राजेश कुमार
फ़िल्म ‘पद्मावती ‘ का एक टीज़र रिलीज हुई है जिसमे दीपिका महिलाओं के बीच घूमर नाचती दिखती है। दृश्य में कोई पुरुष नहीं है। अब इस पर बवाल मचा हुआ है कि ये अश्लील है, उचित ड्रेस नहीं पहना गया है। कमर का कुछ हिस्सा दिख रहा है। तूफान मचा हुआ है कि , हटाओ इस सीन को। इससे भारतीय संस्कृति तार तार हो रही है। करणी सेना अलग तूफान मचाये हुए है। इस नृत्य के अलावे टीज़र में दो संवाद भी है। केवल दो संवाद। और दोनों संवाद राजपूत जाति का महिमा मंडन कर रही है। जाति विशेष को बड़ा चढ़ा कर पेश कर रही है। जैसे देश में वीरता और शौयरता का पर्याय केवल एक ही जाती है और वो राजपूत ।
आज के अखबार में अठावले ने भी कहा कि रानी पद्मावती का घूमर नृत्य उचित नहीं है। रानियां नहीं नाचा करती है। इसे हटाकर फ़िल्म पास कर देने की जरूरत है।
सवाल है, अगर महलों में रानी नहीं नाच करती हैं तो कौन नाच करती है? नाच तो एक कला है, मन का उदगार है, अभिव्यक्ति का माध्यम है। ऐसा तो नहीं तय कर लिया गया है कि नृत्य उच्च जाति के लोग नहीं करते। नाचना निम्न जाति का कार्य है। ब्राह्मण, क्षत्रिय वर्ण के लोग नृत्य नहीं कर सकते। फिर सदियों पहले जब मंदिरों में शूद्रों का जाना वर्जित था तो वहां कौन नृत्य करता था ?
स्वर्ग में जितनी अप्पसराये इंद्र के दरबार में नृत्य करती है वे क्या निम्न जाति की है? मेनका क्या शुद्र थी जिसके साथ विश्वामित्र मुनि ने सहवास किया जिससे शकुंतला का जन्म हुआ। जिसका पुत्र भरत हमारे देश की गद्दी पर बैठा।
और भगवान शंकर क्या थे? वे तो महान नर्तक थे। उन्होंने ही भरतमुनि को नृत्य विद्या दी थी। फिर तो करणी सेना वाले कहीं भगवान शंकर को भी खारिज न कर दे।
नृत्य जैसी पवित्र कला जिसे भगवान शंकर ने ईजाद किया है, उसे तो बक्श दो। उसे शुद्र कर्म से न जोड़ो।
(राजेश कुमार प्रसिद्ध और प्रतिबद्ध रंगकर्मी हैं )