उत्पीड़न से तंग आकर, एम्स की दलित डॉक्टर ने की आत्महत्या की कोशिश

देवेश त्रिपाठी
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भारत के सबसे प्रतिष्ठित चिकित्सा संस्थान एम्स में एक दलित महिला डेंटल सर्जन ने अपने विभाग के एक वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर द्वारा जाति व जेंडर के आधार पर किये जा रहे उत्पीड़न से तंग आकर बीते शुक्रवार आत्महत्या करने की कोशिश की। महिला डॉक्टर अभी एम्स के आईसीयू में भर्ती हैं और उनकी स्थिति गंभीर, लेकिन स्थिर बतायी जा रही है।

मामले पर नज़र डालें तो आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज़ प्रशासन भी पर गंभीर सवाल खड़े होते हैं। वरिष्ठ फैकल्टी के द्वारा जातीय और लैंगिक उत्पीड़न की शिकार महिला डॉक्टर ने क्रमशः 16, 22 और 23 मार्च को AIIMS प्रशासन को कई चिट्ठियां लिखी थीं। उन्होंने संस्थान के महिला शिकायत सेल (डब्ल्यूजीसी) और एससी-एसटी कल्याण सेल को भी चिट्ठी लिखी थी। कोई सुनवाई न होता देख उन्होंने राष्ट्रीय एससी/एसटी कमीशन, दिल्ली को भी पत्र लिखकर मामले से अवगत कराया था, लेकिन यह सारी संस्थाएं मूकदर्शक बनी रहीं और कोई कार्रवाई नहीं की गयी। इन संस्थाओं से न्याय मिलने की उम्मीद ख़त्म होती देख, निराश होकर डॉक्टर ने आत्महत्या का कदम उठा लिया।

एम्स के रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन ने इस मामले को लेकर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ हर्ष वर्धन को पत्र लिखा है और मांग की है कि मंत्रालय और एम्स प्रशासन मामले को जल्द से जल्द संज्ञान में लेकर तत्काल कार्रवाई करें, दलित महिला डॉक्टर को न्याय दिलाएं और सुनिश्चित करें कि भविष्य में ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।

रेज़िडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ आदर्श प्रताप सिंह ने मीडिया विजिल से बातचीत में बताया कि “विभाग के वरिष्ठ फैकल्टी मेंबर द्वारा महिला डॉक्टर को लगातार परेशान किया जा रहा था। फैकल्टी मेंबर डॉक्टर की जाति और महिला होने को लेकर उसे ताने मारता था, वह महिला डॉक्टर की क्षमताओं पर सवाल उठाता था और कहता था कि तुम्हें कुछ आता-जाता नहीं है, तुमसे कुछ नहीं होगा।”

डॉ आदर्श नाराज़ होकर कहते हैं कि “एम्स देश का सबसे बड़ा मेडिकल संस्थान और यहां पर किसी का उसकी जाति और जेंडर को लेकर उत्पीड़न किया जाता है। पीड़ित डॉक्टर एक महीने पहले प्रशासन को कई चिट्ठियां लिखती है और प्रशासन कुछ नहीं करता। लगातार जारी जाति उत्पीड़न और प्रशासन के इसे रोकने के लिए कुछ न करने से निराश होकर पीड़ित डॉक्टर ने दो दिन पहले आत्महत्या की कोशिश की और उसके बाद से अस्पताल में है। अभी भी प्रशासन की तरफ़ से कोई प्रतिक्रिया तक नहीं आयी है। इससे बुरा क्या हो सकता है?”

देश के मेडिकल संस्थानों में जाति उत्पीड़न का यह कोई पहला मामला नहीं है मुंबई के बीवाईएल नायर हॉस्पिटल से गायनोकोलॉजी की पढ़ाई करने वाली दलित छात्रा पायल तड़वी ने पिछले वर्ष सीनियर्स की जातिवादी टिप्पणियों से तंग आकर आत्महत्या कर ली थी

इस वक़्त कोरोना महामारी से जूझती लगभग पूरी दुनिया लॉकडाउन में है। शक्तिशाली देशों के बड़े-बड़े वैज्ञानिक व डॉक्टर कोविड-19 को हरा पाने में सक्षम दवा की खोज में लगे हैं। अभी नहीं तो आने वाले वक़्त खोज ली जायेगी और धीरे-धीरे सबकुछ पटरी पर आने लगेगा। लेकिन, जाति एक ऐसी महामारी है जो हज़ारों सालों से हमारे समाज और हमारी मनुष्यता को दीमक की तरह खा रही है, उसका इलाज अभी तक नहीं मिल पाया है। जाति के साथ अगर जेंडर भी जुड़ जाये, फिर तो इस ब्राह्मणवादी पितृसत्तात्मक समाज में उत्पीड़न व भेदभाव के जैसे हज़ार और बहाने मिल जाते हैं।