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उत्तर प्रदेश सरकार ने ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व पूर्व आईजी एस.आर. दारापुरी, रिहाई मंच के अध्यक्ष मोहम्मद शोएब और सामाजिक कार्यकर्ता दीपक कबीर समेत एनआरसी विरोधी आंदोलन में शामिल सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ताओं को वसूली का नोटिस भेजा है. वसूली नोटिस में सभी को 64 लाख 37 हजार 637 रुपये की धनराशि सात दिन में जमा करने के लिए कहा गया है. यानि नोटिस के हिसाब से सबको 64-64 लाख रुपये जमा करना है. और यह नोटिस तब भेजी गई है जब इस मामले की इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सुनवाई चल रही है।
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दरअसल नागरिकता संशोधन कानून के विरोध प्रदर्शन के दौरान हुई हिंसा के मामले में यूपी सरकार ने रिटायर्ड आईपीएस एसआर दारापुरी, रिहाई मंच के अध्यक्ष मो. शोएब, सामाजिक कार्यकर्ता सदफ जफर और दीपक कबीर को गिरफ्तार कर जेल भेजा था। इसके अलावा प्रशासन ने एसआर दारापुरी और मो. शोएब समेत 28 लोगों को नोटिस जारी कर बतौर हर्ज़ाना 64 लाख रुपए जमा कराने को कहा था. जिसकी रिकवरी की नोटिस भेजी गई हैं और सभी को 64-64 लाख रुपये जमा करने को कहा गया है.
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प्रशासन का कहना है कि लखनऊ के हज़रतगंज में 19 दिसंबर को हुए आन्दोलन के दौरान सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया गया। लखनऊ के अतिरिक्त ज़िला मजिस्ट्रेट ने इन लोगों से 30 दिनों के अंदर पैसे वसूलने का आदेश जारी किया था। इसके साथ ही यह कहा गया कि यदि इन्होंने पैसे नहीं दिए तो इनकी जायदाद जब्त कर, उसे बेच कर पैसे की उगाही की जाए।
इसके बाद लोगों ने नोटिस का जवाब दिया. एसआर दारापुरी और मुहम्मद शोएब ने अपने जवाब में कहा कि चूँकि वे उस घटना के समय नज़रबंद थे, लिहाज़ा, वे सरकारी संपत्ति को हुए नुक़सान के लिए ज़िम्मेदार नहीं हो सकते। इस नोटिस के खिलाफ इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच में वाद भी दाखिल किया गया. जिसमें बुधवार को ही सरकारी वकील ने 10 दिन की मोहलत मांगी और उसके आधार पर अदालत ने जुलाई में तारीख दी है. अब सवाल उठ रहे हैं कि जब मामला उच्च न्यायालय में विचाराधीन है तब सरकार द्वारा वसूली नोटिस क्यों दी जा रही है.
योगी सरकार द्वारा दी गई वसूली की नोटिस की कड़ी निंदा करते हुए स्वराज अभियान ने इसे राजनीतिक बदले की भावना से की गई कार्यवाही करार दिया है. स्वराज अभियान के नेता दिनकर कपूर ने कहा कि सरकार अदालत में दारापुरी समेत अन्य राजनीतिक- सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ सबूत पेश नहीं कर पाई और उनको जमानत मिल गयी थी. बावजूद इसके सरकार और प्रशासन ने स्वयं निर्णय लेते हुए उन्हें दोषी करार दे दिया और वसूली की नोटिस थमा दी. उन्हें सुनवाई का अवसर न देना नैर्सिगक न्याय के सिद्धांत के भी विरुद्ध है. दिनकर कपूर ने कहा कि जब मामला माननीय उच्च न्यायालय में विचाराधीन है तब सरकार द्वारा दी गई वसूली नोटिस महज बदले की भावना से है और लोकतांत्रिक आवाज को दबाने का प्रयास है.
स्वराज अभियान ने कहा कि डॉक्टर अंबेडकर के सच्चे अनुयाई एसआर दारापुरी लंबे समय से उत्तर प्रदेश में दलितों, आदिवासियों, मज़दूरों और समाज के वंचित तबकों की आवाज को उठाते रहे हैं और उनके संवैधानिक अधिकारों के लिए कार्य करते रहे हैं. अपनी पत्नी की गम्भीर बीमारी के बावजूद उन्होंने प्रदेश की जनता के स्वास्थ्य की रक्षा के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दाखिल की, जिसमें माननीय न्यायधीश द्वारा निर्देशित करने के बाद योगी सरकार को सद्बुद्धि आयी और उसने सरकारी व निजी चिकित्सालयों में ओपीडी खोलने का आदेश किया. इसी तरह सोनभद्र में खनन माफियाओं और पुलिस प्रशासन गठबंधन द्वारा की गई आदिवासी रामसुंदर गोंड़ की हत्या के खिलाफ उनकी पहल के बाद ही एफआईआर दर्ज हो सकी.