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प्रकाश के रे
खलीफा उमर की अगुवाई में जेरूसलम फतह की इस्लाम के लिए क्या अहमियत थी, इसे वहां तैनात किये गये अधिकारियों की फेहरिस्त से समझा जा सकता है. मक्का के अभिजात्य परिवार से ताल्लुक रखने वाले और इस्लाम के शुरूआती दिनों में मुहम्मद के सबसे बड़े विरोधी अबु सुफियान के बेटे मुआविया को पूरे सीरिया और फिलीस्तीन का प्रशासक बनाया गया. चौथे खलीफा हजरत अली के कत्ल के बाद मुआविया ने जेरूसलम की अल-अक्सा मस्जिद से ही अपने को इस्लाम का खलीफा घोषित किया था. जिन दिनों पैगंबर मदीने में थे और मक्का के खिलाफ लड़ रहे थे, सुफियान और उनके बीच भयानक दुश्मनी थी. ओहद की लड़ाई में मुआविया की माता हिंदा ने पैगंबर के चाचा हम्जा का कत्ल करा कर उनके शरीर के हिस्सों को चबाया तक था. मक्का पर इस्लाम की जीत के बाद मोहम्मद ने मुआविया को अपना सहायक बनाया था और उसकी बहन से शादी की थी. हजरत उमर ने एशो-आराम के शौकीन, लेकिन दक्ष नौजवाब की प्रशंसा करते हुए उसे ‘अरबों का सीजर’ कहा था.
बड़े अधिकारियों में शुमार वेमीर इब्न साद को फिलीस्तीनी खित्ते की जिम्मेवारी दी गयी. दूसरे धर्मों के लोगों, जिन्हें धिम्मी या जिम्मी कहा जाता था, के साथ भले व्यवहार के लिए यह आदमी जाना जाता था. कुर’आन के पांच सबसे बड़े जानकारों में एक उबैद इब्न अल-समीत को जेरूसलम का पहला काजी बनाया गया. शहर की पवित्रता से आकर्षित होकर पैगंबर के खास सहबा रहे फैरुज अत-दैलामी और शादाद इब्न औस जैसे लोग जेरूसलम में बसे. आज शहर के सबसे पुराने दो मुस्लिम परिवार उसी दौर से अपना आगाज जोड़ते हैं. एक खालिदी परिवार है और दूसरा नुसैबी परिवार. खालिदी परिवार अपना संबंध सेनापति खालिद से जोड़ता है, जिसके बारे में पहले की किश्त में जिक्र हो चुका है. नुसैबी अपने को नुसैबा नामक महिला से जोड़ते हैं, जो पैगंबर की शुरुआती समर्थकों में से थी और उनके लिए अपने दो बेटे गंवा चुकी थी. खुद उसका भी एक पैर भी कट चुका था. काजी उबैद इब्न अल-समीत इसी नुसैबा के भाई थे. आज भी होली सेपुखर चर्च की चाबी इसी परिवार के पास रहती है. ये दोनों परिवार तब से आज तक शहर की राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आ रहे हैं. चाबी के बारे में एक लेख में उल्लेख किया जा चुका है.
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जेरूसलम में उमर के दौर की कहानियां एक सदी से ज्यादा समय बीतने के बाद लिखी गयीं, जब इस्लाम ने यहूदी और ईसाई धर्मों से अलग अपना रूप ले लिया था. इस कारण निश्चित रूप से उस समय के बारे में कह पाना मुश्किल है, पर कई आधारों पर कहा जा सकता है कि इन तीनों सामी धर्मों के अनुयायियों के बीच सहिष्णुता का माहौल रहा था. उमर ने ईसाई इलाकों में मुस्लिमों के बसने और ईसाई संपत्ति दखल करने पर रोक लगा दी थी. ईसाई इलाके रहने के लिहाज से बेहतर थे, पर मुसलमानों ने टेंपल माउंट और अल-अक्सा के आसपास की जमीन अपने लिए चुनी थी. उसी इलाके में उन्होंने यहूदियों को भी बसाया था. बहुत बाद तक के यहूदी स्रोतों में मुस्लिमों की खूब प्रशंसा की गयी है. इस्लाम ने यहूदियों को न सिर्फ बैजंटाइन कहर से आजादी दिलायी थी, बल्कि उनके सबसे पवित्र शहर में रहने का और पूजा करने का भी अधिकार दिया था. मुस्लिम विजेता ईसाइयों के साथ धार्मिक स्थलों को साझा भी करते थे.
इसका एक उदाहरण दमिश्क में सेंट जॉन चर्च और उम्मयद मस्जिद हैं जहां सेंट जॉन द बैप्टिस्ट की कब्र है. जेरूसलम के बाहर स्थित कैथिस्मा चर्च में भी मुस्लिम इबादत से जुड़े चिन्ह देखे जा सकते हैं. मोंटेफियोरे ने लिखा है कि होली सेपुखर चर्च में खलीफा उमर के नमाज पढ़ने से इनकार की कहानी के बावजूद यह कहा जा सकता है कि मस्जिदों के बनने से पहले जेरूसलम और आसपास मुस्लिमों ने नमाज पढ़ने के लिए चर्चों का इस्तेमाल किया था. लेकिन यह साझेदारी का मामला था, जोर-जबर का नहीं. मुस्लिम सेना में यहूदी और ईसाई लड़ाकों के होने के भी उदाहरण हैं. यहूदियों के लिए मुस्लिमों का आना टेंपल माउंट से जुड़ी उनकी उम्मीदों के जिंदा होने का भी सबब रहा होगा.
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मुस्लिमों के शुरुआती शहादा से भी यहूदियों और ईसाइयों को दिक्कत नहीं रही होगी जिसमें एकेश्वरवाद की बात कही गयी थी. साल 685 में उसमें मुहम्मद के पैगंबर होने की बात जोड़े जाने के बाद यह बदला होगा. जेरूसलम और उसके पवित्र स्थानों के लिए मुस्लिमों और यहूदियों की संज्ञाओं में भी समानता है. मुसलमान जेरूसलम को 17 नामों से पुकारते हैं, तो यहूदी 77 नामों से. दोनों समुदायों का मानना है कि नामों की बहुलता शहर की महानता को इंगित करती है. खलीफा उमर द्वारा सोफ्रोनियस को शुरू में यहूदियों को नहीं बसने देने के वादे को मोंटेफियोरे ईसाइयों की गलतबयानी मानते हैं. काब के अलावा टाइबेरिया के यहूदी धर्मप्रमुख को उमर द्वारा बुलाना तथा 70 परिवारों को जेरूसलम में टेंपल के पास और मुसलमानों के पड़ोस में बसाना जैसे उदाहरण यह साबित करने के लिए काफी हैं कि उमर की नीति सहिष्णुता की नीति थी. रोमन ईसाइयत से अलग मान्यता रखने वाले कुछ ईसाई समुदायों के साथ आर्मेनियाई ईसाइयों से भी मुस्लिमों की घनिष्ठता बढ़ी. आज भी शहर के ईसाई फिलीस्तीनी अधिकारों की पैरोकारी करते हैं. उमर और अन्य शुरूआती खलीफाओं ने यहूदियों को टेंपल माउंट पर पूजा करने की अनुमति दी थी और जब तक इस शहर पर इस्लाम काबिज रहा, यहूदियों को कभी शहर छोड़ने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ा.
साल 644 में खलीफा उमर की हत्या हो गयी और उनकी जगह हजरत उस्मान खलीफा बने. करेन आर्मस्ट्रॉन्ग ने उचित ही रेखांकित किया है कि धर्म की यह एक त्रासदी है कि वह अपने उच्चतम आदर्शों से विचलित हो जाता है. इस दौर में इस्लाम के शीर्ष नेतृत्व में बड़ी फूट हुई. बहरहाल, उस्मान के कार्यकाल में जेरूसलम के गरीबों के लिए एक बड़ा सार्वजनिक बागीचा लगवाया गया था. इस्लाम के तीसरे खलीफा पैगंबर के शुरुआती अनुयायियों में से थे और वे मक्का के आभिजात्य उमय्यद वंश से ताल्लुक रखते थे. साल 656 में उनकी हत्या के बाद चौथे खलीफा और पैगंबर के दामाद हजरत अली था सीरिया-पैलेस्टीना के शासक मुआविया के बीच सत्ता-संघर्ष शुरू हो गया. मुआविया अब उमय्यद वंश का प्रमुख था. साल 661 में अली का भी कत्ल हो गया. इसी के साथ इस्लाम के पहले और पवित्रतम चार खलीफाओं की दास्तान भी पूरी हुई. हजरत अली की मौत के छह माह बाद जेरूसलम में मुआविया ने खुद को इस्लाम का खलीफा घोषित कर दिया. यहीं से उमय्यद वंश का इतिहास शुरू होता है जिसकी हुकूमत करीब एक सदी तक इस्लामी साम्राज्य पर रही.
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पहली किस्त: टाइटस की घेराबंदी
दूसरी किस्त: पवित्र मंदिर में आग
तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्म हुआ…
चौथी किस्त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया
पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना
छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा
सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब
आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह
नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई
दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है
ग्यारहवीं किस्त: कर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत
बारहवीं किस्त: क्या ऑगस्टा यूडोकिया बेवफा थी!
तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन
चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना
पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया
सोलहवीं क़िस्त: जेरूसलम फिर रोमनों के हाथ में
सत्रहवीं क़िस्त: गाज़ा में फिलिस्तीनियों की 37 लाशों पर जेरूसलम के अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!
अठारहवीं क़िस्त: आज का जेरूसलम: कुछ ज़रूरी तथ्य एवं आंकड़े
उन्नीसवीं क़िस्त: इस्लाम में जेरूसलम: गाजा में इस्लाम
बीसवीं क़िस्त: जेरूसलम में खलीफ़ा उम्र
इक्कीसवीं क़िस्त: टेम्पल माउंट पहुंचा इस्लाम
आवरण चित्र: Rabiul Islam