इस बार मन की बात में प्रधानसेवक देश के लोगों से बारम्बार माफी मांग रहे थे और अपने चिर परिचित अंदाज में उपदेश दे रहे थे। दरअसल दिल्ली के आनंद विहार टर्मिनल, वैशाली और गाजियाबाद बार्डर पर लगी मजदूरों की भारी भीड़, सड़क के रास्ते पैदल, रिक्शा व सगड़ी से सुदूर अपने गांव जाते मजदूर और हजारों-लाखों की संख्या में देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे असहाय मजदूरों की हालत देख किसी भी संवेदनशील नागरिक का दिल दहल जा रहा है। ऐसी भी सूचनाएं है कि कई मजदूर रास्ते में दुर्धटना का शिकार होकर काल के गाल में समा गए है और कई भुखमरी के कारण मर रहे हैं।
Talking about aspects relating to COVID-19 during #MannKiBaat https://t.co/JJpOShFBpB
— Narendra Modi (@narendramodi) March 29, 2020
कई वीडियो में घर से लौट रहे मजदूरों पर पुलिस द्वारा की जा रही बर्बरता बेहद कष्टदायक है। आज यह जो हालत पैदा हुए है वह स्पष्टतः सरकार निर्मित त्रासदी है और इसकी जबाबदेही और किसी की नहीं प्रधानमंत्री के बतौर नरेन्द्र दमोदरदास मोदी की है। इसीलिए माफी मांगने की भावभंगिमा उन्होंने अपनाई है ताकि उनकी सरकार के खिलाफ पैदा हो रहे जनाक्रोश को रोका जा सके।
यह जानते हुए कि जनवरी माह में ही कोरोना के संक्रमण की सूचना केन्द्र सरकार को मिल चुकी थी और दुनिया के कई देशों में इसको लेकर बचाव के उपाय शुरू कर दिए गए थे। आरएसएस के नेतृत्व वाली मोदी सरकार शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन छुपाएं हुए थी। उलटे वह साम्प्रदायिक हिस्सा बढ़ाने, आदमी को आदमी से बांटने, अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प का स्वागत करने और मध्य प्रदेश में चुनी हुई सरकार को गिराने व अपनी सरकार बनाने में व्यस्त रही। यहीं नहीं उसने पिछले दिनों तक वेंटिलेटर, मास्क, दस्ताने और त्रिस्तरीय कपडों वाली आवश्यक स्वास्थ्य रक्षक उपकरणों को तैयार करने की बात तो छोड दें उसमें से कई का निर्यात तक किया।
जब संकट सर पर आ गया और हालात खराब हो गए तब भी इतनी बड़ी राष्ट्रीय आपदा में सभी राजनीतिक दलों, सामाजिक सगठनों, विशेषज्ञों की बैठक बुलाकर आवश्यक एक्शन प्लांन बनाने की जगह अपने फासीवादी तानाशाह चरित्र के अनुरूप प्रधानमंत्री पहली बार 8 बजे राष्ट्र के नाम सम्बोधन के लिए अवतरित होते है और 22 मार्च को एक दिन के जनता कर्फ्यू की घोषणा करते है। उसमें भी शाम 5 बजे ताली-थाली बजाने की घोषणा कर उसे एक गम्भीर प्रयास की जगह प्रहसन में बदल देते है। बची कुची कसर उनके संगठन आरएसएस के शार्गिदों ने थाली-ताली के साथ जगह-जगह जुलूस निकाल कर पूरी कर दी। जिन डाक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों, सफाई कर्मियों आदि के उत्साहवर्धन व सम्मान के लिए यह आयोजन किया गया। उनकी वास्तविक स्थिति जानकर आप कांप जायेंगे।
सोनभद्र के कई सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के प्रभारियों से हमने बात की तो आमतौर पर उनके पास आवश्यक मास्क, दस्ताने जैसे बुनियादी स्वास्थ्य सुरक्षा उपकरण नहीं है। इस सम्बंध में मुख्य चिकित्सा अधिकारी सोनभद्र से बात करने पर बताया गया कि आर्डर दिए एक सप्ताह से ज्यादा हो गया पर सरकार की तरफ से सप्लाई नहीं हो रही है। कमोवेश यहीं हालत हर जगह की है। सुरक्षा उपकरण के अभाव में जगह-जगह डाक्टरों व स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा हडताल व कार्य से विरक्त होने की खबरें आ रही है। इसी गैर जिम्मेदाराना रूख के कारण कई डाक्टरों की जान तक चली गयी है। सफाई कर्मियों को कहीं भी सुरक्षा उपकरण नहीं दिए जा रहे। लखनऊ तक में हमारे प्रयास के बाद कुछ उपकरण ही सफाई कर्मियों को नगर निगम द्वारा दिए गए। सच में उन्हें इस गम्भीर सक्रंमित रोग के सामने बेमौत मरने के लिए सरकार ने छोड दिया है।
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प्रधानमंत्री जी थाली-ताली नहीं इनकी जीवन रक्षा के लिए आवश्यक उपाय करना आपकी सरकार की जिम्मेदारी थी पर आपको तो हर काम नाटकीयता से करने की आदत है जो सुधर ही नहीं रही है। हद तो तब हो गयी जब दूसरी बार फिर रात 8 बजे अवतरित हुए प्रधानमंत्री ने बिना किसी योजना के एक झटके में कह दिया कि आज रात 12 बजे से पूरे देश में कडाई से लॉकडाउन लागू किया जा रहा है, जो एक तरह का कफ्र्यू है। प्रधानमंत्री ने बगल के छोटे से देश बांग्लादेश से भी सीखने की जहमत नहीं उठाई।
जिसने अपने यहां लॉकडाउन लागू करने के तीन दिन पहले अपने देशवासियों को सूचित कर दिया इतना ही नहीं उसने अपने देश के उन सभी लोगों को जो अपने गांव या घर जाना चाहते है, उन्हें मुफ्त में घर भेजने के लिए ट्रेन व बसों की व्यवस्था भी की। इतना ही नहीं प्रधानमंत्री की लॉकडाउन की घोषणा के कुछ घण्टें बाद ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री लाव लश्कर के साथ अयोध्या जाकर रामलला की मूर्ति स्थापित करते है। जो खुद इस त्रासदी की गम्भीरता को कम करती है।
लॉकडाउन के दो दिन बाद एक लाख 70 हजार करोड की प्रधानमंत्री राहत योजना की घोषणा करने के लिए इस सरकार की वित्त मंत्री ‘गोली मारो‘ वाले राज्यमंत्री के साथ अवतरित हुई। जानकारों और अर्थशास्त्रियों के अनुसार सरकार द्वारा की गयी घोषणाओं का कुल खर्चा एक लाख करोड के आस पास ही है। यहीं वजह है कि पहले आंकडों के साथ जारी किए गए प्रेस नोट को दोपहर बाद वित्त मंत्रालय ने बदल दिया और बाद में महज घोषणाओं वाला प्रेस नोट जारी किया। इन घोषणाओं के बारे में अपनी विस्तृत रिपोर्ट में बीबीसी हिंदी ने इसे ऊंट के मुंह में जीरे के समान कहा है।
आप खुद देख सकते है कि 38.28 करोड देश में चालू जन धन खाते में 500 रूपए कि सहायता राशि भेजने की जगह महज महिलाओं के नाम से खोले गए 20.40 करोड़ खातों में ही तीन माह तक यह अत्यंत अल्प राशि भेजी जायेगी। सरकारी आकंडों के अनुसार खाद्य सुरक्षा अधिनियम जिसके तहत पात्र गृहस्थी व अतंयोदय राशन कार्डधारी आते है उनकी संख्या 81.23 करोड है। इनमें से भी 80 करोड़ को महज 5 किलो गेहूं या चावल और 1 किलो दाल मुफ्त देने की घोषणा की गयी है, जो बेहद कम है। इससे ज्यादा तो केरल सरकार ने अपने यहां के लोगों को खाद्यान्न सुरक्षा दी है। उसने न र्सिफ गेहूं, चावल, दाल जैसे राशन दिए है साथ ही नमक, चीनी, तेल, मसाले, साबुन आदि तमाम आवश्यक खाद्य सामग्री दी है।
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विधवा, वृद्धा व विकलांग पेंशन में 1000 रूपए अतिरिक्त देने की घोषणा भी बेहद कम है। बाकी मनरेगा मजदूरी में 20 रूपए की वृद्धि तो स्वभावतः होनी ही थी क्योंकि 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद चार साल में मनरेगा मजदूरी में महज 1 रूपए की वृद्धि हुई थी और आखिरी चुनावी साल में 7 रूपए बढाए गए थे। इसलिए इतनी बड़ी वृद्धि होना स्वभाविक था। यह भी कि खुद सरकारी आकंडों के अनुसार वित्तिय वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति औसत मजदूरी 257.72 पैसा खर्च की गयी है बावजूद इसके सरकार द्वारा मजदूरी मात्र 202 रूपए तय की गयी।
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लेकिन इसका कोई लाभ मजदूरों को नहीं मिलेगा क्योंकि एक तो लॉकडाउन के कारण कोई नया काम नहीं हो रहा और दूसरे मनरेगा में पिछले वित्तीय वर्ष में 72.12 हजार करोड रूपए खर्च करने वाली सरकार ने इसके बजट में 11 हजार करोड रूपए की कटौती कर इस बार महज 61000 करोड रूपए ही बजट में मनरेगा में आवंटित किए है। इसलिए यह घोषणा आंख में धूल झोकना है। किसानों को 2000 रूपए की सहायता की घोषणा उनके साथ सरकार का क्रूर मजाक है। एक तो यह ऐसे ही मिलनी थी और इसके लिए पूर्व में ही बजट आवंटन किया हुआ है जिसमें नया कुछ नहीं है। दूसरे उत्तर प्रदेश, बिहार समेत देश के विभिन्न राज्यों में विगत दिनों हुई ओलावृष्टि, चक्रवात, भीषण वर्षा के कारण किसानों की तैयार दलहन, तिलहन, सब्जी और गेंहू आदि की फसल पूरे तौर पर बर्बाद हो गयी है।
इन किसानों की आत्महत्याओं की खबरें आ रही है जो लॉकडाउन के कारण और भी बढ़ेगी। लेकिन इनकी जीवन सुरक्षा के लिए कोई योजना सरकार के पास नहीं है। इसी प्रकार ईपीएफ में नियोक्ता व मजदूर दोनों का अंशदान जमा करने की घोषणा भी ‘नरों व कुजरों’ जैसी ही है। सरकार ने कहा है कि इसका लाभ उन्हीं प्रतिष्ठानों में कार्यरत श्रमिकों को मिलेगा जहां 100 से कम मजदूर कार्यरत है। इसका मतलब हुआ कि 47 करोड मजदूरों में महज 16 प्रतिशत श्रमिकों को ही इसका लाभ मिलेगा। स्वास्थ्य कर्मियों के 50 लाख के बीमा कवर के बारे में यह नहीं बताया कि किस बीमा कम्पनी को यह काम दिया जा रहा है स्वभाविक रूप से इसका लाभ निजी बीमा कम्पनियों को ही होगा। निर्माण मजदूरों को लाभ देने की जिम्मेदारी राज्य सरकारों को दी गयी है। उत्तर प्रदेश की रिपोर्ट आपके सामने है, यहां 58 लाख 75 हजार से ज्यादा श्रमिक पंजीकृत है जिनमें से मात्र 20 लाख 15 हजार श्रमिकों का नवीनीकरण हुआ है। इस प्रकार नवीनीकृत श्रमिकों को ही प्रदेश सरकार द्वारा 1000 रूपए की सहायता राशि और 35 किलो राशन मिलेगा जिनका खाता उनके पंजीकरण के साथ जुडा हुआ है। शेष करीब 30 लाख मजदूर सरकार की सहायता से वंचित हो जायेगें।
दरअसल देश में स्वास्थ्य सुविधाओं का संकट पहले से ही ज्यादा है। नई आर्थिक-औद्योगिक नीतियों के लागू होने के बाद बनी सरकारों ने कल्याणकारी राज्य की व्यवस्था को लगातार खत्म करते हुए स्वास्थ्य बजट को घटाने का ही काम किया है। सरकारी स्वास्थ्य ढांचा बर्बाद किया जाता रहा और निजी क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया। जबसे मोदी सरकार बनी निजी बीमा कम्पनियों और नर्सिंगहोमों के लाभ के लिए 5 लाख का बीमा जैसी बड़ी-बड़ी बातें तो जरूर हुई जिसकी जमीनी सच्चाई यह है कि यह कहीं लागू नहीं है वहीं सरकारी स्वास्थ्य सुविधाएं बदहाल होती रही।
सरकारी अस्पतालों में दवाओं, आवश्यक जांचों आदि का अभाव होता गया। हम अपनी जीडीपी का शायद एक प्रतिशत भी स्वास्थ्य पर खर्च नहीं करते। अब कोरोना संक्रमण के कारण पैदा हुए विश्वव्यापी संकट में इसका दुष्परिणाम देश को झेलना पड रहा है।
इसलिए आज पहली जरूरत तो है कि कोरोना संकट के कारण आयी इस त्रासदी से मुकाबले के लिए अधिनायकवादी तरीके से नहीं बल्कि लोकतांत्रिक तरीके से इसका समाधान खोजा जाए। इससे मुकाबले के लिए सरकार को हर राजनीतिक दल, सामाजिक संगठन, व्यक्ति, हर तबके और विशेषज्ञों को शामिल कर उनकी सलाह के अनरूप एक्शन प्लांन बनाना चाहिए। सबसे जरूरी रोज कमाकर खाने वाले दिहाडी मजदूर, पटरी दुकानदार, छोटे मझोले व्यापारी, किसान, ठेका मजदूर, नौजवान, महिलाएं, आदिवासी व कमजोर तबके की जिदंगी बचाने के लिए केरल सरकार की तरह मुफ्त में सम्पूर्ण राशन की तीन माह तक घर-घर व्यवस्था करने की घोषणा करनी चाहिए।
हर पात्र गृहस्थी परिवार को 100 दिन की मनरेगा के बराबर मजदूरी का भुगतान करना चाहिए। किसानों की जीवन बचाने के लिए उनकी फसल की गांव स्तर पर स्वामीनाथन रपट के अनुसार तय मूल्य पर सरकारी खरीद की गारंटी हो और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के जरिए वहीं उसका वितरण किया जाए। किसानों व छोटे मझोले व्यापारियों के सभी कर्जे माफ किए जाएं और उनसे हर तरह की वसूली पर रोक लगाई जाए। जिन किसानों की फसल प्राकृतिक आपदा से बर्बाद हुई है उन्हें फसल के नुकसान के बराबर मुआवजा दिया जाए।
संसाधन जुटाने के लिए कॉर्पोरेट घरानों पर सम्पत्ति कर लगाया जाए और उसकी वसूली की जाए। सरकारी पदों पर बैठे मंत्रियों, नौकरशाहों समेत हर उस व्यक्ति से जिसने अपनी आय से ज्यादा सम्पत्ति जमा की है। उस सम्पत्ति को जब्त किया जाए। स्वास्थ्य कार्यो में लगे स्वास्थ्य कर्मियों समेत सफाई कर्मियों का सिर्फ खेखला सम्मान करने की जगह उनके लिए युद्धस्तर पर मास्क, दस्ताने व आवश्यक उपकरण उपलब्ध कराएं जाएं, सारे निजी अस्पतालों को सरकार अधिग्रहित कर उनमें मुफ्त स्वास्थ्य सुविधा दे, कार्य से वंचित मजदूरों को वेतन का अग्रिम भुगतान करने के लिए प्रतिष्ठानों व उद्योगों को कहा जाए। सभी पंजीकृत निर्माण श्रमिकों को राज्य सरकारों द्वारा दी जा रही राहत दी जाए। जो प्रवासी मजदूर बाहर है और अपने घरों को लौटना चाहते है उनके लिए व्यवस्थित प्रणाली विकसित कर व आवश्यक स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए उन्हें घरों तक पहुंचाया जाए। कुल मिलाकर सरकार बोलती हुई ही नहीं करती हुई दिखनी चाहिए।
दिनकर कपूर वर्कर्स फ्रंट के अध्यक्ष हैं