हर व्यक्ति का घर उसकी शरणस्थली होता है और सरकार बिना किसी ठोस कारण और क़ानूनी अनुमति के उसे भेद नहीं सकती
यह बात आज से 124 साल पहले 1895 में लाए गए भारतीय संविधान बिल में कही गयी थी.1925 में महात्मा गांधी की सदस्यता वाली समिति ने ‘कामनवेल्थ ऑफ इंडिया बिल’ को बनाते हुए भी इसी बात का उल्लेख किया था. 1947 में भी भीमराव आंबेडकर ने निजता के अधिकार का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि लोगों को अपनी निजता का अधिकार है. उनका यह भी कहना था कि अगर किसी कारणवश उसे भेदना सरकार के लिए ज़रूरी हो तो सब कुछ न्यायालय की कड़ी देखरेख में होना चाहिए.
कल व्हाट्सएप का यह बयान चर्चा में रहा कि इजराइली स्पाईवेयर ‘पेगासस’ के जरिये कुछ अज्ञात इकाइयां वैश्विक स्तर पर व्हाट्सएप एप के जरिए जासूसी कर रही हैं. दो दर्जन से अधिक भारतीय पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इस जासूसी का शिकार बने हैं.
आजकल लगभग हर कोई मोबाइल में वाट्सएप का इस्तेमाल कर रहा है. इसलिए इस खबर को सुनकर लोगों का चौकना स्वाभाविक था. सबसे खास बात यह है यह जासूसी अप्रैल-मई के महीने में की गई है जब भारत मे लोकसभा चुनाव अपने पूरे शबाब पर थाण इस सिलसिले मे वाट्सएप की पैरेंट कंपनी फेसबुक की ओर से इजरायल की साइबर सिक्योरिटी कंपनी एनएसओ पर आरोप लगाते हुए मुकदमा दर्ज कराया है कि उसने वाट्सएप के सर्वर का इस्तेेमाल कर 1400 वाट्सएप यूजरों को यह मॉलवेयर फैलाया है जिसकी जरिए उसने जासूरी की है.
सबसे कमाल की बात तो यह है कि Pegasus का इस्तेमाल कोई आम शख्स नहीं कर सकता है. इजरायल के NSO Group ने इसे सराकारों के लिए डिजाइन किया है ताकि जरूरत पड़ने पर कंपनी की सहायता लेकर Pegasus के जरिए जासूसी की जा सके.
व्हॉट्सऐप के प्रमुख विल कैथकार्ट ने ट्विटर पर लिखा, ‘एनएसओ समूह का दावा है कि वह सरकारों के लिए पूरी जिम्मेदारी से काम करते हैं, लेकिन हमने पाया कि बीते मई माह में हुए साइबर हमले में 100 से अधिक मानवाधिकार कार्यकर्ता और पत्रकार जासूसी हमले के निशाने पर थे. यह दुरुपयोग बंद होना चाहिए’.
"NSO Group claims they responsibly serve governments, but we found more than 100 human rights defenders and journalists targeted in an attack last May. This abuse must be stopped"
-Will Cathcart, CEO of Whatsapp https://t.co/6Rx2qJXset
— Middle East Eye (@MiddleEastEye) October 30, 2019
इसलिए बड़ा सवाल ये है कि इसे भारतीय पत्रकारों और ह्यूमन राइट ऐक्टिविस्ट्स की जासूसी करने के लिए क्या मोदी सरकार ही इस्तेमाल कर रही है?
दरअसल देश का सविधान हमें जीवन और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार देता है. ‘राइट टू प्राइवेसी’ इसी आर्टिकल-21 का हिस्सा माना जाता है. यह गारंटी देता है कि हमारा डेटा या हमारी निजी जिंदगी में सरकारी एजेंसियों की ताकझांक नही के बराबर होगी. सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा हैं कि निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत दिये गये जीवन एवं व्यक्तिगत आज़ादी के अधिकार तथा इंटरनेशनल कॉवनेंट ऑन सिविल एंड पॉलिटिकल राइट्स की धारा 17 के अंतर्गत सुरक्षित है. साथ ही संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(क) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में भी निजता का अधिकार अंतर्निहित है.
सामने आए वे नाम जिनकी की गयी थी जासूसी, WhatsApp ने किया था आगाह
पिछले साल स्वतंत्रता दिवस के फौरन बाद सुप्रीम कोर्ट ने हमसे कहा था कि भारतीय संविधान ने हमेशा से ही हमारे निजता के अधिकार की गारंटी दी थी. निजता के अधिकार पर उस ऐतिहासक अदालत के सभी नौ जज जहां एकमत थे, वहीं न्यायमूर्ति बोबड़े ने निजता की वह अकेली परिभाषा दी थीः यह, यानी निजता, “चुनने और स्पष्ट करने का अधिकार” है, जिसे “संज्ञानात्मक स्वतंत्रता” का समर्थन और “आंतरिक स्वतंत्रता के विचार करने वाले क्षेत्र” का आश्वासन हासिल है.
2018 में सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए निजता के अधिकार को नागरिक का मौलिक अधिकार बताया था. मुख्य न्यायधीश जे.एस. खेहर की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच ने इस फैसले को सुनाया था.
दरअसल यह पूरा मामला व्हाट्सएप से ही जुड़ा हुआ था. कर्मण्य सिंह सरीन नाम के शख्स ने एक याचिका दाखिल की थी जिसमें 2017 की व्हाट्सऐप की नई प्राइवेसी पॉलिसी का विरोध किया गया था. याचिका में कहा गया है कि व्हाट्सऐप की तरफ से अपने यूज़र्स की जानकारी फेसबुक से साझा करना निजता के अधिकार का हनन है.
अगर व्हाट्सएप के जरिए सरकार पैगासास सॉफ्टवेयर के सहारे हमारी जासूसी कर रही है तो यह सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का खुला उल्लंघन है. राज्य को पुलिस स्टेट बनने की इजाजत नही दी जा सकती है. अगर सार्वजनिक हित अहम तो है, तो उतनी ही अहम है व्यक्ति की निजता और सम्मान.