अभिषेक श्रीवास्तव
दूसरे अध्याय में मैंने बताया था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इज़रायल यात्रा इसलिए ज्यादा अहम है क्योंकि बीते कई दशक से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और ‘हिंदू राष्ट्र’ के लिए समर्पित अन्य संगठन जो काम बैकडोर से कर रहे थे, वह अब भाजपा की बहुमत वाली सरकार में फ्रंट डोर से होने की स्थिति बन गई है। इसका एक मतलब यह भी निकलता है कि यूपीए के दौर में कथित ‘हिंदू आतंकवाद’ के नाम पर जो संगीन घटनाएं हुईं, उनकी अब प्रत्यक्षत: ज़रूरत नहीं रह जाएगी क्योंकि जो कुछ होगा, आधिकारिक होगा। कोई दुराव-छुपाव नहीं।
इसकी एक बानगी हमें 6 जुलाई को देखने को मिली जब प्रधानमंत्री मोदी इज़रायल में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों के साथ मिल रहे थे। मुंबई स्थित इज़रायल के वाणिज्यिक दूतावास ने इस संबंध में अपने आधिकारिक ट्विटर खाते @israelinMumbai से प्रधानमंत्री मोदी के ट्वीट को रीट्वीट किया जिसमें उन्हें प्रवासी भारतीय छात्रों के बीच खड़ा दिखाया गया था। यह सामान्य चलन है कि प्रधानमंत्री कहीं जाते हैं तो वे वहां रहने वाले भारतीय समुदाय के विभिन्न तबकों से मिलते हैं। हैरत की बात यह है कि इज़रायली वाणिज्यिक दूतावास के इसी खाते से दो और ट्वीट प्रधानमंत्री की तस्वीर से ठीक पहले 6 जुलाई को पोस्ट किए गए। दोनों पोस्ट मराठी अख़बारों की कतरनें हैं जो भारत में इज़रायल के वाणिज्यिक राजदूत डेविड अकोव के लेक्चर से संबंधित हैं।
https://twitter.com/israelinMumbai/status/883185727449595905
इज़रायल के काउंसल जनरल डेविड अकोव 6 जुलाई की शाम 5 बजे नासिक स्थित डॉ. मुंजे इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड कंप्यूटर स्टडीज़ के सभागार में भोंसला मिलिटरी कॉलेज के छात्रों, फैकल्टी और शोधार्थियों को ”भारत-इज़रायल रिश्ते” पर एक व्याख्यान दे रहे थे। मराठी अख़बारों में छपी इसकी खबरों को प्रेस कवरेज के नाम पर इज़रायली वाणिज्यिक दूतावास ने बाकायदा ट्वीट किया। अब बताने की ज़रूरत नहीं है कि डॉ. मुंजे कौन थे और भोंसला मिलिटरी कॉलेज क्या है, फिर भी बात आगे बढ़ाने के लिए इसका एक संक्षिप्त परिचय ज़रूरी है।
बी.एस. मुंजे हिंदू महासभा के नेता थे और आरएसएस के संस्थापकों में एक थे। 1920 से पहले वे राष्ट्रीय आंदोलन का हिस्सा रहे लेकिन कांग्रेस और महात्मा गांधी की नीतियों से असहमति जताते हुए वे अलग हो गए और 1927 से 1937 तक हिंदू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर रहे जिसके बाद महासभा की कमान उन्होंने विनायक दामोदर सावरकर को दे दी। डॉ. मुंजे ने 1937 में नासिक में भोंसला मिलिटरी स्कूल की स्थापना की जिसका उद्देश्य भारतीय युवाओं को हिंदुत्व और सैन्यशिक्षा में एक साथ प्रशिक्षित करना था। आज की तारीख में भोंसला मिलिटरी स्कूल एवं कॉलेज समेत दर्जन भर से ज्यादा संस्थान सेंट्रल हिंदू मिलिटरी एजुकेशन सोसायटी के नाम से नासिक के डॉ. मुंजे मार्ग से चलते हैं। इस सोसायटी की स्थापना खुद मुंजे ने 1935 में की थी। इज़रायली काउंसल जनरल 6 जुलाई को किसी सरकारी या प्राइवेट शिक्षण संस्थान में नहीं, बल्कि आरएसएस के संस्थान में भारत और इज़रायल के रिश्तों पर लेक्चर देने आए थे।
परदे के पीछे भोंसला मिलिटरी स्कूल और इज़रायल का रिश्ता वैसे तो बहुत पुराना है, लेकिन आधिकारिक रूप से यह सिलिसिला केंद्र में भाजपा की सरकार आने के बाद 2014 के दिसंबर में शुरू हुआ था जब पहली बार इज़रायल के राजदूत डेनियल कार्मोन ने डेविड अकोव के साथ नागपुर स्थित भोंसला मिलिटरी स्कूल का दौरा किया था। यह 24 दिसंबर 2014 की बात है। दो साल पहले 2012 में इस स्कूल ने अपनी प्लैटिनम जुबली मनाई थी जिसमें संघ प्रमुख मोहन भागवत मुख्य अतिथि थे। उससे पहले भोंसला मिलिटरी स्कूल तमाम गलत कारणों से चर्चा में रहता आया था, जिनमें दो अहम कारक थे मालेगांव और नांदेड़ में हुए बम धमाके जिनके साथ इस स्कूल का नाम जुडा था। मालेगांव धमाके की जांच के सिलसिले में महाराष्ट्र एटीएस ने इस स्कूल के तत्कालीन प्रिंसिपल शैलेश रायकर और एक क्लर्क राजन गैधानी से पूछताछ की थी जिसके बाद दोनों ने बिना कारण बताए स्कूल के प्रबंधन को अपना इस्तीफा सौंप दिया था। आरोप यह था कि मालेगांव धमाके से 13 दिन पहले उग्र दक्षिणपंथी संस्था अभिनव भारत ने इस स्कूल में एक बैठक की थी जिसमें लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित समेत कुछ और लोगों ने हिस्सा लिया था। पुरोहित फिलहाल मालेगांव केस में आरोपी के बतौर जेल में हैं।
मालेगांव धमाके की एनआइए और महाराष्ट्र एटीएस की चार्जशीटों के कुछ हिस्से 2008 में बंबई के अखबारों में लीक हुए थे। चार्जशीट में यह बात दर्ज है कि श्रीकांत पुरोहित ”आर्यावर्त हिंदूराष्ट्र” नाम की जो परियोजना चला रहे थे, उसमें भोंसला मिलिटरी स्कूल की भूमिका निर्णायक थी। इस सिलसिले में हुई बैठकों की रिकॉर्डिंग स्वामी दयानंद पांडे ने की थी जिससे एटीएस को उन लोगों का पता चला जिनसे इस टीम ने इज़रायल और नेपाल में संपर्क साधने की कोशिश की थी। कोशिश यह थी कि इज़रायल और नेपाल के राजा के माध्यम से हथियारों की आपूर्ति हो सके और हथियारों के प्रशिक्षण का इंतज़ाम हो सके। यह सब सरकारी चार्जशीट का हिस्सा है।
महाराष्ट्र एटीएस द्वारा चार्जशीट में दर्ज स्वामी दयानंद, साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित के बीच बातचीत की रिकॉर्डिंग बताती है कि पुरोहित इज़रायल में निर्वासित हिंदू राष्ट्र स्थापित करने की कवायद में थे। इसके लिए एनडीए के पहले कार्यकाल में 2001 से ही कोशिशें शुरू हो चुकी थीं जब पहली बार भोंसला मिलिटरी स्कूल में संघ और बजरंग दल के कार्यकर्ताओं का 40 दिनों का एक प्रशिक्षण शिविर आयोजित किया गया था। इसमें कुल 115 कार्यकर्ता देश भर से बुलाए गए थे जिनमें 54 महाराष्ट्र से थे। नांदेड 2006 के धमाके और मालेगांव 2008 के धमाके की जांच में यह बात सामने आई थी कि 2001 के प्रशिक्षण शिविर का संचालन अवकाश प्राप्त और सेवारत सेना अधिकारियों समेत आइबी के अवकाश प्राप्त अधिकारियों ने किया था। कालांतर में यह स्कूल पूरी तरह ‘हिंदू राष्ट्र’ के पुरोहित के एजेंडे से संचालित होने लगा, जैसा कि मालेगांव ब्लास्ट से पहले फरीदाबाद के खीरभवानी मंदिर में दयानंद पांडे, साध्वी प्रज्ञा और पुरोहित आदि की हुई एक गोपनीय बैठक में (एनआइए की चार्जशीट में दर्ज) पुरोहित के कहे वाक्य से समझ में आता है: ”मैंने आज जो कुछ भी कहा है उसका ध्यान वहां बैठे अफसर रखेंगे। पूरा स्कूल मेंरे हाथ में है।”
मालेगांव धमाके की चार्जशीट अपने आप में एक दस्तावेज़ है जो बताती है कि इज़रायल और भारत के दक्षिणपंथी समूहों के बीच वाया नागपुर-नासिक डेढ़ दशक तक क्या-क्या पकता रहा था, जब तक कि केंद्र में भाजपा की बहुमत वाली सरकार नहीं आ गई। यह संयोग नहीं है कि इज़रायल के राजदूत ने प्रधानमंत्री की इज़रायल यात्रा से ठीक पहले जून 2017 में कहा था कि ”भारत और इज़रायल प्राकृतिक सहयोगी हैं”। इस ‘प्राकृतिक सहयोग’ के पीछे की विचारधारा से इज़रायल उतना ही मुतमईन है जितना अपने वक्त में गोलवलकर, मुंजे या हेडगेवार जैसे संघ के नेता रहे।
बहरहाल, कथित हिंदू आतंकवाद के नाम पर कांग्रेस राज में जेल भेजे गए तमाम लोग रिहा हो चुके हैं। असीमानंद से लेकर साध्वी प्रज्ञा तक सबको भारत सरकार बचा रही है। बस एक आदमी को नहीं बचा रही। वो हैं कर्नल पुरोहित, जबकि कर्नल ने 2014 में एनडीए सरकार बनते ही मोदीजी को एक पत्र लिख भेजा था कि कैसे उन्हें झूठे आरोपों में फौज ने फंसाया है। दो बार वे पत्र भेज चुके हैं। उनकी पत्नी लगातार यहां-वहां दौड़ रही हैं लेकिन इज़रायल में प्रवासी हिंदू सरकार बनाने वाले इस वीर फ़ौजी की सुध नागपुर से लेकर दिल्ली तक कोई नहीं ले रहा। सोचिए क्यों?
जब ‘हिंदू सरकार’ यहीं पर बन गई है, तो प्रवासी सरकार बनाने वाले को कौन पूछता है? वे अगर बाहर आ गए और सब उगल दिए, तब? इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कर्नल पर लगे आरोप सही हैं या ग़लत। फ़र्क इससे पड़ता है कि यह बात छुपी रहनी चाहिए कि औपचारिक रिश्ते बनने तक चोर दरवाज़े से हिंदू-यहूदी एकता के नाम पर क्या कुछ पक रहा था। शायद यही वजह है कि आज तक भोंसला मिलिटरी स्कूल का एक भी अधिकारी नांदेड़ या मालेगांव केस में नहीं पकड़ा गया। जिससे पूछताछ हुई, उससे इस्तीफा ले लिया गया और मामला खत्म। इस लिहाज से पुरोहित का भीतर रहना जनता की चुनी हुई बहुमत वाली सरकार लिए फायदेमंद है।
संघ समझता है कि अब जनता की चुनी हुई सरकार के माध्यम से इज़रायल-संबंधित अपनी सैद्धांतिकी को आगे बढ़ाना ही श्रेयस्कर होगा चूंकि यह वैध भी होगा और आधिकारिक भी। जब चीज़ें पटरी पर आ जाएंगी, तो कर्नल को रिहा कर के हिंदू राष्ट्र का आइकन घोषित कर दिया जाएगा।
फिलहाल चिंता का विषय बस एक है कि जिन-जिन राज्यों में भाजपा की सरकारें हैं, वहां के मुख्यमंत्रियों ने अपने-अपने यहां भोंसला मिलिटरी स्कूल की शाखा खोलने का प्रस्ताव संघ को भेजा है। सोचा ही जा सकता है कि ‘स्वर्ग में बनी जोड़ी’ का विस्तार इस देश में जब संघ के निजी मिलिटरी स्कूल के रास्ते होगा, तो कैसे-कैसे मंज़र सामने आएंगे।
(जारी)