टेंपल माउंट पहुंचा इस्लाम

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प्रकाश के रे 

खलीफा उमर का जेरूसलम में दाखिल होना इस लिहाज से भी बेहद अहम था कि इस जीत में खून-खराबा नहीं हुआ. इस पवित्र शहर पर कब्जे की पिछली लड़ाइयों में हजारों मौतें आम बात होती थीं. इसके साथ कभी इस कौम, तो कभी उस कौम को शहर से बेदखल करना भी परिपाटी बना हुआ था. कुर’आन को संकलित करने का काम शुरू करनेवाले, इस्लामी कैलेंडर की रचना करनेवाले और ढेर सारे इस्लामी कानूनों को बनानेवाले इस्लाम के दूसरे खलीफा को सोफ्रोनियस ने शहर की चाबी दे दी और उन्हें साथ लेकर शहर में दाखिल हुआ. मोंटेफियोरे ने बहुत बाद में लिखे गये मुस्लिम विवरणों के हवाले से लिखा है कि सोफ्रोनियस के मन में यह विचार भी था कि भव्य चर्च और अन्य इमारतों को देखकर शायद उमर और उनके साथी ईसाइयत को अंगीकार कर लेंगे. एक और कहानी बहुत लोकप्रिय है कि जब उमर होली सेपुखर चर्च में घूम रहे थे, तभी उनके मुअज्जिन ने अजान दी. सोफ्रोनियस ने खलीफा से वहीं नमाज पढ़ने का आग्रह किया. इस निवेदन को उमर ने यह कह कर खारिज कर दिया कि बाद में उनके अनुयायी इस जगह को इस्लामी आस्था से जोड़ देंगे. वे बाहर गये और उन्होंने सड़क के दूसरी ओर नमाज पढ़ी. बाद में वहां एक मस्जिद बनायी गयी थी. उमर की मस्जिद की मौजूदा इमारत क्रुसेड दौर के महान योद्धा सलादीन अयूबी के बेटे अफजल/अफदल द्वारा 1193 में बनवायी गयी थी और यह उस जगह नहीं है जहां खलीफा ने नमाज पढ़ी थी. मान्यता है कि उमर ने उसी जगह पर नमाज पढ़ी थी, जहां किसी जमाने में दाऊद/डेविड ने प्रार्थना की थी.

उमर की मस्जिद

खलीफा उमर ने मुसलिमों को ईसाइयों की धार्मिक, सामुदायिक और निजी संपत्ति को कब्जा नहीं करने का आदेश दिया. लेकिन उन्हें भी तो अपनी मस्जिद के लिए जगह की दरकार थी. वे ईसाई धार्मिक स्थलों को देख चुके थे और टेंपल माउंट देखने के लिए बेचैन थे. उमर को यह भी भान था कि पैगंबर मोहम्मद दाऊद और सुलेमान की कितना सम्मान देते थे. टेंपल माउंट की प्रसिद्धि तो किंवदंती बन ही चुकी थी और यह जगह दाऊद और सुलेमान से भी जुड़ी हुई थी. जब उमर सोफ्रोनियस के साथ टेंपल माउंट की ओर चले, तो उनके साथ काब अल-अहबर भी था. वह एक यहूदी था, जो इस्लाम को अपना चुका था और मदीने से ही उमर के साथ था. उमर को टेंपल माउंट ले जाने के बारे में दो कहानियां दिलचस्प हैं. एक के मुताबिक सोफ्रोनियस ने कुछ ईसाई धार्मिक स्थानों और इमारतों को दाऊद की मस्जिद बताने की कोशिश की, पर आखिरकार वह उन्हें टेंपल माउंट ले गया. काब से जब उमर ने मंदिर के गर्भ-गृह के बाबत पूछा, तो उसने शर्त रखी कि वह तभी बतायेगा, जब खलीफा हेरोड की दीवार सही-सलामत रखने का वादा करें. इस दीवार में वह हिस्सा भी था, जिसे ‘वेस्टर्न वाल’ कहा जाता है और यह यहूदियों के लिए सबसे पवित्र जगह है. काब ने खलीफा को मंदिर की नींव का पत्थर दिखाया.

उमर की मस्जिद

जब उमर टेंपल माउंट पहुंचे, तो चारों तरफ मलबा और कचरा फैला हुआ था. फारसियों के जमाने में यहूदियों को कुछ समय के लिए वहां पूजा करने की इजाजत मिली थी, पर बाद में ईसाई उस जगह को शहर का कूड़ा-कचरा फेंकने के लिए इस्तेमाल करते थे. कहा जाता है कि माउंट पर इतना कचरा था कि एक दरवाजे से घुसना भी मुहाल था. पहले सोफ्रोनियस, फिर उमर कचरे पर घुटनों के बल रेंगते हुए ऊपर चढ़े थे. वहां का नजारा देख कर खलीफा को बड़ा मलाल हुआ. उन्होंने अपने कपड़े में थोड़ा सा कचरा उठाया और उसे शहर की दीवार के पार फेंक दिया. फिर क्या था! खलीफा को ऐसा करते देख मुस्लिम उस जगह को साफ करने लगे. इस्लामी और यहूदी विवरणों में उल्लेख है कि टेंपल माउंट की सफाई में मुस्लिमों के साथ यहूदियों ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था.

कुछ आख्यानों में बताया गया है कि उमर से सोफ्रोनियस ने यह वचन लिया था कि शहर में यहूदियों का दाखिला नहीं होगा, पर जल्दी ही 70 यहूदी परिवार जेरूसलम में बसाये गये. उमर के साथ भी टाइबेरिया के कुछ यहूदी पुजारी आये थे. काब तो साथ था ही. जब टेंपल माउंट की साफ-सफाई हो गयी, तो उमर ने काब को बुलाया और पूछा कि यहां प्रार्थना करने की सबसे पवित्र जगह कौन-सी हो सकती है. दसवीं सदी के मकबूल इस्लामी इतिहासकार अबु जफर अत-तराबी के हवाले से आर्म्सट्रॉन्ग ने लिखा है कि उमर ने काब के साथ बैठक की शुरुआत कुर’आन के उन अध्यायों को पढ़ कर की जिनमें दाऊद, सुलेमान और मंदिर का उल्लेख है. कहानी यह है कि काब ने पवित्र पत्थर के उत्तर की जगह बतायी और कहा कि यहां प्रार्थना करने से मक्का के साथ पवित्र मंदिर की ओर भी दिशा रहेगी. लेकिन उमर ने इस सलाह को खारिज कर उस जगह के दक्षिण में हेरोड के शाही पोर्टिको को चुना, जहां से नमाज की दिशा सिर्फ काबा की ओर हो सकती थी. इसी जगह पर उमर ने मस्जिद बनायी, जिसे हम अल-अक्सा मस्जिद के नाम से जानते हैं.

अल-अक्सा मस्जिद

आर्म्सट्रॉन्ग लिखती हैं कि इस कहानी पर भरोसा करना मुश्किल है क्योंकि इस दौर के पचास साल बाद ही मुस्लिमों ने उस पत्थर में कोई दिलचस्पी दिखानी शुरू की थी. पर, उनका मानना है कि इस कथा से यह बात तो साबित होती ही है कि मुस्लिम पुराने धर्मों से अपने को बिल्कुल अलहदा रखना चाहते थे. वह मस्जिद आज के भव्य अल-अक्सा से बिल्कुल अलग और सादा इमारत थी. समकालीन विवरणों के अनुसार वह खंभों पर खड़ी चौकोर इमारत थी, लेकिन उसमें तीन हजार लोग नमाज पढ़ सकते थे. आसपास के अरबी कबीले, जिन्होंने इस्लाम कबूल कर लिया था, शुक्रवार को नमाज के लिए वहां आते थे.

मक्का और मदीना के बाद अल-अक्सा इस्लाम की तीसरी सबसे पवित्र जगह है. उमर के बाद उम्मयद खलीफाओं- अब्द अल मलिक और उसके बेटे अल-वालिद ने 705 में इसे विस्तार दिया. साल 746 में भूकंप में पूरी तरह तबाह होने के बाद इसे अब्बासी खलीफा अल-मंसूर ने 754 में बनवाया. साल 780 में इसे फिर से बनाया गया. साल 1035 में इसे फातमी खलीफा अली अज जहीर ने तब बनवाया, जब यह 1033 के भूकंप में गिर गया था. मौजूदा मस्जिद का डिजाइन उसी मस्जिद की तर्ज पर है.

अल-अक्सा

जब 1099 में यूरोपीय क्रुसेडरों ने जेरूसलम पर कब्जा किया, तो उन्होंने मस्जिद को महल के रूप में और पवित्र पत्थर पर बनी इमारत को चर्च के रूप में इस्तेमाल किया था. उमर से लेकर बीसवीं सदी तक इस मस्जिद की मरम्मत और विस्तार में कई मुस्लिम शासकों ने योगदान दिया. आज पूर्वी जेरूसलम 1967 से इजरायल के कब्जे में है, लेकिन मस्जिद का जिम्मा वक्फ के हाथों में है जिसे फिलीस्तीनी और जॉर्डन सरकार संचालित करते हैं.

पहली किस्‍त: टाइटस की घेराबंदी

दूसरी किस्‍त: पवित्र मंदिर में आग 

तीसरी क़िस्त: और इस तरह से जेरूसलम खत्‍म हुआ…

चौथी किस्‍त: जब देवता ने मंदिर बनने का इंतजार किया

पांचवीं किस्त: जेरूसलम ‘कोलोनिया इलिया कैपिटोलिना’ और जूडिया ‘पैलेस्टाइन’ बना

छठवीं किस्त: जब एक फैसले ने बदल दी इतिहास की धारा 

सातवीं किस्त: हेलेना को मिला ईसा का सलीब 

आठवीं किस्त: ईसाई वर्चस्व और यहूदी विद्रोह  

नौवीं किस्त: बनने लगा यहूदी मंदिर, ईश्वर की दुहाई देते ईसाई

दसवीं किस्त: जेरूसलम में इतिहास का लगातार दोहराव त्रासदी या प्रहसन नहीं है

ग्यारहवीं किस्तकर्मकाण्डों के आवरण में ईसाइयत

बारहवीं किस्‍त: क्‍या ऑगस्‍टा यूडोकिया बेवफा थी!

तेरहवीं किस्त: जेरूसलम में रोमनों के आखिरी दिन

चौदहवीं किस्त: जेरूसलम में फारस का फितना 

पंद्रहवीं क़िस्त: जेरूसलम पर अतीत का अंतहीन साया 

सोलहवीं क़िस्त: जेरूसलम फिर रोमनों के हाथ में 

सत्रहवीं क़िस्त: गाज़ा में फिलिस्तीनियों की 37 लाशों पर जेरूसलम के अमेरिकी दूतावास का उद्घाटन!

अठारहवीं क़िस्त: आज का जेरूसलम: कुछ ज़रूरी तथ्य एवं आंकड़े 

उन्नीसवीं क़िस्त: इस्लाम में जेरूसलम: गाजा में इस्लाम 

बीसवीं क़िस्त: जेरूसलम में खलीफ़ा उम्र 


आवरण चित्र: Rabiul Islam