पिछले एक हफ्ते दे देख रही हूं मेट्रो और बसों की फ्री ‘राइड’ पर समर्थ महिलाओं का खामख्वाह का विरोध जिसमें स्त्री-विमर्श खामख्वाह डांट खाए बच्चे सा मेहमान के सामने नमस्ते कर रहा है और अंदर-अंदर चिढ़़ रहा है।
सीरियसली मुझे इसका विरोध करने का कोई औचित्य दिखाई नहीं दे रहा। संयुक्त राष्ट्र ने पिछले दशक में ही ‘जेण्डर फ्रेंडली’ शहर बनाने की योजनाएं सहज कर दी थीं। जेण्डर फ्रेंडली शहर औरतों की दिनचर्या, ज़रूरतों, भिन्नता के आधार पर निर्मित किया जाता है। हम सब बहुत पीछे हैं। हम तो अभी बच्चियों की सुरक्षा पर नहीं उनके हिन्दू-मुस्लिम होने पर दंगा करने के इरादे रखते हैं।
समझिए, महिलाओं के लिए फ्री राइड बहुत देर से होने वाली शुरुआत है। इसका स्वागत करते हुए मांग करनी चाहिए और इंतज़ार करना चाहिए कि आपका शहर जल्द से जल्द जेण्डर फ्रेंडली हो। सब सार्वजनकि स्थान और सुविधाएं जेण्डर भेदभाव से रहित हों और सुरक्षित हों। लेकिन नकारात्मकता के कुछ लोग इतने मारे हुए हैं कि एक भी अच्छे कदम का स्वागत नहीं कर सकते।
फ्री राइड का मतलब फ्री के झूले मिलना नहीं है (ना जी, अप्पू घर के झूले या नई लेम्बोर्गिनी की राइड नहीं) यह वॉलंटरी है। अगर आपको लगता है आप यह खर्च वहन कर सकती हैं और इससे आपके या आपके परिवार की बाकी सुविधाओं में कोई नुकसान नहीं होगा तो आपको टिकट लेने चाहिए। बस, इसके लिए कोई आपको कहने नहीं आएगा।
मैं हमेशा से ऐसी योजनाओं की हिमायती हूं जिनमें मनुष्य के सद्गुणों के प्रति सद्भाव दिखाई दे। मुझे लगता है ज़मीर को जागने देने का स्कोप देना चाहिए। शुरुआत ही आपको बेईमान चोर उचक्का मान कर की जाए तो इससे बड़ा अपमान क्या होगा। पुलिस में भर्ती के लिए छाती पर जाति का ठप्पा लगवाना या बीपीएल का टैग अपने दरवाज़े पर खुदवा लेना कैसे विभाजन और अपमान रचता है?
एक सकारात्मक पक्षपात होता है। सब परिवार सिस्टम के हिमायती हैं लेकिन पारिवारिक मूल्यों से कुछ सीखा नहीं। एक बच्चा कमज़ोर होता है तो उसके दूध में ज़्यादा मलाई पड़ जाती है। उसके लिए घर में गाय का घी आना शुरू हो जाता है। एक को चॉकलेट मिलती है तो जिसे ब्रोंकायल एलर्जी है उसे मां टॉफी से भी दूर रखती है। सब समूह के हितों की बात करते हैं लेकिन सामूहिकता की भावना को कबका तिलांजलि दे चुके।
एक उदाहरण है। एक कॉलेज में कोर्स के विद्यार्थियों को तीनों साल ग्राउंड फ्लोर पर क्लास रूम मिला क्योंकि क्लास में एक विद्यार्थी फिज़िकली चैलेंज्ड था। तीन साल उसकी वजह से किसी को पढ़ने के लिए तीसरी मंज़िल सीढ़ियां चढ़कर नहीं जाना पड़ा जहां सालों से यह क्लास होती आ रही थी। यह समूह का फायदा था एक की वजह से। कभी कभी नुकसान भी हो सकता है। तीसरी मंजिल के क्लास रूम वातानुकूलित थे।
इस पर मर्दों का क्या कहना है फिलहाल इसे साइड में रखिए। मज़ेदार बात सुनिए कि जब स्त्रियां इस विषय में ‘हम’ कहकर बात करती हैं, जैसे कि हम दुर्बल, कमज़ोर, अबला वगैरह नहीं, तो बस अपने बारे में ही बात कर रही होती हैं। उन औरतों से कोई मतलब नहीं होता जिनके लिए एक दिन का मेट्रो, बस का किराया बचा लेना एक किताब कॉपी ज़्यादा खरीद लेना है। अकेली कमाने वाली लड़की है तो पिता की दवाई लाने में, एक दिन पनीर या चिकन खा लेने या मां को साथ फ़िल्म दिखा लाने के लिए अगर उसके पास पैसा बच जाएगा तो आप इस संतुष्टि, खुशी और जीवन-स्तर के सम्मानजनक होने के इस फायदे को तुरन्त महसूस नहीं कर सकतीं।
इसे समझने के लिए सामूहिकता में भरोसा करना होगा। सबके हित में यक़ीन करना होगा। देश सिर्फ आप अकेली के बेहतर होने से बेहतर नहीं होगा। मैंने सुनी हैं उन लड़कियों की कहानियां जो मायके मिलने जाना इसलिए बन्द कर देती हैं कि किराये भाड़े के पैसे कौन मांगे और डांट खाए। जो अफोर्ड कर सकते हैं उनको शायद हवाई जहाज़ की यात्रा मुफ्त हो जाने से प्रत्यक्ष फायदा दिखता। इसलिए आप दे सकतीं हैं मेट्रो, बस का किराया, अगर उसमें चलती भी होंगी, तो शौक से दीजिए।
अब मर्दों की बात। यातायात शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं अगर किसी देश में बेहद सस्ती या कमज़ोर वर्गों के लिए मुफ्त हो जाएं तो उससे बेहतर कुछ नहीं। इसलिए समूह हित में लिए फैसलों का स्वागत कीजिए। एक से अनेक की राह खुलती है। सम्वेदनशील होना सीखेंगे तो जेण्डर के साथ बाक़ी तमाम असमानताओं से विचलित होंगे। नागरिक अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक होंगे। सबके प्रति असंवेदनशीलता को बर्दाश्त नहीं करेंगे। अंततः एक बेहतर उन्नत समाज बना सकेंगे।
चुनावी स्टंट? इनकार नहीं किया जा सकता। सब खेलते हैं चुनावी स्टंट। देखिए, जनता का फायदा किसमें है। अगर भरोसा और प्यार फैलाकर चुनावी स्टंट खेला जा रहा है तो स्वागत। इसमें धोखा मिले तो आलोचना के लिए भी तैयार रहिए। अगर चुनावी स्टंट धोखा, विभाजन और नफरत है तो यह भी आपको साफ़ दिखना चाहिए। तब अपनी पसंद की पार्टी का चश्मा लगाकर कानों में हेडफोन नहीं ठूंस लेने चाहिए।
सेफ्टी और किराया? हां। भरोसा और आश्वस्ति। बड़ी ज़रूरी है आश्वस्ति एक मनुष्य के सेफ और रेस्पेक्टेड फील करने के लिए। आप सीसीटीवी की भी मांग कीजिए। टाइम इज़ मनी कहते हैं, मनी इज़ सेफ्टी भी मानते होंगे! नहीं! वैसे मेट्रो ने जवाब में कहा है कि अभी 30 परसेंट हैं फीमेल यात्री और फ्री सफर देने के बाद इसमें 40 से 50 फीसद इजाफा होगा। 50 फीसद औरतें बसों और मेट्रो में? जितनी ज्यादा औरतें होंगी उतना सेफ होगा। मैं मांग करती हूं कि लोकल ट्रांसपोर्ट देश भर में महिलाओं के लिए मुफ्त किया जाए।