उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक निर्णय देते हुए यूपी पुलिस में दाढ़ी (Beard) रखने पर रोक के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा पुलिस फोर्स में दाढ़ी रखना संवैधानिक अधिकार नहीं है। कोर्ट ने 12 अगस्त को यह आदेश पारित किया।
HC ने दखल देने से किया इंकार..
बता दें की यूपी पुलिस के पुलिस महानिदेशक {Director General of police (DGP)} की ओर से एक परिपत्र (circular) जारी कर पुलिस फोर्स में रहते हुए दाढ़ी रखने पर पाबंदी लगा दी थी। डीजीपी द्वारा परिपत्र जारी किए जाने के बाद भी अयोध्या जनपद के एक थाने में तैनात सिपाही मोहम्मद फरमान ने दाढ़ी रखी हुई थी। डीजीपी की ओर से जारी आदेश का पालन न करने पर सिपाही को निलंबित (Suspended) करते हुए पुलिस विभाग की ओर से चार्जशीट जारी कर दी गई थी। जिसके बाद सिपाही मोहम्मद फरमान ने निलंबन को हाईकोर्ट में चुनौती दिया था। लेकिन HC ने याचिका खारिज कर दी और याचिका दाखिल करने वाले सिपाही के खिलाफ जारी निलंबन आदेश और चार्जशीट में दखल देने से भी इनकार कर दिया।
इन मुद्दों पर दायर की गई थी दो याचिकाएं..
याचिकाकर्ता ने दो याचिका दायर की थी कोर्ट इन्हीं दोनों याचिकाओं पर एक साथ सुनवाई कर रहा था। एक याचिका में पुलिस महानिदेशक द्वारा 26 अक्टूबर, 2020 को जारी सर्कुलर और साथ ही डीआईजी/एसएसपी अयोध्या द्वारा उनके खिलाफ पारित निलंबन आदेश को चुनौती दी थी।
पुलिस की छवि धर्मनिरपेक्ष हो : HC
वहीं दूसरी याचिका में याचिकाकर्ता ने विभागीय अनुशासनात्मक कार्यवाही में उनके खिलाफ जारी चार्जशीट को चुनौती दी थी। कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद फैसले में कहा कि 26 अक्टूबर 2020 का सर्कुलर एक कार्यकारी आदेश है, इसे पुलिस फोर्स में अनुशासन के लिए जारी किया गया है। कोर्ट ने आगे कहा कि पुलिस की छवि (image) धर्मनिरपेक्ष (secular) होनी चाहिए। इसी इमेज से राष्ट्रीय एकता को मजबूती मिलती है।
याचिका में धार्मिक स्वतंत्रता की दलील..
फरमान की ओर से कोर्ट में दायर याचिका में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार की दलील दी गई। याचिकाकर्ता का कहना था की संविधान में मिले धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के तहत उसने दाढ़ी रखी है। परमिशन के लिए काउंटर पिटीशन भी दिया था। लेकिन उसे स्वीकार ही नहीं किया गया। इसपर कोर्ट ने कहा कि पुलिस फोर्स में अनुशासन बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि लॉ इंफोर्समेंट एजेंसी होने की वजह से डिपार्टमेंट का सेक्युलर होना जरूरी है। वहीं जस्टिस राजेश सिंह चौहान ने उल्टा याचिकाकर्ता पर ही सवाल खड़े कर दिए एकल पीठ ने कहा कि एसएचओ की चेतावनी के बावजूद दाढ़ी न कटवाना फरमान द्वारा किया गया कदाचरण है।