मानवाधिकार जन निगरानी समिति के डॉ. लेनिन और ह्यूमन राइट्स लीगल नेटवर्क की अनुराधा द्वारा 1 मार्च को वाराणसी में सीवर लाइन में हुए दो सफाई कर्मियों की दर्दनाक मौत पर दाखिल जनहित याचिका पर न्यायमूर्ति श्री पीकेएस बघेल और न्यायमूर्ति श्री पंकज भाटिया की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को आदेशित किया है कि मौत की परिस्थितियों पर हलफनामा प्रस्तुत करे और यह बतावे कि मैन्युअल सकेंवेनजिंग एक्ट (The Prohibition of Employment as Manual Scavengers and their Rehabilitation Act 2013) के प्राविधानों की तरह सीवर कार्य मे मशीनों का प्रयोग क्यों नहीं किया गया और सफाईकर्मी को सुरक्षा उपकरण क्यों नहीं उपलब्ध कराए गए।
याचीगण की तरफ से के के राय और चार्ली प्रकाश, सरकार की तरफ से ए के गोयल , एलएंडटी की तरफ से अनिल सिंह , जल निगम की तरफ से प्रांजल मेहरोत्रा प्रस्तुत हुए।
याची गण के अनुसार एक मार्च को नगर निगम के संविदा सफ़ाई कर्मचारी चंदन और राकेश को पांडेपुर इलाके में 20 फुट गहरे सीवर में उतारा गया जहां जहरीली गैस से उनकी जान चली गयी । नियमानुसार सीवर कार्य मे लगे कर्मचारियों को सेफ्टी बेल्ट, ऑक्सिजन मास्क, दस्ताना, जैकेट, चमड़े के जूते दिए जाना अनिवार्य है क्योंकि सीवर में कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, सल्फर डाइऑक्साइड आदि जानलेवा गैस होती है।
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याचीगण के आंकड़े देकर बताया कि पूरे देश के 11 राज्यो में पिछले एक साल में 97 सफाई कर्मी सीवर में अपनी जान गवा चुके हैं जिसमे सबसे ज्यादा मौत यूपी में हुई है। 2016 में देशभर में कुल 172 और 2017 में 172 मौते सीवर के अंदर जहरीली गैस से हो चुकी है ।
याचीगण का कहना है कि पिछले पाँच साल से वरुणा क्षेत्र में सीवर लाइन का काम चल रहा है।
सीवर का काम नगर निगम और जल निगम के अंतर्गत गंगा प्रदूषण नियंत्रण इकाई द्वारा संचालित है जिसका ठेका विख्यात एलएंडटी कम्पनी को है जो अपना काम स्थानीय ठेकेदारों से करवा रही है जिनको इस काम का कोई अनुभव नहीं है और जो दुर्घटना के बाद बचाव न कर वहां से भाग खड़े हुए।
याचीगण के अनुसार पिछले कुछ साल में वाराणसी में 6 से ज्यादा सफाईकर्मी इस तरह जान गंवा चुके हैं। याचिका की अगली सुनवाई 3 मई को होगी ।