तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने और एमएसपी की गारंटी का कानून बनाने की मांग पर चल रहे देशव्यापी किसान आंदोलन की अगली कड़ी में ‘संयुक्त किसान मोर्चा’ के आह्वान पर आगामी 26 मार्च को आयोजित भारत बंद का वाम दलों ने सक्रिय समर्थन देने की घोषणा की है।
पटना में आज भाकपा-माले के राज्य सचिव कुणाल, सीपीआई के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय, सीपीआई (एम) के राज्य सचिव अवधेश कुमार, आरएसपी के वीरेंद्र ठाकुर और फॉरवर्ड ब्लॉक के अमरीक महतो ने संयुक्त प्रेस बयान जारी करके ये जानकारी दी।
वाम नेताओं ने कहा कि भगत सिंह के पंजाब से उठ खड़ा किसान आंदोलन का अब स्वामी सहजानन्द सरस्वती के बिहार तक व्यापक फैलाव हो रहा है। बिहार भी आज किसान आंदोलन के अग्रिम मोर्चे पे खड़ा है। भाजपा के द्वारा पंजाब के खिलाफ बिहार को खड़ा करने की कोशिशों को भगत सिंह और सहजानन्द सरस्वती के वारिस कभी कामयाब नहीं होने देंगे। आज पूरे देश के किसान एक साथ खड़े हैं। बिहार में 26 मार्च का भारत बंद ऐतिहासिक होगा।
वाम नेताओं ने बिहार की नीतीश सरकार द्वारा लाये गए ‘बिहार विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक, 2021’ को काला विधेयक बताते हुए उसे वापस लेने की मांग की। उन्होंने कहा कि यह विधेयक बिहार को पुलिस राज में बदलने की कवायद है। बिहार में नीतीश सरकार लगातार आंदोलनों को कुचलने में लगी है और विरोध की हर आवाज को कुचल देना चाहती है। राजधानी पटना में विरोध-प्रदर्शन की कोई जगह नहीं रह गई है।
वाम नेताओं ने आज रोजगार के सवाल पर विधानसभा मार्च करते राजद कार्यकर्ताओं पर हुए लाठीचार्ज की कड़ी निंदा की। वाम नेताओं ने बिहार की न्यायप्रिय जनता से 26 मार्च के भारत बंद को समर्थन देने की अपील की है।
छत्तीसगढ़ के वाम दलों का भी भारत बंद को समर्थन
तीन कृषि कानूनों की वापसी और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून बनाये जाने की मांग को लेकर पिछले चार महीने से देश भर में चल रहे ऐतिहासिक किसान आंदोलन के आव्हान पर 26 मार्च को होने वाले भारत बंद का छत्तीसगढ़ की चार वामपंथी पार्टियों ने समर्थन किया है। उल्लेखनीय है कि 26 नवंबर को शुरू हुए इए ऐतिहासिक और शांतिपूर्ण आंदोलन को 26 मार्च को पूरे चार माह हो रहे हैं।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव संजय पराते, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव आरडीसीपी राव, भाकपा माले के राज्य सचिव बृजेन्द्र तिवारी और एसयूसीआई (सी) के विश्वजीत हरोड़े ने संयुक्त रूप से जारी बयान में कहा है कि देश की कृषि को कारपोरेट के हवाले करने और किसानों को उनकी ही जमीनों से बेदखल करने के साथ ही देश की अन्न सुरक्षा को खतरे में डालने वाले इन कानूनों का देश भर में विरोध हो रहा है। संसद में भी जिन राजनीतिक दलों ने पहले इन कानूनों का समर्थन किया था, अब इन्हें वापस लेने की मांग कर रहे हैं।
इन दलों की ओर से कहा गया है कि ये कानून सिर्फ किसानों और कृषि के ही खिलाफ नहीं हैं, बल्कि गरीब की रोटी को भी कारपोरेट की तिजोरी में बंद कर देने की साजिश का हिस्सा हैं। गरीब के मुंह के निवाले को छीनने वाले इन कानूनों का देश का हर तबका विरोध कर रहा है।
वामपंथी दलों ने कहा है कि नरेंद्र मोदी सरकार की निजीकरण की नीतियों का अब तो मुखर विरोध हो रहा है। बैंकों की दो दिवसीय सफल हड़ताल के बाद बीमा क्षेत्र की दो दिन की सफल हड़ताल ने भी संघर्षरत किसानों की आवाज में आवाज मिलाई है।
वामपंथी दलों ने देश के साथ ही छत्तीसगढ़ में भी 26 मार्च के भारत बंद को सफल बनाने की अपील की है।