समझा जा सकता है कि आरएसएस न परिवार नियोजन के पक्ष में है, और न तलाक के. वह बड़ा परिवार चाहता है, जिसमें ढेर सारे बच्चे हों. शायद इसीलिए भारतीय जनता पार्टी की…
डॉ.आंबेडकर ने भारत के स्वतंत्र होने के भी 9 साल के बाद 1956 में हिन्दू धर्म छोड़ा था. और उन्होंने उस बौद्धधर्म का पुनरुद्धार किया, जिसे शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट और पुष्यमित्र तीनों ने…
जैसे जानवरों को खूंटे से बाँधा जाता है, वैसे ही आरएसएस भी दलितों को जानवर ही समझता है, जो उन्हें हिंदुत्व के खूंटे से बांधकर रखना चाहता है. लेकिन वह यह क्यों नहीं…
रकारी मंडियों में अनाज न केवल सड़ कर बर्बाद होता है बल्कि लाने-ले जाने में भी न जाने कितना अनाज बिखर और गिर कर बर्बाद होता है। इसी देश में करोड़ों लोग इस…
मैंने आजतक नहीं सुना कि दलितों के नेताओं ने कभी कहीं बाबा साहब अम्बेडकर की 22 प्रतिज्ञाओं का सामूहिक पाठ आयोजित किया हो। मैंने ऐसे भी किसी परिवार के बारे में नहीं सुना…
पाठकों, मीडिया विजिल आमतौर पर कविता नहीं छापता, यहा कहें कि साहित्य का कोई स्तम्भ हमारे पास नहीं है, लेकिन प्रकाश चन्द्रायन की इस भेदक कविता को छापे बिना रहा नहीं गया। इसे…
डा. आंबेडकर लिखते हैं कि भारत में ईसाई मिशनों की सेवाएँ महान हैं. पर इन सबका लाभ ब्राह्मणों और उच्च हिन्दुओं ने ही उठाया. [वही, पृष्ठ 427-444, & 445-476] आरएसएस समेत भारत के…
आज हम देखते हैं कि पूरे अरब और अफ़्रीका से दासप्रथा करीब करीब खत्म हो गई है। यूरोप और अमेरिका के गुलामों ने भी लड़कर और विशेष सुधारों के ज़रिए आज अपनी स्थिति…
डा. राधाकृष्णन ने हिंदू दर्शन के मामले में किस कदर रायता फैलाया है, इसका जोरदार वर्णन महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने अपने ग्रन्थ ‘दर्शन-दिग्दर्शन’ में किया है. राहुल जी ने उन्हें एक हिंदू लेखक…
यह कितना दिलचस्प है कि आरएसएस के दर्शन में वर्णव्यवस्था ईश्वर की सर्वोच्च धारणा है, और यही वर्णव्यवस्था उसके हिन्दू राष्ट्र की अवधारणा है. गोलवलकर के ये शब्द देखिए-- ‘जातिव्यवस्था की सभी बुराइयां…
डा. आंबेडकर के अनुसार हिंदू क्रूर नहीं हैं, बल्कि वे अपने धर्म के पालक हैं, जो उन्हें जाति के प्रति कठोर बनाता है. इसलिए डा. आंबेडकर ने कहा था, कि जब तक धर्म…
कांशीराम ने जब आरएसएस और भाजपा से हाथ मिलाया, तो उन्होंने अपना नारा भी बदला। वह सामाजिक परिवर्तन को छोड़कर सामाजिक न्याय की राजनीति के रथ पर सवार हो गए। जातीय सभाओं और…
भाजपा कुछ ऐसे दलित नेताओं को अपने झंडे तले ले आई है जो किसी भी हालत में सत्ता में बने रहने चाहते हैं. इन नेताओं का इस्तेमाल पार्टी अपने राजनैतिक एजेंडा को लागू…
सन्तराम जी और उनके ‘जातपात तोड़क मण्डल’ ने अपने जाति-विरोध से पूरे देश का ध्यान खींचा था। पर उसे जितना समर्थन मिला था, उससे कहीं ज्यादा रूढ़िवादियों ने उसका विरोध किया था। विरोधियों…
विशेष- ये इंटरव्यू साल भर पुराना है। 13 अप्रैल 2021 को फिर से प्रसारित कर रहे हैं- संपादक मंडल जयंती एक ख़ास मौका है, मौका है सामाजिक न्याय की लड़ाई का जश्न मनाने…
आज प्रेमचन्द होते, तो उनसे जरूर पूछा जाता कि जब उनके अनुसार संयुक्त निर्वाचन में दलितों की मुक्ति थी, तो संयुक्त निर्वाचन लागू होने के बाद, उनकी मुक्ति क्यों नहीं हुई? दलितों के…
ये ख़बर और कार्यक्रम के प्रतिभागियों से बातचीत के साथ एक संपादकीय टिप्पणी भी है। हम इसे तत्काल, एक ख़बर की तरह भी प्रकाशित कर सकते थे, लेकिन हम चाहते थे कि हम…
वहां न कोई दुख है, न कोई घबराहट..वहां किसी पर कोई कर नहीं लगता है…वहां जाति या वर्ग का कोई भेद नहीं है…वहां सबके लिए भोजन है…सबके लिए घर है…संत रविदास अपनी वाणी…
इस काल्पनिक सिद्धांत के संघ परिवार के लिए मुख्यतः दो फायदे हैं। पहला तो यह कि अस्पृश्यता का सारा दोष मुसलमानों के सिर डाल दिया जाता है, और वर्ण व्यवस्था को समरस कार्य…
स्वातंत्रोत्तर दलित राजनीति स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद दलित राजनीति में कोई क्रान्तिकारी विकास नहीं हुआ। स्वतन्त्र भारत में काँग्रेस सत्तारूढ़ हुई और उसी ने दलितों का नेतृत्व किया। दलितों के लिये…
जिस तरह डा. आंबेडकर कम्यूनल अवार्ड में दलित वर्गों को एक पृथक अल्पसंख्यक वर्ग के रूप में मान्यता दिलाने में कामयाब हो गये थे, वह गाँधी के लिये इसीलिये ज्यादा चिंताजनक था कि…
बिहार में भूमि सुधार को लेकर नक्सल आन्दोलन की एक सक्रिय पृष्ठभूमि रही है,उसी नक्सल आंदोलन के नेतृत्व वाली पार्टी भाकपा माले लिबरेशन मुख्य धारा की राजनीति में आने के बाद भी बिहार…