पढ़िए और खेल को समझिए। बिना जाने आप फिर कहते हैं कि इस सरकार में घोटाले नहीं होते..
अंग्रेज़ी थोड़ी मुश्किल भाषा है। आर्थिक हेराफेरी वाले बड़े घोटाले समझना ज़रा सी कठिन बात है। टर्म्स और शॉर्ट फॉर्म से भरे लेख समझना भी आसान नहीं, लेकिन क्या आपको मालूम है कि इन्हीं सब वजहों से हम बहुत कुछ नज़रअंदाज़ कर जाते हैं। कितनी ही जानने लायक बातें हम कभी जान ही नहीं पाते। पिछले दिनों दो लेख EPW नाम की प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी जर्नल में छपे। छपने के बाद हट गए। लिखने वाले ने इस बात पर इस्तीफा दे डाला मगर हंगामा उतना नहीं मचा जितना मचना चाहिए था। दरअसल एक-दूसरे से होड़ लेने वाले इस दौर में हम मुद्दों से भटक रहे हैं या फिर सफलतापूर्वक भटकाए जा रहे हैं।
उस लेख में नरेंद्र मोदी की सरकार और अड़ानी की कंपनियों के बीच रिश्तों को लेकर कुछ संगीन आरोप लगाए गए थे। आरोपों में दम था नतीजतन लेख लिखनेवालों को कंपनी के वकीलों ने चिट्ठी भेज दी। दो लेखों – क्या अडानी समूह ने 1000 करोड़ रुपये के कर की चोरी की? (प्रकाशन तिथि- 14 जनवरी, 2017) और मोदी सरकार द्वारा अडानी समूह को 500 करोड़ रुपये का फायदा (प्रकाशन तिथि- 24 जून, 2017) को हटाने की मांग की।
जर्नल प्रकाशित करनेवाले ट्रस्ट ने बैठक बुलाई और लेख हटाने का फैसला कर लिया। इधर लेख हटाने का फैसला हुआ और उधर छापनेवाले संपादक प्रंजॉय गुहा ठाकुरता ने इस्तीफा दे दिया। किसी भी सभ्य इंसान की तरह उन्होंने वजहें नहीं खोलीं लेकिन समझदार को आजकल इशारा भी ज़रूरत से ज़्यादा है। भारत के मामले में आपको समझना होगा कि यहां मीडिया के उन बहादुर लोगों को बचाने के लिए कोई संरक्षण नहीं है जो सरकारों या अमीर कंपनियों के खिलाफ खबरें लिखते हैं। मानहानि के भारी भरकम दावे ठोककर ऐसे पत्रकारों या पत्रकारिता संस्थान की आवाज़ दबाना आसान है जो आर्थिक रूप से कमज़ोर हैं या फिर ऊंचे राजनीतिक संबंध नहीं रखते।
इस मामले में पार्टी अडानी ग्रुप है, और उसकी ताकत , चाहे वो राजनीतिक हो या आर्थिक भला कौन नहीं जानता है। ऐसे मामले भारत में आम हो चले हैं। इस मामले से पहले 4 महीने पहले वायर नाम की जनपक्षधर वेबसाइट पर एनडीए के नेता सांसद राजीव चंद्रशेखर ने भी 10 करोड़ रुपए के 2 मुकदमे ठोके थे। वायर ने 1.राजीव चंद्रशेखर के स्वामित्व वाले रिपब्लिक टीवी, 2. रक्षा मामलों की संसद की स्टैंडिंग कमेटी में उनका मेंबर होना और साथ ही 3. सैन्य क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों में उनके स्वामित्व के हितों के संभावित टकराव को लेकर लेख छापे थे।
कोई भी समझदार इंसान इस बात को आसानी से समझ सकता है कि एक आदमी जिसके पास चैनल हो, हथियार सप्लाई करनेवाली कंपनी हो और देश की रक्षा नीति तय करने वाली कमेटी की मेंबरशिप हो वो किस तरह एक-दूसरे को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। शायद इन पंक्तियों को पढ़ते हुए कई लोग अंदाज़ा लगा भी पा रहे हों कि आखिर क्यों रिपब्लिक टीवी युद्ध की इतनी गुहार लगाता है और क्यों राजीव चंद्रशेखर पाकिस्तान को आतंकी देश घोषित करने के लिए उतावले हैं। स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य के तौर पर उन्हें रक्षा संबंधी तमाम वो बड़ी जानकारियां भी मिलती ही होंगी जो शायद एक बाहरी पूंजीपति को नहीं मिलनी चाहिए जिसका व्यापार हथियारों से संबंधित हो।
ताकत की नुमाइश देखिए कि वायर पर छपे लेख को हटाने के लिए राजीव चंद्रेशखर बेंगलुरु की एक स्थानीय अदालत से एकतरफा आदेश ले आए जबकि अदालत ने वायर का पक्ष सुनना बिलकुल ज़रूरी नहीं समझा। ज़ी टीवी के मालिक सुभाष चंद्रा से जुड़ी कंपनी ई-कूल गेमिंग सॉल्युशंस भी पीछे नहीं है। उसने इसी वेबसाइट को आइजोल, मिजोरम के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की तरफ से समन भिजवाया है। दरअसल वायर ने सीएजी की रिपोर्ट के आधार पर एक लेख प्रकाशित किया था जिसमें बीजेपी के घोषित समर्थक सुभाष चंद्रा की कंपनी की आलोचना की गई थी जो उत्तर पूर्वी राज्य में लॉटरी व्यवसाय में शामिल रही।
अब लौटते हैं अडानी पर।
EPW पर सबसे पहले प्रकाशित हुए और अब हटाए जा चुके लेखों में ये बात साफ तौर पर कही गई है कि मोदी सरकार ने हाल ही में ऐसे फैसले लिए जिनसे अडानी की कंपनी को 500 करोड़ रुपए का फायदा हुआ। सरकार ने SEZ से संबंधित नियमों को चुपके से बदल डाला। ये सच है कि ऐसा करना सरकार का अधिकार है और इसमें कुछ गैर कानूनी नहीं , लेकिन ये मामला किसी को फायदा पहुंचाने की नीयत से कानून बदलने का ज़रूर लगता है। EPW ने कानून में बदलाव की बात को समझने के लिए जेटली के वित्त मंत्रालय और निर्मला सीतारमन वाले वाणिज्य मंत्रालय को कुछ सवाल भेजे थे। उन सवालों का जवाब कभी नहीं दिया गया। लेख लिखनेवालों का दावा है कि उनको पक्की जानकारी मिली है कि नियमों में संशोधन अडानी पावर लिमिटेड को लगभग 500 करोड़ की कस्टम ड्यूटी के रिफंड का दावा करने का मौका देने के लिए किया गया था।
इसे ऐसे समझें- सरकार की तरफ से कंपनियों को एक छूट देने का नया नियम लाया गया। इसके मुताबिक कंपनी अगर इंडोनेशिया से कोयला मंगाती है और उस पर कस्टम ड्यूटी लगती है तो बाद में कंपनी कस्टम ड्यूटी की रकम का रिफंड मांग सकती है। लेख के लेखकों की पड़ताल कहती है कि अडानी की कंपनी ने कोयला मंगाया लेकिन कस्टम ड्यूटी नहीं चुकाई। इतना ही नहीं कंपनी ने कस्टम ड्यूटी पर रिफंड का दावा भी ठोक दिया।
दूसरा आरोप अडानी पर DRI की रिपोर्ट के आधार पर लगाया गया है। इसका पूरा नाम है Directorate of Revenue Intelligence । ये एजेंसी वित्त मंत्रालय के रेवेन्यू विभाग का हिस्सा है। ज़ाहिर है, सरकारी है। इसने अडानी ग्रुप पर आरोप लगाया है कि वो अनकट डायमंड को एक से दूसरी और दूसरी से तीसरी कंपनी को एक्सपोर्ट करती है। इस खेल को खेलकर अडानी की कंपनी सरकार द्वारा मिलने वाली छूट पर दावा जताती है। ऐसी कुल 5 कंपनियां सामने आई हैं। DRI ने इस मामले में कितने ही नोटिस अब तक अडानी एंटरप्राइज़ेज़ लिमिटेड को दिए हैं। खास बात आप लेख पढ़कर जानेंगे (कमेंट बॉक्स में लिंक) कि कैसे दरअसल अडानी की कंपनी इस छूट के योग्य नहीं थी और कैसे हैरतअंगेज़ ढंग से वित्त मंत्रालय इस मामले में सुस्त पड़कर दिखाता है।
ऐसे शोधपरक लेखों में उठे सवालों का जवाब सरकारी मंत्रालय नहीं दे सके तो अडानी के वकीलों ने सवाल उठानेवालों को ही कानून के डंडे से चुप कराने के रास्ते पर चलना सही समझा। कुछ ही दिनों पहले सरकारी लाइन पर ना चलने की सज़ा एनडीटीवी के प्रणय रॉय को भी दी जा चुकी है। ये चाल-कुचाल नई नहीं हैं। अधिक जानकारी के लिए आप THE CARAVAN का ताज़ा अंक पढ़ सकते हैं। प्रंजॉय गुहा ठाकुरता ने खुद भी एक किताब SUE THE MESSENGER ऐसे हथकंडों पर लिखी है जिसका आज वे खुद शिकार हुए हैं। कोई शक नहीं कि भविष्य में सरकार और उसके दोस्तों के खिलाफ लिखनेवालों को महंगे मानहानि के दावों में फंसाया जाएगा या फिर उनके खिलाफ आर्थिक हेरफेर के ऐसे मुकदमे दर्ज किए जाएंगे जो संस्थानों की कमर तोड़ कर रख दे।
नितिन ठाकुर
लेखक टीवी पत्रकार हैं