कभी ‘शाखामृग’ रहे लेखकों का बयान : मुस्लिम बनकर दंगा कराते हैं संघ के स्वयंसेवक !

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महात्मा गाँधी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने आरएसएस को विध्वंसक बताते हुए उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। उन्होंने कहा था कि गाँधी जी की हत्या के बाद आरएसएस ने मिठाई बँटवाई थी। संघ की गुप्त गतिविधियों और हिंदू-मुसलमानों के बीच वैमनस्य बढ़ाने की उसकी हरक़तो को वे देश के लिए बेहद ख़तरनाक मानते थे। इसीलिए प्रतिबंध हटाने के लिए उन्होंने शर्त रखी थी कि संघ राजनीति से दूर रहे, अपना संविधान बनाए और बच्चों को माँ-बाप की इजाज़त के बग़ैर शाखाओं में ना ले जाए।

सरदार पटेल की आशंकाएँ यू हीं नहीं थी। संघ ने उन्हें भी धोखा दिया और ख़ुद को सांस्कृतिक बताते हुए राजनीति करता रहा। बच्चों के इस्तेमाल की उसकी रणनीति संगठन के लिए चाहे जितनी फ़ायेदमंद रही हो, समाज के लिए घातक ही सिद्ध हुईं।

हिंदी के वरिष्ठ आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल का बचपन ग्वालियर में बीता है। आज वे अपने वैचारिक तेवर और सांप्रदायिकता विरोधी आंदोलन में सक्रियता के लिए जाने जाते हैं। लेकिन जब वे 10-12 साल के थे तो अपने एक स्वयंसेवक रिश्तेदार के प्रभाव में कुछ दिनों तक आरएसएस की शाखा में गए थे। वहाँ उन्हें सिखाया गया कि कैसे हिंदुओं और मुसलमानों के बीच नफ़रत फैलाने के लिए षड़यंत्र किए जाएँ। पुरुषोत्तम अग्रवाल बताते हैं कि उन्होंने मुस्लिम बनकर अपने हाथ से पर्चे लिखे थे जिससे हिंदुओं में यह भावना भड़के कि मुसलमान उन्हें मारने की तैयारी कर रहे हैं। ‘शाखामृगों’ को निर्देश था कि इन पर्चों को ‘अचानक मिला’ बताकर अपने घर वालों या स्कूल के शिक्षकों, मित्रों को दिखाएँ ताकि लोग उत्तेजित हों।

ऐसी ही बातें संघ के पुराने स्वयंसेवक देशराज गोयल भी बताते हैं। वे संघ में लंबे समय तक रहे। उन्होंने संघ से जुड़े अपने अनुभवों पर एक किताब भी लिखी है जो काफ़ी चर्चित है। दोनों महानुभावाओं की यह स्वीकरोक्ति का एक पुराना वीडियो सामने आया है, जिसमें वे बता रहे हैं कि किस तरह आरएसएस दंगा भड़काने के लिए षड़यंत्र करता था। यह वीडियो 1990-95 के बीच का लगता है। (सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने इसे फ़ेसबुक पर लगाया है।)

इसे देखते हुए याद कीजिए कि कैसे पिछले दिनों कई मामलों में दंगा फैलाने वालों के पास से नकली दाढ़ियाँ और टोपियाँ मिली थीं।

वीडियो देखने से पहले हिंदी के वरिष्ठ लेखक और आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी का यह बयान भी देख लीजिए कि कैसे आरएसएस ने आज़ादी की मिठाई का बहिष्कार किया था।