किसान विरोधी अध्यादेशों के ख़िलाफ़ संसद से सड़क तक वबाल..!

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अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) के बैनर तले देश भर के किसान संगठनों ने संसद सत्र के पहले दिन जंतर मंतर पर सांकेतिक विरोध प्रदर्शन किया। केंद्र सरकार के कृषि से जुड़े तीन विधेयकों के विरोध में यह प्रदर्शऩ हुआ। दिल्ली के अलावा विभिन्न राज्यों में जिला एवं तहसील स्तर पर भी किसानों विरोध प्रदर्शन किया।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के संयोजक वीएम सिंह ने कहा कि तीन कृषि अध्यादेशों के खिलाफ 30 सितंबर तक देश भर में किसान विरोध प्रदर्शन करेंगे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार अन्नदाता के साथ धोखाधड़ी कर रही है। आत्मनिर्भरता का नारा देकर विदेशी कंपनियों और भारतीय कॉरपोरेट जगत को किसानों के साथ लूट मचाने का निमंत्रण दे रही है।

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा कि सरकार आज संसद में तीन ऐसे अध्यादेशों को कानून में बदलने के लिए बिल ला रही है, जो गहरे किसान विरोधी अध्यादेश हैं। सरकार ने कोरोना काल में जो तीन काले अध्यादेश लाए थे, उनको किसानों ने नहीं मांगे थे। सरकार कोरोना काल का फायदा उठाकर चोर दरवाजे से तीन अध्यादेश किसानों पर थोपे हैं। आज उनके खिलाफ दिल्ली और देशभर में किसान प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान कह रहे हैं कि ये तीन अध्यादेश किसान विरोधी हैं, देश का किसान इसको बर्दाश्त नहीं करेगा।

अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) नेताओं ने कहा कि सरकार ने किसानों को बर्बाद करने की ठान ली है। किसानों को ठीक से न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं दिया गया। अब केंद्र सरकार ने किसानों के अलावा उनकी पैदावार को भी दूसरों के हवाले करने का मन बना लिया है।

किसान संगठनों ने कृषि अध्यादेशों को वापस लेने, डीजल की कीमतें आधी करने और प्रस्तावित बिजली बिल कानून को वापस लेने की मांग की। अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने संसद के चालू संत्र में सभी सांसदों और पार्टियों को पत्र लिखकर अपील की है कि कि वो सरकार के किसान विरोधी अध्यादेशों का विरोध कर इन्हें वापस कराएं।

संसद में भी उठे सवाल

कृषि से जुड़े तीनों विधेयक को लेकर संसद में भी सवाल उठे। कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, गौरव गोगोई और शशि थरूर ने कहा कि ये विधेयक किसानों को तबाह करने वाले हैं। कांग्रेस नेता गौरव गोगोई ने कहा कि सरकार जो दो विधेयक लेकर आई है वो किसानों और कृषि क्षेत्र को तबाह करने वाले हैं। आज का दिन काला अक्षर से लिखा जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि ये किसानों को आजादी देते हैं। लेकिन यह सरासर झूठ है। ये किसानों को नहीं, बल्कि बड़े उद्योगपतियों को आजादी देते हैं।

वहीं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने आज संसद में कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) विधेयक, किसान (सशक्तीकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता विधेयक और कृषि सेवा अध्यादेश और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक को पेश कर दिया है।

छत्तीसगढ़ में 25 संगठनों ने किया विरोध प्रदर्शन

कोरोना महामारी और आदिवासी क्षेत्रों में भारी बारिश के बावजूद छत्तीसगढ़ में अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और भूमि अधिकार आंदोलन के आह्वान पर सैकड़ों गांवों में किसानों और आदिवासियों ने विरोध प्रदर्शन किया। प्रदेश के 25 से ज्यादा संगठन ने 20 से ज्यादा जिलों में विरोध प्रदर्शन के कार्यक्रम आयोजित किये।

इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं।

छत्तीसगढ़ में इन संगठनों की साझा कार्यवाहियों से जुड़े छग किसान सभा के नेता संजय पराते ने आरोप लगाया कि इन कृषि विरोधी अध्यादेशों का असली मकसद न्यूनतम समार्तन मूल्य और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की व्यवस्था से छुटकारा पाना है। उन्होंने कहा कि देश का जनतांत्रिक विपक्ष और किसान और आदिवासी इन कानूनों का इसलिए विरोध कर रहे हैं, क्योंकि इससे खेती की लागत महंगी हो जाएगी, फसल के दाम गिर जाएंगे, कालाबाजारी और मुनाफाखोरी बढ़ जाएगी और कार्पोरेटों का हमारी कृषि व्यवस्था पर कब्जा हो जाने से खाद्यान्न आत्मनिर्भरता भी खत्म जो जाएगी। यह किसानों और ग्रामीण गरीबों की बर्बादी का कानून है।

इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने कई स्थानों पर प्रशासन के अधिकारियों को ज्ञापन भी सौंपे हैं और स्थानीय स्तर पर आंदोलनकारी समुदायों को संबोधित भी किया है। अपने संबोधन में इन किसान नेताओं ने “वन नेशन, वन एमएसपी” की मांग करते हुए कहा कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश आज गंभीर आर्थिक मंदी में फंस गया है। इस मंदी से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि आम जनता की जेब मे पैसे डालकर और मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाकर उसकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए, ताकि बाजार में मांग पैदा हो। लेकिन इसके बजाए यह सरकार अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव करने पर तुली है। सरकार की इन किसान-आदिवासी विरोधी नीतियों के खिलाफ पूरे देश में संघर्ष तेज किया जाएगा।