‘महिला’ दिवस पर, नवदीप कौर के ईवेंट में – ABVP के ‘पुरुषों’ का हंगामा – तथ्य, कथ्य, सवाल..

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
संपादकीय Published On :


ये ख़बर और कार्यक्रम के प्रतिभागियों से बातचीत के साथ एक संपादकीय टिप्पणी भी है। हम इसे तत्काल, एक ख़बर की तरह भी प्रकाशित कर सकते थे, लेकिन हम चाहते थे कि हम इस पर सोचें और पढ़कर आप भी सोचें।-संपादक

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर, भारतीय जनता पार्टी के छात्र संगठन – अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने अपने ताज में एक और नगीना जड़ा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के कला संकाय में दलित एक्टिविस्ट-श्रम अधिकार कार्यकर्ता नवदीप कौर का कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम को भगत सिंह छात्र एकता मंच ने आयोजित किया था। नवदीप कौर, जैसा कि हम जानते हैं कि हाल ही में ज़मानत पर रिहा हुई हैं और सोनीपत पुलिस पर उनके साथ थाने में हिंसा के गंभीर आरोप हैं। उनके लिए देश ही नहीं, दुनिया भर से समर्थन मिला और वो मज़दूरों को सैलरी दिलवाने की अहम लड़ाई लड़ रही हैं।

इस कार्यक्रम के शुरू होने के कुछ ही देर में, वहां पर एबीवीपी के कार्यकर्ता आ पहुंचे – जिनमें तस्वीरों और वीडियो के मुताबिक़ लगभग सभी ‘पुरुष’ थे। जी हां, और ढेर सारे पुरुष महिला दिवस के इस कार्यक्रम का विरोध करने पहुंचे थे। विरोध क्यों कर रहे थे – ये एबीवीपी के ये कार्यकर्ता या पदाधिकारी ही बता सकते थे और उन्होंने बताया भी है। ये हर बार जैसा ही एक कारण है, जिसमें देशभक्ति या राष्ट्रविरोध शामिल है। यानी कि भाजपा के छात्र संगठन एबीवीपी की देशभक्ति और उनके विरोधी का राष्ट्रविरोध…

तो एबीवीपी के अनुसार, इस कार्यक्रम में ‘सेना-विरोधी’ पोस्टर लगे थे, जिनका वे विरोध कर रहे थे। इसके बाद, उनकी और भगत सिंह छात्र एकता मंच और साथ ही नवदीप कौर की भिड़ंत हुई। लेकिन दूसरे पक्ष और कई सारे प्रत्यक्षदर्शियों से हमारी बातचीत से एक और पहलू सामने आया है। तो सबसे पहले बात करते हैं कि इस पर भगत सिंह छात्र एकता मंच का क्या कहना है।

भगत सिंह छात्र एकता मंच के आधिकारिक बयान के मुताबिक़, “जिस समय नवदीप की बहन राजवीर कौर, अपना भाषण दे रही थी – एबीवीपी के कार्यकर्ता कार्यक्रम में घुस आए और पोस्टर फाड़ने लगे। उनको रोके जाने पर उन्होंने महिला साथियों से गाली-गलौज की।”

इस कार्यक्रम में नवदीप कौर के अलावा, बुटाना की रेप पीड़ित और गुड़मंडी रेप पीड़ित की मौसी भी अपनी बात रखने के लिए मौजूद थी। लेकिन एक छात्र ने अपनी पहचान ज़ाहिर न करने की शर्त पर हमको बताया कि दरअसल एबीवीपी कार्यकर्ताओं की पूरी कोशिश ये थी कि किसी भी तरह, नवदीप कौर का भाषण न होने दिया जाए। और ऐसा ही हुआ..नवदीप कौर की स्पीच एबीवीपी ने नहीं होने दी। 

एक और प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक़, एबीवीपी कार्यकर्ताओं के वहां पहुंचने के 10 मिनट के भीतर ही भारी हंगामा शुरू हो गया और कार्यक्रम पूरी तरह बाधित हो गया। नवदीप कौर की बहन, राजवीर के मुताबिक़ – ‘एबीवीपी के लोग पोस्टर फाड़ते रहे, हंगामा करते रहे और हमको धमकी देते रहे। लेकिन दिल्ली पुलिस मूकदर्शक बन कर खड़ी हुई थी। इसके बाद, पुलिस ने हमारे साथियों को ही बलपूर्वक रोकना शुरू कर दिया। पुलिस ने भगत सिंह छात्र एकता मंच के रविंदर सिंह के अलावा 3 एसएफआई कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया, जबकि हंगामा एबीवीपी ने किया था।’

वीडियो और तस्वीरों से ये भी दिख रहा है कि पुलिस द्वारा बलपूर्वक खींचे जाते समय, महिला और पुरुष दोनों ही कार्यकर्ताओं के कपड़े भी फट गए थे। साथ ही भगत सिंह छात्र एकता मंच के मुताबिक़, एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने छात्रों पर डंडों के साथ भी हमला किया-कई छात्रों के चोट भी आई हैं।

इसके अलावा, वहां पर दिल्ली विश्वविद्यालय टीचर्स एसोसिएशन की पूर्व अध्यक्ष प्रो. नंदिता नारायण भी मौजूद थी, जिनके साथ भी धक्का-मुक्की हुई। इसके अलावा भीम आर्मी से जुड़े एक वकील पर भी हमला हुआ है।

संपादकीय टिप्पणी

अब सवाल पर आते हैं, जो कि एबीवीपी के बयान को भी संज्ञान में लेते हुए – निकलते हैं। क्या दरअसल उस कार्यक्रम में सेना-विरोधी पोस्टर लगे थे? तो क्या एबीवीपी ने इसके लिए कोई साक्ष्य प्रस्तुत किया है? क्या कश्मीर में महिलाओं पर हुए किसी ज़ुल्म के विरोध में लगे किसी पोस्टर को – किसी विशेष परिस्थिति में किए गए ज़ुल्म की मुख़ालिफ़त माना जाएगा या फिर उसे सेना विरोधी कह दिया जाएगा? तो क्या इस आधार पर किसी राजनैतिक दल या सत्ताधारी पार्टी के द्वारा किए गए ज़ुल्म के विरोध को देश-विरोध कह देने की रवायत को सही मान लिया जाएगा? क्या इस आधार पर कभी भी, पुलिसकर्मियों के ज़ुल्म का विरोध ही नहीं किया जाएगा, क्योंकि इसे पूरी तरह पुलिस का विरोध माना जाएगा?

दूसरा सवाल, क्या इस तरह का कोई पोस्टर था, तो इसकी शिकायत पुलिस में की जा सकती थी-साक्ष्यों के साथ…आख़िर एबीवीपी ख़ुद वहां जाकर पोस्टर क्यों फाड़ने लगी? क्या एबीवीपी को पुलिस और न्याय व्यवस्था पर भरोसा नहीं है? तो क्या ऊपर दिए गए बिंदु के आधार पर इसे पुलिस और न्याय व्यवस्था का विरोध मान लिया जाएगा? नहीं, लेकिन किसी कार्यक्रम में ज़बरन घुस कर पोस्टर फाड़ने लगना – ये तर्कसंगत नहीं है और अपनी ही सरकार की सत्ता में काम कर रही, पुलिस पर भी अविश्वास है।

तीसरा सवाल ये है कि क्या दिल्ली पुलिस पर नवदीप कौर और उनके साथियों द्वारा लगाए गए आरोप, ठीक हैं? अगर ये आरोप सच हैं, तो ये अविश्वास पैदा करने की स्थिति है और दिल्ली पुलिस को बार-बार इस पर सोचना चाहिए। क्योंकि उसकी छवि, लगातार कमज़ोर होती जा रही है।

और चौथा और अंतिम सबसे अहम सवाल…ये अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का कार्यक्रम था। इसमें सारी वक्ता, महिलाएं थी और अधिकतर आयोजक भी महिलाएं। एबीवीपी की ओर से यहां पहुंचे, कार्यकर्ताओं में वीडियो या तस्वीरों में एक भी महिला कार्यकर्ता ढूंढना मुश्किल है। ये सवाल एबीवीपी से है कि क्या उसे इस कार्यक्रम का विरोध करना भी था, तो अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की ही लाज रखते हुए – वह इस कार्यक्रम के विरोध में अपनी महिला कार्यकर्ताओं को नहीं भेज सकता था? तो क्या एबीवीपी के पास, अब महिला सदस्य भी नहीं हैं? या वे इस कार्यक्रम में महिला दिवस पर जाना नहीं चाहती थी? या फिर ये विरोध करने का फैसला, सिर्फ एबीवीपी के पुरुष कार्यकर्ताओं ने मिलकर ले लिया था और उसके बाद, महिलाओं के कार्यक्रम में जाकर – वे पोस्टर फाड़ने लगे…सारे पुरुष?

इस सवाल के साथ, ये भी कि दरअसल ये महिला दिवस के दिन पूरी तरह से एक पितृसत्तात्मक रवैया है – जहां पुरुष ये भी नहीं सोच पा रहा है कि इस एक दिन कम से कम उसे इतनी सावधानी रखनी चाहिए। ये राजनैतिक चूक तो है ही…लेकिन अगर ये चूक नहीं है, तो क्या दरअसल एबीवीपी पूरी तरह से अपनी पितृसत्तात्मक सोच को ही स्थापित-प्रदर्शित करने निकल पड़ा है?

 

मयंक सक्सेना ने कार्यक्रम के आयोजकों और प्रतिभागियों से बातचीत के बाद, ये ख़बर और साथ में अपनी संपादकीय टिप्पणी लिखी है। मयंक, संप्रति मीडिया विजिल के एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं।