बनारस की ऐतिहासिक नागरीप्रचारिणी सभा में चुनाव कराने के प्रशासन के फ़ैसले के बाद लेखकों और लेखक संगठनों ने भी अंगड़ाई ली है। प्रगतिशील लेख संघ की वाराणसी इकाई ने इस संबंध में कवि व्योमेश शुक्ल के संघर्ष को सराहते हुए एक बयान जारी किया है। ग़ौरतलब है कि हिंदी के चर्चित कवि और रंगकर्मी व्योमेश शुक्ल ने इस संबंध में लिखित शिकायत करते हुए मोर्चा सभा पर आधी सदी से क़ाबिज़ एक परिवार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोला था।
आप इस संबंध में प्रगतिशील लेखक संघ की वाराणसी इकाई की ओर से जारी बयान पढ़ सकते हैं–
‘तोड़ने ही होंगे मठ और गढ़ सब’…….
वाराणसी, 11 जून। नागरी प्रचारिणी सभा,काशी की सभी कमेटियों को भंग करने के अदालती आदेश पर प्रगतिशील लेखक संघ, वाराणसी ने सन्तोष व्यक्त किया है। सभा लम्बे समय से गैर साहित्यिक और गलत इरादे वाले लोगों के कब्जे में फंसी पड़ी थी। ऐतिहासिक महत्व के इस गौरवशाली संस्था को दबंगों ने किसी गढ़ जैसा बना रखा था। कल एसडीएम (कोर्ट) ने इस संस्था पर दशकों से कुण्डली मार कर बैठे असरदारों को बेअसर करते हुए उनकी कमेटियों को भंग कर दिया। हाईकोर्ट के निर्देश पर एसडीएम (कोर्ट) ,वाराणसी इसकी सुनवाई कर रहे थे। वर्चस्व की संस्कृति को चुनौती देते हुए यह याचिका कवि-आलोचक एवं संस्कृतिकर्मी व्योमेश शुक्ल ने दायर की थी। लम्बी लड़ाई के बाद इस मुकदमे का फैसला व्योमेश एवं अन्य के हक में आया है।वस्तुत: ये अन्य आप और हम सब हैं।यानि हिन्दी समाज है। नागरी प्रचारिणी सभा,काशी के सम्बन्ध में हुए इस फैसले को जनपक्षधर मूल्यों की जीत के रूप में देखा जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस सभा से बाबू श्याम सुंदर दास, लाला भगवानदीन, बालकृष्ण भट्ट, रामचंद्र शुक्ल, रामचंद्र वर्म्मा, अमीर सिंह, जगनमोहन वर्मा, धीरेन्द्र वर्मा,शिवनंदन लाल दर,मंगलदेव शास्त्री,राजबली पाण्डेय, हजारी प्रसाद द्विवेदी, संपूर्णानंद,करुणापति त्रिपाठी, कृष्णदेव प्रसाद गौड़, भोलाशंकर व्यास, डा.नगेद्र जैसे शीर्ष विद्वान जुड़े रहे। कालांतर में इसके स्वर्णिम अतीत पर धूल डालते हुए डा.सुधाकर पाण्डेय जब मंत्री बने तो इसकी अधोगति शुरू हो गयी। आरोप है कि इन्होंने इसे ‘सुधाकर पाण्डेय एण्ड संस’ में तब्दील कर दिया। इसके बाद तो नागरी प्रचारिणी सभा की सम्पत्ति के ये स्वामी बन बैठे। इस दौरान यहां से प्रकाशित दुर्लभ पांडुलिपियां और पुस्तकें गुम होने लगीं।बहुत सी तो विदेशी संस्थानों को बेच दी गयीं। उधर भारत सरकार से करोड़ों रुपए का अनुदान भी ये लोग लेते रहे। आज इस सभा में कार्यरत कर्मचारी डेढ़-दो हजार रुपए वेतन पर काम करते हैं। इस कोरोनाकाल में इनमें से अनेक कर्मचारी वेतन के अभाव में भुखमरी के शिकार हो कर पलायन कर गए। यानि कुल मिलाकर पाण्डेय परिवार की मनमानी ने इस गौरवशाली ना.प्र.सभा को तबाह करने में कोई कसर नहीं रख छोड़ा। नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की दुर्दशा पर देश भर के अखबारों-पत्रिकाओं ने बराबर खूब लेख लिखे। करीब तीन दशक से देश भर के विद्वानों ने नागरी प्रचारिणी सभा, काशी की खस्ताहाली पर काफी कुछ लिखा। प्रो.वसुधा डालमिया ने सभा की कारगुजारी के विरोध में एक बड़ा अंतरराष्ट्रीय अभियान ही चला रखा था। मगर सारी कोशिशें नाकाम होती रहीं।
अब इस फैसले के बाद नये सिरे से 2004 तक की सदस्यता के आधार पर चुनाव होंगे। इसके लिए हिन्दी समाज के प्रबुद्ध एवं जनपक्षधर लोगों को भी सक्रिय भूमिका में आगे आना होगा। निश्चित रूप से यह उम्मीद की जा सकती है कि आप सभी के सहयोग से नागरी प्रचारिणी सभा,काशी का खोया हुआ गौरव फिर से हम सब वापस दिलाने में कामयाब होंगे। प्रगतिशील लेखक संघ, वाराणसी नागरी प्रचारिणी सभा, काशी को बदहाली से मुक्त कराने में कवि-आलोचक व संस्कृतिकर्मी श्री व्योमेश शुक्ल एवं अन्य साथियों की कोशिशों का पूर्ववत समर्थन करता है।
समर्थन के निमित्त प्रख्यात कथाकार काशीनाथ सिंह, प्रसिद्ध आलोचक प्रो.चौथीराम यादव, जवाहर लाल कौल ‘व्यग्र’, प्रो.शाहिना रिज़वी, जनकवि शिव कुमार पराग, वरिष्ठ आलोचक, प्रो.संजय कुमार, प्रो.श्रीप्रकाश शुक्ल, प्रो.आशीष त्रिपाठी, डा.संजय श्रीवास्तव, प्रो.अनुराग कुमार, प्रो.निरंजन सहाय, प्रो.प्रभाकर सिंह, प्रो.नीरज खरे, डा.गोरख नाथ पाण्डेय, डा.वन्दना चौबे, डा.शिवानी, डा.नृपेंद्र नारायण सिंह, राजीव कुंवर ने सहमति भेजी है।
डा.गोरख नाथ
अध्यक्ष
वन्दना चौबे
महासचिव