राहुल गांधी के इस सवाल को छापने से भी शर्माने वाले मीडिया के लोगों ने 30 मिनट में तीसरी बार पूछा, ‘बीजेपी कह रही है, आपने ओबीसी का अपमान किया है’ और तब राहुल ने पूछने वाले का ‘अपमान’ कर दिया
राहुल गांधी की संसद की सदस्यता खत्म होने के बाद कल शनिवार पहला दिन था और संसद की सदस्यता रद्द होने पर राहुल गांधी और कांग्रेस की प्रतिक्रिया का इंतजार कोई भी करेगा। चूंकि कल प्रेस कांफ्रेंस हुई थी और सोशल मीडिया में चर्चित भी रही इसलिए उसका लीड बनना स्वाभाविक है। लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर आज लीड नहीं है। मुझे तो पहले पन्ने पर नजर ही नहीं आई। बाद में सिंगल कॉलम में दिखी। दरअसल यह लीड के साथ है जो सांसदों की सदस्यता खत्म होने से संबंधित एक जनहित याचिका के बारे में है। शीर्षक का हिन्दी अनुवाद कुछ इस तरह होगा, सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा गया, अयोग्य तभी ठहराया जाए जब अपराध गंभीर हो। इसका इंट्रो है, “चुनाव क्षेत्र में मतदाताओं की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है।”
इसके साथ सिंगल कॉलम में दो खबरें हैं। पहली का शीर्षक है, “मैंने लोकसभा की सदस्यता खो दी क्योंकि प्रधानमंत्री मेरे अगले भाषण से डरे हुए थे : राहुल” ,दूसरी खबर है, “भाजपा ने कहा, कांग्रेस ने इस मामले में कानूनी राहत नहीं ली” , द हिन्दू में राहुल गांधी की प्रेस कांफ्रेंस की खबर लीड है। शीर्षक है, “राहुल गांधी ने कहा, सरकार ने घबराहट में मेरी अयोग्यता के लिए जोर डाला।” यहां यह उल्लेखनीय है कि राहुल गांधी की सदस्यता खत्म करने वाली सरकारी गजट में प्रकाशित होने वाली घोषणा की जो प्रति उन्हें दी गई है उसमें राहुल गांधी, पूर्व सांसद लिखा है।
जाहिर है उस घोषणा (तकनीकी तौर पर गजट में प्रकाशित होने) के बाद सदस्यता खत्म होगी। ठीक है कि अदालती व्यवस्था और व्यवहार के अनुसार दो साल की सजा होते ही सदस्यता अपने आप चली जाती है। लेकिन यह बहुत स्पष्ट और निर्विवाद नहीं है और घोषणा वाली चिट्ठी में पूर्व सांसद लिख देना निश्चित रूप से रेखांकित करने वाली बात है। अगर नाम के साथ सांसद नहीं लिखना था तो नहीं लिखते, पूर्व सांसद लिखना कोई जरूरी तो नहीं था। वैसे भी सूचना पूर्व सांसद को नहीं दी गई है। सूचना तो सांसद को दी गई है कि आप अब सांसद नहीं रहे।
द हिन्दू की खबर में लिखा है, “मैंने प्रधानमंत्री से बहुत खास सवाले पूछे हैं। मेरा सवाल था, 20,000 करोड़ रुपये या तीन बिलियन डॉलर अडानी के स्वामित्व वाली शेल कंपनियों में आए हैं। यह पैसा उनका नहीं हो सकता है। वे संरचना कारोबार में हैं। यह पैसा कहां से आया, यह पैसा किसका है”। कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार जब लाखों शेल कंपनियां बंद कराने का दावा कर रही है, विदेशी चंदे पर नजर है और छोटी-छोटी राशि के लिए जांच चल रही है तो शेल कंपनी के 20,000 करोड़ रुपए किसके हैं और इसकी अभी तक जांच न होना और आरोप लगने के बाद सारे दिन जवाब नहीं आना मामले को काफी गंभीर बनाता है। पर अखबार ने इस सवाल या आरोप को महत्व नहीं दिया है। यह ना तो बोल्ड में है और ना किसी अन्य तरीके से हाईलाइट किया गया है।
हिन्दुस्तान टाइम्स में यह खबर लीड है और शीर्षक है, “राहुल, भाजपा के बीच अदानी, अयोग्यता को लेकर आरोप-प्रत्यारोप”। अखबार ने इसके साथ सिंगल कॉलम में जनहित याचिका वाली खबर भी छापी है। शीर्षक है, “सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है अयोग्यता का प्रावधान असंवैधानिक है”। दिलचस्प यह है कि इसके साथ अखबार ने एक और बड़ा शीर्षक लगाया है, “भाजपा ने भारत को गंदी राजनीति से बाहर निकाला : मोदी”, इसके साथ नरेन्द्र मोदी की तस्वीर है जिसका कैप्शन है, शनिवार को नरेन्द्र मोदी बेंगलुरू में मेट्रो रेल के कर्मचारियों के साथ। आप जानते हैं कि कर्नाटक में विधानसभा चुनाव है और आजकल मोदी जी कर्नाटक के चक्कर लगा रहे हैं। सत्ता बचाये रखने के लिए अब तक की सबसे गंदी और घटिया राजनीति करके भी मोदी जी ही दावा कर सकते हैं कि उन्होंने भारत को गंदी राजनीति से निकाला है।
इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को दो कॉलम में लीड बनाया है और एक लाइन का फ्लैग शीर्षक है, अयोग्य ठहराए जाने के बाद का दिन। ‘मुझे अयोग्य ठहराइए, जेल में डाल दीजिए, अदानी पर सवल पूछना नहीं रुकेगा’, उपशीर्षक है, राहुल ने कहा, लोकतंत्र मर रहा है, रिपोर्टर के प्रश्न पर नाराज हुए, उसे भाजपा कार्यकर्ता कहा। अखबार में प्रेस कांफ्रेंस की तस्वीर है और कैप्शन में बताया गया है कि राहुल गांधी, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल (बाएं) बैठे हैं और केसी वेणुगोपाल शनिवार को। इस खबर के नीचे रविशंकर प्रसाद की तस्वीर के साथ छपी खबर का शीर्षक है, “अदानी से संबंध नहीं, लोग उन्हें वोट नहीं देते हैं यह भाजपा की गलती नहीं है।”
कहने की जरूरत नहीं है कि यहां शेल कंपनी के 20,000 करोड़ रुपए के आरोप को महत्व नहीं मिला है और भाजपा को अपनी बात रखने का मौका दिया गया है। फोटो कैप्शन में रविशंकर प्रसाद का यह आरोप है कि कांग्रेस ने इस मामले में कानूनी कार्रवाई करने में देरी की और यह कर्नाटक में सहानुभूति वोट लेने के लिए है। कांग्रेस ने कहा है और यह खबरों में है कि सूरत की अदालत के फैसले के खिलाफ राहत की अपील फैसले को पढ़े बिना नहीं की जा सकती है और फैसला गुजराती में है, अनुवाद नहीं हुआ है। रविशंकर प्रसाद ने इसपर टीवी पर कहा है कि गूगल से अनुवाद हो सकता है। वैसे, मैं जानता हूं कि यह इतना आसान नहीं है और भाजपा राहुल की सदस्यता जाने से अलग रहने के लिए इस तरह के दुष्प्रचार कर रही है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।