम उठाने की वजह से पिछली बार इस समस्या को दो साल में ही निपटा दिया गया था अन्यथा उसके लंबे खिंचने के आसार थे. सायरिल का कहना है, “चूंकि हम सब इस समस्या से जुड़े हुए हैं लिहाज़ा इसका असर भी आखिरकार हम सब पर ही पड़ने वाला है.”

पिछली सदी के चौथे और पांचवें दशक में टिड्डियों का सबसे बड़ा हमला हुआ था लेकिन तब रासायनिक कीटनाशकों की प्रचुरता के कारण हम इसको नियंत्रित करने में सफल रहे थे.

अरब की खाड़ी में अमूमन चक्रवात नहीं उठते थे लेकिन भारतीय महासागर के भूगर्भीय कारणों से पिछले दशक में अरब की खाड़ी में अनेक चक्रवात उठे. इसी कारण से पृथ्वी का पूर्वी भूभाग में एक असामान्य शुष्कता आ गयी और ऑस्ट्रेलिया के वनक्षेत्र भीषण आग की चपेट में भी आ गये.

क्रेसमन के अनुसार मौसम विज्ञान की पुरानी प्रविधि विगत पांच वर्ष पहले तक ठीक काम कर रही थी लेकिन अब समय और स्थान की दृष्टि से बारिश में बदलाव के कारण यह तकनीक बहुत विश्वसनीय नहीं रह गई है.


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