अडानी समूह और हिन्डनबर्ग रिपोर्ट का मामला-क्या था और क्या बना दिया गया 



27,000 करोड़ रुपये एसबीआई के लिए एक प्रतिशत भी नहीं है पर 27,000 करोड़ तो है ही

अडानी के 108 बिलियन डॉलर लुट गए और इसे “चाय के प्याले में तूफान” कह दिया गया 

बैंक से हमारे-आपके कुछ हजार रुपये ठगे जाने की चिन्ता कौन किसलिए करे?

 


हिन्डनबर्ग की रिपोर्ट और अडानी समूह के शेयर लुढ़कने की खबरों के बाद सरकार की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही थी। कई दिनों के बाद आज वित्त मंत्री के हवाले से खबर है कि देश की अर्थव्यवस्था की छवि पर कोई असर नहीं हुआ है और सेबी भी दखल दे रहा है। आप जानते हैं कि रिपोर्ट आने के बाद जब यह खुलासा हुआ कि अडानी समूह में एलआईसी और एसबीआई का भारी निवेश है तथा दोनों संस्थानों को भारी नुकसान होगा तो खबर आई थी कि आरबीआई ने इनसे अपना एक्सपोजर बताने को कहा है। अगले दिन एक केंद्रीय मंत्री ने बयान देकर सरकार और अडानी से कोई संबंध नहीं होने की बात कही। जबकि मुद्दा नियामक एजेंसियों के शांत रहने, कार्रवाई नहीं करने, शेल कंपनियों और अडानी समूह को सरकार का समर्थन और संरक्षण मिलने का था। इस बीच तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर खुलासा किया कि सेबी में अडानी के समधी भी हैं।  

रिपोर्ट में अडानी समूह के शेयरों के ओवर प्राइसिंग, अकाउंट में हेरा फेरी, कर्ज दिलाने में सरकारी मदद और शेल कंपनियों के जरिए निवेश के आरोप लगाए गए थे। इस रिपोर्ट के बाद जिस ढंग से अडानी के शेयरों के भाव गिरे उससे साफ है कि निवेशकों के मन में अडानी समूह को लेकर शंका थी और लोगों ने रिपोर्ट पर भरोसा कर उसके शेयर रखने का जोखिम नहीं लिया। दूसरी ओर, महुआ मोइत्रा के आरोप से नियामक एजेंसियों के कार्रवाई नहीं करने के आरोपों का कारण नजर आया। इसलिए उन्होंने डॉव जोन्स सस्टेनेबिलिटी इंडेक्स द्वारा अडानी एंटरप्राइजेज के शेयरों को हटाने के आलोक में सवाल किया कि एनएसई अडानी के शेयरों की फिर से मूल्यांकन क्यों नहीं करता। इन और ऐसे सवालों के जवाब अभी तक नहीं आए हैं लेकिन सरकार जो कह रही है उसे इंडियन एक्सप्रेस ने आज लीड बना दिया है। 

सरकार का यह बयान टाइम्स ऑफ इंडिया में आज सेकेंड लीड, द हिन्दू में फोल्ड के नीचे सिंगल कॉलम, हिन्दुस्तान टाइम्स में भी सेकेंड लीड है जबकि द टेलीग्राफ ने बताया है कि सरकार की ओर से अब सब मिलकर कह रहे हैं, ऑल इज़ वेल। अखबार ने शीर्षक में ही कहा है कि फाइनेंशियल टाइम्स ने छापा है कि भारत की जांच सही दिशा में बढ़ रही है। ऐसे में महुआ मोइत्रा की इस मांग का मतलब है कि सेबी के सिरिल श्रॉफ अडानी के समधी हैं। इसलिए, सेबी अगर यह दावा कर रहा है कि वो अडानी मामले की जांच कर रहा है तो सिरिन श्रॉफ को खुद को इससे अलग कर लेना चाहिए। ऐसे में खबर यह होती कि सेबी क्या कर रहा है, क्या नहीं कर रहा है और सिरिल श्रॉफ उससे कितने संबंधित हैं। लेकिन मीडिया में ऐसा कुछ है कि नहीं राम जानें। 

इसी तरह सरकार जब चुप रही तो मीडिया को महुआ मोइत्रा जैसे खुलासे करने चाहिए थे पर वो सब तो छोड़िये आज के अखबारों में ऐसे खबर छपी है जैसे कुछ हुआ ही नहीं और जो हुआ वह कुछ खास नहीं था और सरकार से तो उसका संबंध ही नहीं था। केंद्रीय वित्त मंत्री ने अपने दावे को मजबूत बनाने के लिए कहा है और अखबारों ने छापा है कि पिछले दो दिनों में विदेशी मुद्रा कोष में 8 अरब डॉलर की वृद्धि हुई। इस वृद्धि की आड़ में (यह असामान्य हो तब भी) अडानी समूह को जो संरक्षण मिला वह जायज नहीं हो जाएगा। फिर भी केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण कह रही हैं और अखबार बता रहे हैं कि, “…. हमारे मैक्रो-इकोनॉमिक फंडामेंटल या हमारी अर्थव्यवस्था की छवि … इनमें से कोई भी प्रभावित नहीं हुआ है। एफपीओ आते हैं और एफआईआई आते हैं और निकल जाते हैं … ये उतार-चढ़ाव हर बाजार में होते हैं।”इसमें मुख्य मुद्दा यह है कि जिनलोगों ने अडानी समूह को प्रधानमंत्री का करीबी मानकर निवेश किया वे डूब गए और उनकी किसी को परवाह नहीं है। 

हिन्डनबर्ग रिपोर्ट आने के बाद कई दिनों तक चुप और सन्न रहे प्रचारक अब स्टेट बैंक के चेयरमैन का बयान शेयर कर रहे हैं और उसका प्रचार कर रहे हैं। इसके अनुसार स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के चेयरमैन दिनेश खारा ने कहा है कि अडानी समूह के लिए ऋणदाता का जोखिम 27,000 करोड़ रुपये या उसकी ऋण पुस्तिका का 0.8 से 0.9 प्रतिशत आंका गया है और पुनर्भुगतान ट्रैक पर है, जिसका अर्थ है कि अब तक कोई चिंता नहीं है। इसका साफ मतलब है कि एसबीआई जितनी बड़ी संस्था है उसके अनुसार 27,000 करोड़ रुपए की राशि उसकी ऋण पुस्तिका का सिर्फ 0.8 से 0.9 प्रतिशत है। पर राशि तो एक-दो नहीं 27,000 और लाख नहीं, करोड़ रुपए है। वैसे भी, क्या बैंक लाख – दस लाख या करोड़-पांच करोड़ के कर्ज ऐसे ही देता है?  

क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि इतनी बड़ी राशि इन्हीं संस्थाओं ने किसी और समूह को दी होगी। और नहीं दी है तो इसी समूह को क्यों और क्या वह प्रधानमंत्री के करीबी होने के कारण दबाव में या सिफारिश पर दी गई है। पद का दुरुपयोग भ्रष्टाचार है लेकिन पद के दुरुपयोग को मुद्दा ही नहीं रहने दिया जाता है। दूसरी ओर यह जानने-बताने की कोशिश भी नहीं हो रही है कि इतनी बड़ी राशि कैसे और क्यों दांव पर लगाई गई। वह नियमानुसार है कि नहीं और अगर होने का दावा किया जा रहा है तो क्या नियम हाल-फिलहाल में बदले गए हैं। जनता और पाठक यह सब जानना चाहते हैं. चाव से पढ़ेंगे लेकिन पढ़ने के लिए सिर्फ सरकारी बयान उपलब्ध है। 

द टेलीग्राफ ने आज लिखा है, करीब एक सप्ताह तक चुप्पी साधे रहने के दौरान  जब स्टॉक और बॉन्ड बाजार के साथ कॉर्पोरेट अहंकार चूर-चूर हो गए थे, मोदी सरकार के प्रचारकों ने आखिरकार अडानी संकट पर बोलने का साहस जुटा लिया है। वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने अडानी समूह की संस्थाओं के मूल्यांकन में 108 बिलियन डॉलर के गिरावट को “चाय के प्याले में तूफान” करार दिए जाने के एक दिन बाद, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल पहली बार बहस में उतरे। 

सीतारमण का भाषण उनके मंत्रालय के शीर्ष नौकरशाह द्वारा दिए गए इस तर्क पर आधारित था कि अडानी संकट महत्वहीन हो गया है क्योंकि भारत के व्यापक आर्थिक बुनियादी सिद्धांतों के आकार और विस्तार के पैमाने पर यह बहुत मामूली है। वही कि 27000 करोड़ रुपए एक प्रतिशत भी नहीं है। लेकिन 2000 रुपए महीने की पेंशन और सम्मान को आप जानते हैं। बोफर्स घोटाला कितने का था और कितना हंगामा रहा वह याद ही होगा। हर्षद मेहता के प्रतिभूति घोटाले में तब के वित्त मंत्री ने इस्तीफा दिया ही था पर अब परिभाषाएं ही नहीं नियम भी बदल गए हैं।  

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।