राणा अयूब
माया कोडनानी से एक दोपहर लंच के बाद शाम को मेरी बात हुई थी। उन्होंने अपने हाथ से सादा खाना बनाया था। इसमें कोई शक नहीं था कि मुस्लिम समुदाय को लेकर उनके मन में नफ़रत थी, लेकिन मोदी के प्रति उनके मन में आशंका थी वह मेरे लिए कहीं ज्यादा अहम बात थी। उन्होंने बिना किसी लाग लपेट के साफ बताया कि मोदी ने उनके और गोर्धन जड़फिया के खिलाफ मामलों का इस्तेमाल कर के उन तमाम लोगों को ठिकाने लगाया जिन्हें वे नापसंद करते थे।
ये बताइए, नरेंद्र मोदी के इर्द-गिर्द क्या चापलूसी कुछ ज्यादा नहीं है? मतलब कि क्या सारे अच्छे काम का श्रेय उन्हीं को जाता है?
अभी तो ये ठीक है लेकिन लंबी दौड़ के लिए यह बुरा होगा।
क्या आप उनके चहेतों में एक हैं?
मैं थी।
चाहे जो हो, गुजरातियों के लिए आपने जो किया है उसके लिए वे आपको कभी भूलेंगे नहीं।
वे इसे कभी नहीं भूलेंगे। सब मेरे साथ खड़े हैं।
वो अमित शाह वाले मामले के बाद मोदी को क्या हुआ है?
मेरी गिरफ्तारी और ज़मानत के बाद उनसे मैंने कोई बात नहीं की है। शायद दो मौकों पर बस हमारी मुलाकात भर हुई है।
आपको देखकर उनकी प्रतिक्रिया कैसी रहती है?
कोई प्रतिक्रिया नहीं होती, वे कुछ नहीं कहते हैं। मैं भी कुछ नहीं कहती। चाहे जोहो, यह मेरी दिक्कत है। मैं निपट लूंगी। ईश्वर मेरी मदद करेगा। आखिर दूसरों से मदद की उम्मीद मैं क्यों करूं। मैं जानती हूं कि मैं निर्दोष हूं और भगवान मेरी मदद करेगा। मैथिली, मैं वहां थी ही नहीं। बीस किलोमीटर दूर बैठी थी। मैं सोला में थी। मैं साढ़े आठ बजे असेंबली में गई थी। मैं अपने घर से निकलकर आनंदीबेन के घर गई। वहां हम लोग बात कर रहे थे।
यानी आनंदीबेन से भी पूछताछ हुई होगी?
पता नहीं। वहां से मैं सिविल अस्पताल चली गई क्योंकि सारे शव सोला सिविल अस्पताल में ही थे। मेरी नर्स के पिता गोधरा में शिकार हुए थे और मैं उनकी लाश पहचानने वहां गई थी। अमित शाह और मैं अस्पताल गए थे। वहां तो हिंदुओं ने भी हमें प्रताडि़त किया, वे इतने नाराज़ थे। वे मेरे और अमित शाह के विरोध में चिल्ला रहे थे।
तो आरोप क्या है?
वे गवाहों का इस्तेमाल कर के साबित कर रहे हैं कि मैं दंगे भड़का रही थी और भीड़ की अगुवाई कर रही थी। मैं अपने अस्पताल आई… एक प्रसव के केस को देखा, तीन बजे मैं अस्पताल गई। उनका कहना है कि मेरा मोबाइल एक खास जगह पर था इसलिए मैं वहां थी।
उस समय गोर्धन जड़फिया गृह मंत्री थे। क्या उन्हें भी इसी कारण से हटाया गया था?
नहीं, उन्हें इसलिए हटाया गया क्योंकि सीएम उन्हें पसंद नहीं करते थे।
यानी सीएम ने गोर्धन भाई को बचाने के लिए गवाहों का इस्तेमाल नहीं किया, जैसा उन्होंने अमित शाह के मामले में किया था?
नहीं (हंसते हुए)
यानी दंगों के बहाने उन्हें गोर्धन जड़फिया से मुक्ति मिल गई?
हां
यानी जिन लोगों को वे पसंद नहीं करते थे, उन्हें निपटाने के लिए दंगा एक बहाना बन गया?
हां
और अमित शाह का क्या मामला है?
वो तो उन्हीं के आदमी हैं, बेहद करीबी।
मैं सोचती थी कि आनंदीबेन उनके ज्यादा करीबी हैं।
आनंदीबेन दायां हाथ है और वे बायां। अमित शाह को बाहर निकालने के लिए उन्होंने जो हो सकता था किया। आडवाणी आकर उनसे मिले। सुषमा स्वराज उनके आवास पर आई थीं।
लेकिन जब आप गिरफ्तार हुईं तब ये सब नहीं हुआ?
क्या करना है… भगवान सब देख रहा है। ऐसा लगता है कि उन्हें प्रधानमंत्री का प्रत्याशी बना दिया जाएगा। और उसको टक्कर देने वाला भी कोई नहीं है। वे आनंदीबेन को सीएम बना देंगे।
ये सब लोग कितना बोलते हैं उनके पीछे। ये आपके एनकाउंटर कॉप्स भी यही बोलते हैं कि इस्तेमाल कर के उन्हें फेंक दिया गया?
हां, वंजारा बहुत अच्छा था। देखो, एनकाउंटर तो किया इन लोगों ने, लेकिन जो सही वजह है ये क्यों नहीं सामने आ रहा। जैसे कि सोहराबुद्दीन को मारा टेररिस्ट बोल के, उसकी वाइफ को क्यों मारा, वो तो टेररिस्ट नहीं थी ना। वो कौसर बी। वो बुरा आदमी था तो चलिए आपने उसे मार दिया, लेकिन उसकी पत्नी को क्यों मारा?
हरेन पंड्या और गोर्धन जड़फिया दोनों को निकाल दिया ना?
गोर्धन भाई तो ठीक थे, हरेन पंड्या बहुत डायनमिक आदमी थे।
लेकिन गोर्धन भाई को भी तो दंगे में इस्तेमाल कर के फेंक दिया इसने?
हां, हां… पूरे गुजरात में दंगे हुए थे लेकिन वे नरोडा के विधायक यानी मेरे पीछे थे।
तो आपको बलि का बकरा बना दिया?
हां
मोदी से पूछताछ में क्या हुआ?
वे भी एसआइटी के पास गए थे लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया।
लेकिन जिस आधार पर आपको दोषी ठहराया, उसी आधार पर उनकी भी गिरफ्तारी हो जानी चाहिए थी?
हा हा… (सिर हिलाते हुए)
कल मैं आपके मोदी से मिलने जा रही हूं।
मिलने पर पूछना कि वो इतना विवादास्पद आदमी क्यों है।
वाकई?
वो सब कुछ अपने पक्ष में कर लेता है।
ये लोग आपसे जेल में मिलने आए थे?
ना, कोई नहीं।
मतलब आप किसी भी दिन जेल जा सकती हैं?
किसी भी दिन, जब फैसला आ जाए।
मैं मोदी से क्या पूछूं, वो तो घुमा देंगे (मेरे सवालों को) ?
अपने सवाल को घुमाकर पूछना। पहले उसकी प्रशंसा करना, फिर पूछना…
आपके बारे में?
किसी और तरीके से पूछना, जैसे ये कि उनके कुछ मंत्री क्यों लिप्त थे। पीसी पांडे से पूछना, वो सब जानता है। वो अमदाबाद का कमिश्नर था।
तो वो सच क्यों नहीं बोलते?
पता नहीं।
अब मैं समझी कि उनका चेहरा क्यों लटक गया था (जब कोडनानी के बारे में पूछा गया) ?
मेरे बारे में अब वो क्यों बोलेगा।
बौश्र मोदी के बारे में?
पहले उसकी और उसके काम की प्रशंसा करना, तब वो तुमसे बात करेंगे। जानती हो वो क्या बोलेंगे, उनका पक्का जवाब, ”मैं विवेकानंद को मानता हूं, सरदार पटेल को मानता हूं।” मेरे बारे में पूछोगी तो जवाब होगा, ”अच्छा, हम क्या करें, एसआइटी जांच कर रही थी, फोन कॉल के रिकॉर्ड पाए गए” या फिर छोटा सा प्यारा सा जवाब देगा, ”मामला अदालत में है।”
तो ये सारे बिंदु उन पर भी लागू होते हैं?
हा हा, उन्हीं से पूछना।
(पत्रकार राणा अयूब ने मैथिली त्यागी के नाम से अंडरकवर रह कर गुजरात के कई आला अफसरों का स्टिंग किया था, जिसके आधार पर उन्होंने ”गुजरात फाइल्स” नाम की पुस्तक प्रकाशित की है। उसी पुस्तक के कुछ चुनिंदा संवाद मीडियाविजिल अपने हिंदी के पाठकों के लिए कड़ी में पेश कर रहा है। इस पुस्तक को अब तक मुख्यधारा के मीडिया में कहीं भी जगह नहीं मिली है। लेखिका का दावा है कि पुस्तक में शामिल सारे संवादों के वीडियो टेप उनके पास सुरक्षित हैं। इस सामग्री का कॉपीराइट राणा अयूब के पास है और मीडियाविजिल इसे उनकी पुस्तक से साभाार प्रस्तुत कर रहा है।)