आज़ादी की 75वीं वर्षगाँठ पर मुज़्फ़फ़रनगर में हिंदू महासभा ने महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे की बड़ी तस्वीर के साथ तिरंगा यात्रा निकाली। बात-बात पर ‘बुलडोज़र एक्शन’ की धमकी देने वाली योगी सरकार और उसका प्रशासन स्वतंत्रता दिवस के दिन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के हत्यारे की इस जय-जयकार पर चुप्पी साधे हुए है। बहुत लोगों ने सोशल मीडिया में यूपी की योगी सरकार से लेकर यूपी पुलिस को टैग करते हुए सवाल पूछे हैं, लेकिन ख़बर लिखे जाने तक किसी कार्रवाई की जानकारी नहीं है।
इस घटना की तीखी प्रतिक्रिया हो रही है और इसे हिंदुत्ववादियों के असल इरादों की निशानदेही कहा जा रहा है। हद तो ये है कि हिंदू महासभा के मुज़ुफ़्फ़रनगर ज़िलाध्यक्ष लोकेश कुमार सैनी ने कोई सफ़ाई देने के बजाय कहा कि “हिंदू महासभा राष्ट्रवादी संगठन है और गोडसे उसके आदर्श हैं जो संगठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। गोडसे उनके दिल में बसते हैं, इसलिए उनकी तस्वीर हर कार्यक्रम में रहती है।”
वरिष्ठ पत्रकार कृष्णकांत ने अपनी फ़ेसबुक दीवार पर लिखा-
कट्टरपंथी हिंदू सवाल उठाते हैं कि गांधी को राष्ट्रपिता क्यों माना जाए? यह सवाल तुमको नेताजी सुभाष चंद्र बोस से पूछना चाहिए था। जब तुम्हारे देवता अंग्रेजों से पेंशन ले रहे थे, क्रांतिकारियों के खिलाफ जासूसी कर रहे थे, तब वह बूढ़े महात्मा का ही करिश्मा था जिसने 30 बरस तक समस्त हिंदुस्तान को एक तिरंगे के नीचे एकजुट रखा।
आरएसएस, हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग, यानी कट्टर हिन्दू और कट्टर मुसलमान दोनों अंग्रेजों के साथ थे। जब भारत छोड़ो आंदोलन में पूरा भारत अंग्रेजों के दमन का शिकार हो रहा था तब हिन्दू महासभा और मुस्लिम लीग मिलकर बंगाल में सरकार चला रहे थे और आंदोलन को कुचलने के लिए अंग्रेजी सरकार को मदद करने का भरोसा दे रहे थे।
इस देश में कौन लोग हैं जो हमारे सबसे तेजस्वी महापुरुष की हत्या करने वाले की पूजा करना चाहते हैं? कौन लोग यह चाहते हैं कि गांधी की हत्या करने के पीछे हत्यारे के तर्कों को सुना जाए और उसे वैधता प्रदान की जाए? क्या 140 करोड़ लोगों को हत्या के उसी तर्क का इस्तेमाल करने की छूट मिलेगी?
क्या हर व्यक्ति अपने विरोधी की हत्या करके तर्क पेश कर सकता है कि वह बड़ा देशभक्त है? किसी देशभक्ति? पूरे संघी कुनबे ने पिछले 75 साल में हत्या, हिंसा के अलावा और क्या हासिल किया? महात्मा गांधी- जो बुद्ध के बाद हिंदुस्तान का अकेला विश्वपुरूष है- उसकी हत्या के अलावा इस देश के निर्माण में इन हिंसक प्राणियों का क्या योगदान है?
जो कुछ चल रहा है, यह तिरंगा फहराने का जश्न नहीं है। यह तिरंगे की आड़ में उस तिरंगे और उसकी शान के लिए कुर्बानी देने वाले महापुरुषों को बेदखल करने का षडयंत्र है। वरना जब हर हाथ में तिरंगा दिया जा रहा है, क्या कारण है कि इंडिया गेट पर हमेशा लहराने वाला तिरंगा उतार दिया गया? क्या कारण है कि चौराहों पर लगी रेलिंगों पर तिरंगा लपेटा गया है?
यह केवल हिंदू महासभा की बात नहीं है। बीजेपी और उसका पूर्ववर्ती जनसंघ भी ढंके-छुपे ढंग से गोडसे को सम्मानित करने की मुहिम चलाते रहे हैं। गोडसे के बयान पर आधारित ‘गाँधी वध क्यों?’ किताब बीजेपी दफ्तरों पर खुलेआम बेची जाती रही है (ध्यान रहे कि हिंदू धर्म की कथाओं में ‘वध’ राक्षसों का होता है।)आरएसएस और बीजेपी से जुड़े नेता गोडसे की खुलेआम प्रशंसा करते रहे हैं। कुछ समय पहले बीजेपी की सांसद और मालेगाँव बम धमाकों की आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर ने भी नाथूराम गोडसे को देशभक्त बताते हुए प्रशंसा की थी। जब शोर मचा तो पीएम मोदी ने कहा था कि वे ऐसे बयानों के लिए कभी दिल से माफ़ नहीं कर पायेंगे लेकिन साध्वी प्रज्ञा ठाकुर पर बीजेपी ने संगठन स्तर पर कोई कार्रवाई नहीं की।
ग़ौरतलब है कि नाथूराम गोडसे ने किसी अंग्रेज़ को कभी कंकड़ से भी नहीं मारा था जबकि प्रार्थना सभा में शामिल होने जा रहे महात्मा गाँधी के सीने पर तीन गोलियाँ उतार दी थीं। उसने पहले भी कई बार महात्मा गाँधी की हत्या करने की कोशिश की थी। पूरे स्वतंत्रता आंदोलन में यही एक कारनामा उसके नाम दर्ज है फिर भी आरएसएस और उसे जुड़े संगठनों की नज़र में वह ‘सच्चा देशभक्त’ है।
इसी तरह जस्टिस कपूर कमीशन ने जिन विनायक दामोदर सावरकर को महात्मा गाँधी की हत्या का मुख्य षड़यंत्रकारी बताया था, उन्हें बीजेपी खुलेआम अपना नायक मानती आयी है। आज़ादी के अमृत महोत्सव पर कर्नाटक की बीजेपी सरकार की ओर से जारी अख़बारी विज्ञापन में अंग्रेज़ों से माफी भीख माँगने वाले सावरकर की तस्वीर तमाम देशभक्तों के साथ लगायी गयी जबकि नेहरू जैसी शख्सियत की तस्वीर ग़ायब कर दी गयी।
दरअसल, हिंदुत्ववादी संगठन राष्ट्रवाद के शोर के बीच धीरे-धीरे राष्ट्रीय प्रतीकों को दरकिनार करने की कोशिश में जुटे हैं। तिरंगे के साथ भगवा झंडा फहराने और भगवा को तिरंगा के ऊपर बताना भी उसी की रणनीति है।