अमन कुमार / बुढनी से लौटकर
मध्य प्रदेश का दंगल अपने आखिरी पड़ाव पर पहुंच चुका है। ज़ोर आज़माइश का वक्त गया। आज शाम प्रचार की समय सीमा समाप्त हो गई और दो दिन बाद सभी प्रत्याशियों की किस्मत ईवीएम मशीनों में कैद हो जाएगी। इस दंगल का सबसे बड़ा मुकाबला लड़ा जा रहा है सीहोर जिले की बुढनी विधानसभा सीट पर। सभी की नजर बुढनी सीट पर है कि यहां क्या होगा! वजह यह है कि यहां मुकाबला लड़ रहे हैं प्रदेश की राजनीति के दो बड़े दिग्गज। सूबे के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अरुण यादव।
सीहोर जिले की बुढनी विधानसभा सीट शिवराज सिंह का घर है, वहीं कांग्रेस ने अरुण यादव को शिवराज की घेरेबंदी के लिए बुढनी से प्रत्याशी बनाया है। शिवराज और अरुण यादव दोनों ही ओबीसी से आते हैं और यहां से जीतकर दोनों ही ओबीसी पर अपनी पकड़ मजबूत करना चाहते हैं। शिवराज को घरेलू सीट होने का फायदा तो मिल रहा है, लेकिन पहले जैसा माहौल नहीं रहा कि वे यहां से एकतरफा जीत का दावा कर सकें। शिवराज के खिलाफ बढ़ते अविश्वास का आलम यह है कि प्रचार के दौरान उनकी पत्नी साधना सिंह और बेटे कार्तिकेय को लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। यहां की जनता में नाराजगी होने के बाद भी शिवराज को भरोसा है कि वे अपने घर में वोटर को मना लेंगे।
सकलनपुर के रमेश का कहना है- ‘मुख्यमंत्री की घरेलू सीट होने का लाभ बुढनी को नहीं मिला, जितना काम होना चाहिए उतना नहीं हुआ। फिर भी अरुण यादव को वोट देने का कोई मतलब नहीं है। जीतेंगे तो शिवराज ही। वे सबके लिए मामा हो सकते हैं, लेकिन हमारे लिए शिवराज भैया हैं।’ अगर अरुण यादव यहां से जीतते हैं तो प्रदेश की राजनीति में उनका कद बढ़ जाएगा और वे कांग्रेस से मुख्यमंत्री पद के दावेदार हो जाएंगे।
बुढनी के हिसाब से देखा जाए, तो अरुण यादव यहां के लिए बाहरी हैं। दूसरी बात, कांग्रेस ने अरुण यादव को यहां के लोकल लीडर की कीमत पर खड़ा किया है, जो पिछले दो साल से अपने पक्ष में माहौल बना रहा था। शिवराज के मुकाबले अरुण नए हैं, लेकिन उनका बैकग्राउंड राजनीतिक रहा है। अरुण दो बार खरगोन से सांसद और केंद्र में मंत्री रहे प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री के बेटे हैं। वहीं वे खुद चुनाव से कुछ महीने पहले तक कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। अरुण यादव को शिवराज के सामने खड़ा करने का कारण अभी तक लोगों को समझ नहीं आ रहा है। लोगों का कहना है कांग्रेस ने अरुण यादव को बलि का बकरा बनाया है, जबकि कांग्रेस-पदाधिकारियों का कहना है कि ऐसा नहीं है।
इसका सबसे सटीक जवाब दिग्विजय सिंह देते हैं। वे कहते हैं- ‘अरुण को बलि का बकरा नहीं बनाया गया है, शिवराज भी मेरे खिलाफ राघोगढ़ में चुनाव लड़कर हार गया था। उसके बाद देखिए, शिवराज 13 साल से मुख्यमंत्री है।’
बुढनी सीट के जातिगत समीकरणों पर नजर डालें, तो यहां यादव 35 हजार, किरार(चौहान) 30 हजार, ब्राह्मण, दलित, मुस्लिम और कुछ आदिवासी यहां निर्णायक भूमिका में हैं। मुकाबला हालांकि यादव बनाम चौहान का है, जिसमें दोनों ही पक्ष अपनी जाति के वोटर को अपना वोट मानकर ब्राह्मण और दलित वोट पर डोरे डाल रहे हैं, जबकि मुस्लिम वोटों पर भाजपा का दावा नहीं है। वो इसकी भरपाई पंजाबी-सिंधी वोटर से पूरी करने में जुटी है। पिछ्ली बार के चुनाव पर नजर डालें, तो पिछ्ली बार इस सीट पर शिवराज के सामने कांग्रेस ने महेंद्र सिंह चौहान को उतारा था, जो इस समय भोपाल की नरेला विधानसभा से प्रत्याशी हैं। महेंद्र चौहान बुढनी के लिए अनजान और नया चेहरा थे। चौहान बनाम चौहान की लड़ाई शिवराज एकतरफा 84 हजार के लगभग वोटों से जीते। इस बार नहीं लगता कि वे ऐसा कर पाएंगे।
वोटर के मूड के हिसाब से देखा जाए तो चौहान जहां शिवराज के पक्ष में लामबन्द हैं, वहीं यादवों का पलड़ा अरुण की तरफ झुका हुआ है। ऐसे में ब्राह्मण और दलित-मुसलमान निर्णायक की भूमिका में हैं। ब्राह्मण दो फाड़ की स्थिति का सामना कर रहा है, वहीं कांग्रेस को उम्मीद है कि उसका कोर वोटर (दलित और मुस्लिम) कोई और विकल्प न होने की स्थिति में लामबन्द होकर उसके ही पक्ष में वोट करेगा जिसके सहारे वह शिवराज का किला जीतने की कोशिश कर रही है।
अब जब बुढनी के अखाड़े को कांग्रेस ने यादव बनाम चौहान में बदल दिया है, तो शिवराज को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। पहले जो शिवराज के नाम की माला जपता था, वो अब शिवराज की कमियां बताने लगा है। बुढनी से दो किलोमीटर दूर है बुढनी घाट जहां से नर्मदा निकलती है। वहां पर लगभग 100 के करीब ट्रक डंपर खड़े हैं। पूछने पर कोई भी बताने को तैयार नहीं है कि ये ट्रक किसके हैं। वहीं घाट के थोड़ा-सा पहले चाय की दुकान वाले एक दुकानदार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यहां पर जितने ट्रक खडे हैं वे सब शिवराज के परिवार या उनके समर्थकों के हैं। उसका कहना है कि पूरा घाट खाली कर दिया गया है। मामा ने उनको मामू बना दिया है।
शिवराज और भाजपा अपने 13 साल के कामों का खूब ढोल बजा रहे हैं, लेकिन जब हक़ीक़त जानने की कोशिश की तो वास्तविकता कुछ और निकल कर आई। पूरे प्रदेश की तरह बुढनी में भी रोजगार, पानी और सड़क जैसी बुनियादी समस्याओं पर काम करने की जरूरत है। बुढनी से होशंगाबाद की तरफ जाने वाली सड़क पर फ्लाईओवर के नीचे कुछ घर बने हुए हैं। इन घरों के बाहर पानी के कुछ कुप्पे रखे हुए हैं, जो इस इन्तजार में हैं कि पानी कब आएगा। नत्थू का कहना है कि पानी की ये मारामारी रोज का हाल है।
पतालपुर गांव की तरफ जाने वाली सड़क मामा की अमरीका वाली सड़कों की पोल खोलती है। सूबे का मुख्यमंत्री यहां का निवासी हैं, लेकिन यहां के लोगों को कोई खास फायदा नहीं हुआ है। शिवराज के 13 साल के शासन के बाद बुढनी में रोजगार के लिए केवल दो धागा फैक्ट्रियां (वर्धमान टेक्सटाइल और ट्राईडेंट ग्रुप ऑफ़ टेक्सटाइल) हैं, जिनमें बीस हजार के लगभग लोग काम करते हैं। इसमें बुढनी के लोग तीन हजार के आसपास हैं, बाकी उत्तर-प्रदेश और बिहार से आए हुए लोग हैं। लोगों में इस बात को लेकर भी नाराजगी है कि सभी संसाधन हमारे और रोजगार बाहर वालों को।
यहां के अधिकांश लोगों को धागा फैक्ट्री और खनन में लगने वाले मानव श्रम के जरिए रोजगार मिलता है। इन दोनों ही कामों पर शिवराज के परिवार और समर्थकों का कब्जा है। जिन लोगों को रोजगार का काम मिला भी है, वो ठेकेदारी आधारित है, जो अस्थायी श्रेणी का रोजगार है। इस तरह काम करने वालों को नौ हजार रुपए देकर रोज़ 12 से 15 घण्टे काम कराया जाता है।
वर्धमान गांव के रहने वाले संजय का कहना है- ‘रोजगार का वादा कर के हमारे गांव की जमीन का सौदा किया गया। हमसे कहा गया था कि सबको रोजगार दिया जाएगा, लेकिन शिवराज का यह वादा भी झूठा निकला। रोजगार के नाम पर मजदूरी या उससे मिलता-जुलता काम यहां के लोगों से कराया जाता है और जो मलाईदार काम है, वो बाहर के लोगों से कराया जाता है।’
खुद शिवराज के गांव जैत को जाने वाली सड़क का हाल बाकी सड़कों से कोई जुदा नहीं है। बुढनी से जैत के बीच की दूरी 30 किमी के आसपास है, जिसमें से लगभग 5 किमी का सफ़र पैदल चलकर या किसी डग्गा वाहन से पूरा करना होता है। गांव तक पहुँचने के लिए कोई साधन नहीं है। इसके जवाब में एक लड़का कहता है- “हमारे आने-जाने के लिए मुख्यमंत्री ने एक हेलीकाप्टर रखा हुआ है।”