मीडिया की ‘गदहपचीसी’ में छिपा प्रचार पर मोदीजी का 11 अरब ख़र्च !



रायबरेली की चुनावी रैली में क्या अखिलेश वाक़ई गुजरात के उन्हीं गधों की बात कर रहे थे जिन्हें 23 फरवरी की बहराइच रैली में पीएम मोदी ने अपना प्रेरणास्रोत बताया ? या वे प्रचार को लेकर मोदी के आरोप का जवाब दे रहे थे जिस पर मोदी जी ने चुप्पी साध रखी है ? जो भी हो यूपी राजनीति गर्दभ-विमर्श में बदल गई है और यह बाक़सद है।

इस पूरे प्रकरण में मीडिया का रोल बहुत दिलचस्प है। जिस दिन अखिलेश यादव ने अमिताभ बच्चन वाले विज्ञापन का हवाला देते हुए उनसे गुजरात के गधों का प्रचार ना करने की अपील की थी, उस दिन भी उनका निशाना गधे नहीं, मोदी थे जिन्होंने अपनी पिछली रैली में कहा था कि अखिलेश विज्ञापन पर अंधाधुंध सरकारी ख़ज़ाना ख़र्च करके जनता की आँख में धूल झोंकना चाहते हैं। अखिलेश जवाब में बता रहे थे कि गुजरात में तो गधों के प्रचार पर भी ख़र्च होता है, और हम पर मोदी जी प्रचार पर ख़र्च का आरोप लगाते हैं।

यानी मूल मुद्दा था विज्ञापनों पर सरकारी ख़ज़ाने का ख़र्च। लेकिन मीडिया ने इस मुद्दे पर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उसने या तो अमिताभ को मुद्दा बनाया या फिर गधों को। चैनलों ने अपने रिपोर्टर कच्छ के रण दौड़ा दिए जहाँ गधों का अभ्यारण्य है।

तो क्या यह जानना इतना मुश्किल है कि सचमुच प्रचार में कितना ख़र्च होता है। कम से कम मोदी जी के ढाई साल के ख़र्च का ब्योरा तो उपलब्ध है ही। मोदी जी अखिलेश पर अनाप-शनाप ख़र्च का आरोप लगा रहे हैं लेकिन उन्होंने इतने दिनों में ही 11 अरब ख़र्च कर दिए।

यह कोई आरोप नहीं है। ग्रेटर नोएडा के आरटीआई कार्यकर्ता रामवीर तंवर ने 29 अगस्त 2016 को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत जानकार मांगी थी कि प्रधानमंत्री मोदी ने सरकार बनने से लेकर अगस्त 2016 तक विज्ञापन पर कितना सरकारी पैसा खर्च किया ? तीन महीने बाद जवाब मिला ढाई साल में 11 अरब से ज़्यादा।

 एसएमएस

2014- 9.07 करोड़

2015 5.15 करोड़

अगस्त 2016 तक- 3.86 करोड़

 

इंटरनेट

2014- 6.16 करोड़

2015 14.13 करोड़

अगस्त 2016 तक-1.99 करोड़

 

ब्रॉडकास्ट

 

2014- 64.39 करोड़

2015- 94.54 करोड़

अगस्त 2016 तक- 40.63 करोड़

 

कम्युनिटी रेडियो-

2014- 88.40 लाख

2015- 2.27 करोड़

अगस्त 2016 तक- 81.45 लाख

 

डिजिटल सिनेमा

2014- 77 करोड़

2015- 1.06 अरब

अगस्त 2016 तक -6.23 करोड़

टेलीकॉस्ट –

2014 – 2.36 अरब

2015- 2.45 अरब

अगस्त 2016 तक- 38.71 करोड़

प्रोडक्शन

2014-8.20 करोड़

2015- 13.90 करोड़

अगस्त 2016 तक 1.29 करोड़

 

तीन साल में हर साल कितना ख़र्च

2014- 1 जून 2014 से 31 मार्च 2015 तक करीब 4.48 अरब

2015 – 1 अप्रैल 2015 से 31 मार्च 2016 तक  5.42 अरब रुपये

2016- 1 अप्रैल 2016 से 31 अगस्त 2016 तक 1.20 अरब

 

अब सवाल यह है कि अखिलेश ने कितना ख़र्च किया। फिलहाल इसकी जानकारी नहीं है। बेहतर होता कि बीजेपी आरटीआई के ज़रिये यह आँकड़ा निकालती और मोदी जी उसे मुद्दा बनाते।

यूपी की राजनीति को गर्दभ-विमर्श में बदलने की कोशिश जनता को उल्लू समझने का सबूत है। हालाँकि प्रेरणा तो उल्लू से भी ली जा सकती है। लक्ष्मी का वाहन है ।

.बर्बरीक