चुनावी लाभ के लिए पीटा गया था फ्री राशन का ढिंढोरा- आराधना मिश्रा
सरकार की ओर से राशन पाने वाले कथित अपात्रों से वसूली के लिए जारी हुए शासनादेश पर कांग्रेस पार्टी ने तीखी प्रतिक्रिया जतायी है। कांग्रेस विधानमंडल दल नेता श्रीमती आराधना मिश्रा ‘मोना’ ने आरोप लगाया है कि चुनावी लाभ के लिए बीजेपी सरकार ने ग़रीबों से ऐसा छल किया है जिसकी दूसरी मिसाल नहीं है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे को विधानसभा में पार्टी की ओर से ज़ोर-शोर से उठाया जाएगा। सरकार को इस मसले पर श्वेतपत्र जारी करना चाहिए। इस शासनादेश ने बीजेपी का असली चाल, चरित्र और चेहरा एक बार फिर बेपर्दा कर दिया है।
आज पार्टी प्रदेश मुख्यालय पर आयोजित प्रेस कान्फ्रेंस को संबोधित करते हुए श्रीमती आराधना मिश्र ने कहा कि भाजपा के सभी नेता और खुद प्रधानमंत्री ये बार बार जताने से नहीं चूकते कि कैसे उन्होंने कोरोना काल के दौरान मुफ्त राशन बांटा, लेकिन असलियत तो ये है कि लोगों को दो जून की रोटी भी चुनावों को ध्यान में रखकर दी गई थी और अब जब चुनाव खत्म हो गया है तो लोगों के पेट पर लात मारने की तैयारी भी पूरी हो चुकी है।
उन्होंने कहा कि शासनादेश में साफ तौर से कहा गया है कि नए नियमों के तहत राशन कार्ड के लिए पात्र मात्र वह लोग होंगे जिनकी खुद की कोई जमीन न हो, पक्का मकान न हो, भैस, बैल, ट्रैक्टर ट्रॉली ना हो, मोटरसाइकिल न हो, मुर्गी पालन और गौ पालन न करता हो, शासन की ओर से कोई वित्तीय सहायता न मिलती हो, बिजली का बिल न आता हो, जीविकोपार्जन के लिए कोई आजीविका का साधन न हो। मतलब गरीबी दूर करने के बजाय मोदी सरकार में गरीब बने रहने में ही फायदा है। शासनादेश कहता है कि ऐसे तमाम मानक के चलते अपात्र घोषित लोगों का राशन कार्ड तुरंत निरस्त कर दिया जायेगा। और अगर यह तथाकथित अपात्र स्वयं राशन कार्ड नहीं दे देते हैं तो इनसे कोरोना जैसी महामारी के दौरान दिए हुए राशन की वसूली और कुर्की तक की जाएगी। आंकड़े बताते हैं कि देश के 84% लोगों की आय कम हो गई है, लोगों की नौकरियां नष्ट हो गयीं, महंगाई से लोगों की कमर टूट रही है और उस दौरान यह निर्णय लिया गया है की कोई भी राशन कार्ड वाला अगर अपात्र पाया जाता है तो उससे वसूली छोटे मोटे दाम पर नहीं बल्कि ₹24 प्रति किलो गेहूं, ₹32 प्रति किलो चावल पर होगी। यही नहीं नमक, दाल और खाने के तेल की वसूली तो बाजार के रेट पर होगी। यह योगी सरकार की क्रूरता और संवेदनहीनता का जीता-जागता सबूत है।
उन्होंने कहा कि 2013 का खाद्य सुरक्षा कानून साफ़ तौर से यह अंकित करता है कि उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में 79.5% और शहरी क्षेत्रों में 64.4% लोगों को खाद्य सुरक्षा का फायदा पहुंचना चाहिए। अप्रैल 2022 की फूड ग्रेन बुलिटन जो कि भारत सरकार जारी करती है के अनुसार उत्तर प्रदेश में 15.20 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत राशन मिलना चाहिए। तो अब सवाल ये भी है कि वाकई में कितने लोगों को राशन दिया गया? राशन कार्डों को निरस्त करने की जो प्रक्रिया चल रही है, इससे कितने लोग खाद्य सुरक्षा के फायदे से वंचित हो जायेंगे, और क्या उत्तर प्रदेश की सरकार जो खाद्य सुरक्षा अधिनियम का क़ानूनी ज़रूरत है – उतने लोगों को खाद्य सुरक्षा देने का प्रबंध कर रही है?
श्रीमती आराधना मिश्र मोना ने कहा कि इस मामले में हमारे कुछ सवाल हैं-
क्या यह मानक राशन कार्ड देते वक्त इस्तेमाल किए गए थे?
क्या मानक राशन कार्ड देने के बाद बदले गए हैं?
तथाकथित गलत राशन कार्ड दिए जाने पर पहली कार्यवाही अधिकारियों के खिलाफ़ क्यों नहीं जिन्होंने अपात्रों को राशन कार्ड दिया?
अगर अपात्रों के पास राशन कार्ड से राजस्व को नुक्सान हुआ तो अधिकारीयों की क्या जवाबदेही होगी?
अगर आपकी अपात्रों वाली बात सच भी है तो चुनाव के पहले कार्यवाही क्यों नहीं हुई?
कानूनी आवश्यकता राशन कार्ड निरस्त होने से कितने लोग खाद्य सुरक्षा के फायदे से वंचित हो जायेंगे?
क्या उत्तर प्रदेश की सरकार खाद्य सुरक्षा अधिनियम की क़ानूनी आवश्यकता (ग्रामीण क्षेत्रों में 79.5% और शहरी क्षेत्रों में 64.4%) को पूरा करेगी?
उन्होंने कहा कि चुनाव के पहले जो लोग फ्री राशन से बने लाभार्थियों की संख्या बताने से नहीं चूकते थे, अनाज के झोलों पर अपनी तस्वीरें छपवा कर लोगों को लुभाते थे, और भारत की जनता पर अहसान लादने का एक भी मौका नहीं छोड़ते थे – आज चुनाव खत्म होते ही करोड़ों लोगों के मुंह से निवाला छीनने पर क्यों आमादा हो गए? क्या लोगों का पेट सिर्फ वोटों के लिए भरा जा रहा था- और अब जब चुनाव ख़त्म तो गरीब को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया जायेगा? कांग्रेस पार्टी सरकारी के इस संवेदनहीन रवैये के खिलाफ सड़क से सदन तक संघर्ष करेगी।