यूँ तो पीएम मोदी को तानाशाह बताने वालों की कमी नहीं है, लेकिन इस बार यह विशेषण पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की ओर से आया है। जनवरी 2021 में प्रकाशित होने जा रही उनके संस्मरणों की किताब ‘दि प्रेशीडेंशियल इयर्स’ में उन्होंने लिखा है कि मोदी ने पहले कार्यकाल में निरंकुश शासक की तरह व्यवहार किया।इसी के साथ उन्होंने राजनीतिक दिशा को खो देने को 2014 में काँग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण बताया है।
किताब के प्रकाशक रूपा पब्लिकेशंस ने इसके अंश जारी किये हैं। इसके मुताबिक प्रणब मुखर्जी ने लिखा है कि मोदी ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान निरंकुश तरीक़े से शासन किया जिससे सरकार, विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों में कटुता आयी। केवल समय ही बता सकेगा कि इन मामलों पर मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में कोई बेहतर तालमेल हुआ है या नहीं।
इसके अलावा दिवंगत पूर्व राष्ट्रपति ने कांग्रेस की 2014 की हार का भी विश्लेषण किया है। उन्होंने लिखा है कि ‘कांग्रेस के कुछ नेता मानते थे कि अगर 2004 में मैं प्रधानमंत्री बनता तो इस पराजय से बचा जा सकता था, हालाँकि मैं इससे सहमत नहीं हूँ। मेरा मानना है कि जब मैं राष्ट्रपति बन तो कांग्रेस नेतृत्व ने अपना पोलिटकल फ़ोकस खो दिया। सोनिया गाँधी पार्टी के आंतरिक मामलों को संभालने में सक्षम नहीं थीं और सदन में डॉक्टर मनमोहन सिंह की ग़ैर-मौजूदगी ने अन्य सांसदों के साथ पीएम के व्यक्तिगत संपर्क को ख़त्म कर दिया।’
उन्होंने लिखा कि मनमोहन सिंह गठबंधन बचाने के बारे में सोचते रहे जिसका असर शासन-व्यवस्था पर हुआ। ‘मेरा मानना है कि शासन का नैतिक अधिकार प्रधानमंत्री के पास होता है। प्रधानमंत्री और उनके प्रशासन के काम करने के तौर-तरीक़े, देश की समग्र दशा में प्रदर्शित होते हैं’-उन्होंने लिखा।
भारत रत्न से सम्मानित पूर्व राष्ट्पति प्रणब मुखर्जी का बीती 31 अगस्त को 84 साल की उम्र में निधन हो गया था। वे कोरना से संक्रमित हुए थे।
वैसे, दिलचस्प बात है कि मुख्यधारा के मीडिया ने सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह पर तो प्रणब मुखर्जी की टिप्पणी को सुर्खी बना दी, जबकि मोदी के निरंकुश होने की बात को गोल कर दिया। गोदी मीडिया अपने फ़न में काफ़ी माहिर है।