शिवाजी राय
एक बार फिर गुजरातियों द्वारा पुरबिया मजदूरों पर हमला कर पुरानी यादें ताज़ा कर दी गयी हैं। कभी महाराष्ट्र, कभी पंजाब, कभी दिल्ली जैसे राज्यों से पुरबियों को अतीत में भगाया गया है। इस बार जो बहाना गुजरातियों ने भगाने के लिए ढूँढा वह बहुत ही निंदनीय है। लड़कियों और महिलाओं पर जो घटनाएं घट रही हैं वह पूरे देश के लिए एक चिंता का विषय तो है ही और इसकी जितनी भी निंदा की जाए कम है, परन्तु उस घटना की आड़ में जो पुरबिया लोगों पर सामूहिक रूप से आरोप लगाकर जिस तरह से उनकी पिटाई की और मार-मार कर ट्रेनों और बसों में ठूस कर वहां से भगाया जा रहा है इसमें सरकारी तंत्र व गुजरात सरकार की बड़ी भूमिका है।
यह ठीक बात है कि भारत के नागरिक होने के नाते हर व्यक्ति का यह हक बनता है कि देश के किसी भी कोने में रोजी-रोटी कमाए और सुख चैन से जीवन व्यतीत करे लेकिन ये घटनाएं सामान्य प्रक्रिया के तहत नहीं हैं। इसके पीछे देश-प्रदेश की सरकारों तथा उद्योगपति वर्गों का मिला-जुला खेल है और सबसे बड़ा मुनाफे का मामला है। पूंजीपतियों की मुनाफाखोरी समाज के किसी भी हिस्से को या पूरे समाज के ताने बाने तथा उसकी संस्कृति को छिन्न-भिन्न करने में कोई कसर नहीं छोडती है। पूँजीपति वर्गों द्वारा समय-समय पर जो व्यापारिक खेल होता है वह सामान्य तबके के लोगो को एक छोर से दूसरे छोर मजदूर बनाकर भगाते रहता है जिसमें सस्ते मजदूर के रूप में बड़ी संख्या में आसानी से ज्यादा से ज्यादा समय काम करने के लिए एक बड़ा वर्ग उनके कब्जे में बना रहता है। इसके लिए निश्चित ही व्यापारिक केन्द्रों को एक जगह से दूसरी जगह स्थापित करते रहते हैं जो कि प्रांतीय और केंद्रीय सरकार के सहयोग के बिना संभव नहीं है। जिसके लिए जरूरी है कि स्थापित संसाधनों को ध्वस्त कर दिया जाए तथा जातीय धार्मिक क्षेत्रीय एवं सामाजिक झगडे पैदा कर दिया जाएं तथा पूरे लोकतान्त्रिक ढाँचे को कमजोर करके वोट प्राप्त करने की सरलयुक्ति तलाश की जाए ताकि आसानी से सत्ता हासिल की जा सके।
हम बहुत पीछे नहीं जाना चाहते लेकिन यह कह सकते हैं कि जिन पुरबिया लोगों पर हमले हो रहे हैं या हुए हैं अगर उनका इतिहास देखें तो कभी जो इलाका अन्न उत्पादन से लेकर कृषि आधारित उद्योगों तथा लघु उद्योगों के व्यापारिक केन्द्रों से भरा पड़ा था उसे तीसों वर्ष पहले नई आर्थिक नीति के तहत नष्ट कर दिया गया और उन क्षेत्रों को धार्मिक एवं जातीय झगड़ो का अखाडा बना दिया गया। जनता का दिमाग उनके वास्तविक मुद्दों से इतनी दूर हटा दिया गया जिसके कारण वहां गरीबी, भुखमरी, कुपोषण, अशिक्षा व्याप्त हो गयी और यहां के 15-16 वर्ष की आयु से लेकर 25-30 की आयु के नौजवानों को क्षेत्र छोड़कर देश के कोने-कोने में हज़ारों किलोमीटर दूर जाकर मामूली सी मजदूरी के लिए अपना अधिकतम समय एवं श्रम जाया करना पड़ता है। निश्चित ही उस समय और श्रम की भागीदारी में देश का निर्माण तो हुआ लेकिन उन मजदूरों के हिस्से में हराम की कमाई खाने वालों की गालियाँ व फटकार डंडे की मार और उपेक्षाएं आईं। गुजरात की उपर्युक्त घटना में बिहार व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्रियों द्वारा जो गैर जिम्मेदाराना भूमिका निभाई गई वह बहुत ही अफ़सोसजनक है। यहां तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी से फोन पर बात कर पुरबिया मजदूरों को सांत्वना दे दी लेकिन हद तो तब हो गयी जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने गुजरात की सरकार और गुजरातियों द्वारा पुरबिये को रेपिस्ट कहने और मार पीट कर भगाए जाने के बावजूद उस सरकार के मुख्यमंत्री को उत्तर प्रदेश में बुलाकर बेशर्मी से स्वागत किया और कुछ छात्रों द्वारा गुजरात के मुख्यमंत्री को काले झंडे दिखा कर विरोध दर्ज करने पर उनकी गिरफ्तारी की गयी तथा विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा निलंबित करने तथा कार्यवाही करने की धमकियाँ भी दी गयीं। पुरबियों के वोट से संसद में चुनकर जाने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात की घटना पर न तो अफ़सोस जाहिर किया और न ही पुरबियों के प्रति सांत्वना जाहिर करते हुए एक शब्द ही कहा जिससे सच में पूरब के लोगो को महसूस हुआ कि हम लोग बुरी तरह से ठगे जा चुके हैं।
यदि हम दूसरे पक्ष की बात करें तो यहाँ के लोगों की रोजी रोटी शिक्षा स्वास्थ की जिम्मेदारी यहाँ की चुनी हुई सरकार की ही बनती है लेकिन हम उत्तर प्रदेश को देखें तो सत्ताईस वर्षो से आज़ादी के पहले व आज़ादी के बाद स्थापित गोरखपुर का खाद कारखाना, बनारस का साडी उद्योग, गोरखपुर और मऊ का हथकरघा उद्योग, टांडा का कपडा उद्योग, चीनी मिलें (देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, बहराइच, फैजाबाद, बलरामपुर, लखीमपुर, संतकबीरनगर गोरखपुर, गाजीपुर, बलिया) इन सभी जिलों की शुगर मिलें धीरे-धीरे कल्याण सिंह से लेकर मुलायम-मायावती ने साजिश के तहत बंद कर दीं और बेच दीं। उत्तर प्रदेश का बड़ा भूभाग 9 करोड़ से ज्यादा आबादी का क्षेत्र उजाड़ और वीरान हो गया। देश के कोने कोने में विकास की चर्चा हुई। शहरों को हाईटेक सिटी, आईटी हब, हर क्षेत्र की वर्ल्डक्लास यूनिवर्सिटी खोलने का दावा, बुलेटट्रेन चलाने और हाई स्पीड गाड़ियों को दौड़ाकर चाँद सितारों तक ले जाने का सपना दिखाया गया लेकिन हमारे प्रधानमंत्री जिन्होंने काशी को क्योटो बनाने का सपना दिखाया, वह काशी अपने को ठगा महसूस कर रही है और अपनी दशा पर रो रही है। जिस गाँव को प्रधानमंत्री ने गोद लिया वह गाँव विकास की राह तलाश रहा है। जिस मुख्यमंत्री ने पूर्वांचल को पुन्यांचल राज्य बनाने का सपना दिखाया वह गाय गोबर कुंभ के मेले में हज़ारो करोड़ रुपये पानी की तरह बहा रहा है तथा देश के कारोबारियों को बुलाकर यहाँ की गरीब जनता की गाढ़ी कमाई से लाल कालीन बिछाकर सैकड़ों करोड़ रूपये खर्च करके स्वागत कर रहा है।
उत्तर प्रदेश के नौजवानों को वे यह कह कर दुत्कारते हैं कि उत्तर प्रदेश में रोजगार की कमी नहीं बल्कि यहां कोई योग्य युवा ही नहीं है। यहाँ के युवाओं को पूछना चाहिए की यही अयोग्य युवा पूरे देश में छोटे से लेकर बड़े उद्योगों में अपने हुनर से देश के निर्माण कार्य में लगा हुआ है। सच तो यह है कि मठ मंदिर चलाने वाले लोगों में किसान-मजदूर नौजवान, छात्र, महिलाओं के दुःख दर्द को और उनकी पीड़ा को एवं उनकी भावनाओं को समझने की समझ नहीं है या तो वे इतने संवेदनहीन हैं कि उन्हें झगड़े फसाद से इतर कोई चीज़ नहीं सूझती। उत्तर प्रदेश के चार हिस्सों को आकड़ों में देखे तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश की प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष आय 50,000 रुपये, मध्य उत्तर प्रदेश की प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष आय 36,000, बुंदेलखंड की 32,500 और पूर्वांचल की 25,000 रूपये है। पूर्वांचल की आबादी 9 करोड़ है जो 2021 तक 11 करोड़ हो जाएगी जो उत्तर प्रदेश की आबादी की 40% से अधिक पड़ती है। उत्तर प्रदेश से पलायन 2 करोड़ 36 लाख है जिसमें अकेले पूर्वांचल से पलायन 1 करोड़ 42 लाख है जो कुल पलायित संख्या का लगभग 60% है।
इतनी बड़ी संख्या में पलायित मजदूर भारत के कोने-कोने में तथा अरब अमीरात में मामूली मजदूरी पर अधिकतम श्रम तथा अधिकतम समय देते हैं जिससे भारत में यदि विदेशी मुद्रा का भंडारण है तो इन्हीं मजदूरों द्वारा है। जो विदेश में जाकर श्रम देते है वहां पर भी उनकी स्थिति बहुत खराब है और इनकी संख्या लाखों में है जबकि प्रधानमंत्री अमेरिका के एनआरआई गुजरातियों के बीच जाकर नाचते हैं और उनके द्वारा आए डॉलर की चर्चा करते हैं लेकिन अरब अमीरात में अत्यधिक मेहनत करके अपनी रोजी रोटी कमाने वाले, भारत में विदेशी मुद्रा का भण्डार इकट्ठा करने वालों की खोज खबर ही नहीं ली जाती। उनके साथ आज़ादी के पहले जो गिरमिटिया मजदूर थे उनकी तरह व्यवहार किया जाता है। इन तमाम तरह के सौतेले व्यवहार के कारण 9 करोड़ की आबादी का यह भूभाग बिलकुल आज अभिशप्त सा है। कुल 150 विधायक तथा 30 सांसद भेजने वाला यह इलाका बुनियादी आवश्यकताओं से लेकर विकास की सभी प्रक्रिया तक वंचित रह गया है।
इस हालात में पूर्वांचल के विकास की जिम्मेदारी तथा बेरोजगारी, कुपोषण, अशिक्षा, खेती किसानी की दुर्दशा एवं स्वास्थ्य की समस्याएं, सामाजिक असमानता तथा पलायन से निजात पाने तथा वर्षो से शासकवर्गों द्वारा नष्ट किये गए रोजगार तथा उत्पादन के साधनों को पुनः स्थापित करने हेतु जो समय-समय पर पूर्वांचल राज्य के गठन करने की मांग उठती रही है, अब उसका सही समय आ गया है। पूर्वांचल राज्य के लिए पूर्वांचल स्वराज आन्दोलन के साथ पूर्वांचल के सहयोगियों, पूर्वांचल मुक्ति मोर्चा एवं जो भी संगठन पूर्वांचल की बात करते हैं या लड़ाई में भागीदार हैं, उनको एकत्रित करने तथा पूर्वांचल के बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, नौजवानों, छात्रोंख् महिलाओं, हर क्षेत्र में काम कर रहे मजदूरों, कर्मचारी संगठनों, जनप्रतिनिधियों, गैर सरकारी संगठनों, समाजसेवियों, पर्यावरणविदों, अर्थशास्त्रियों एवं तमाम लोग जो इस क्षेत्र से बाहर जाकर देश की प्रगति में योगदान दे रहे हैं, उनके अनुभवों से पूर्वांचल के विकास के लिए एक विशेष माडल विकसित करने के लिए पूर्वांचल राज्य के गठन के लिए उपरोक्त सभी को संगठित कर एक विशेष अभियान के तहत उन सभी जिलों में बैठक परिचर्चा, परचा वितरण तथा इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया के माध्यम से पूर्वांचल स्वराज आन्दोलन के साथियों का दौरा नियमित रूप से जारी है।
पूर्व सांसद विश्वनाथ गहमरी जैसे लोगों ने संसद में पूर्वान्चल की पुरजोर मांग की थी। अब तो ऐसा कोई कारण ही नहीं बनता कि पूर्वांचल का गठन न हो। इस देश में जनता के वोटों के द्वारा बनने वाली सरकार कहने के लिए लोकतांत्रिक होती है लेकिन इनकी हठधर्मिता, जनता की आवाज न सुनने की आदत, गरीब मजदूर किसानों तथा आम आवाम के पक्ष में बात करना परन्तु हक में निर्णय न लेने की आदत, न्याय की बात करना परन्तु न्याय न करने की आदत, साथ ही जनता के वोट से प्राप्त सत्ता की ताकत द्वारा शासकों के अन्दर एक तानाशाह पैदा होने के कारण सामान्य व् सरल तरीके से जनता की अपील पर ध्यान न देने की आदत, ने जनता को आन्दोलन के लिए मजबूर कर दिया है।
आम जनता द्वारा जान की कुरबानी दिए बिना राज्य निर्माण का कार्य पूरा नहीं हुआ है इसलिए कहा जा सकता है कि पूर्वांचल की जनता को लड़ाई के लिए आगे आना होगा। इसके लिए जो संगठन के लोग पूर्वांचल के निर्माण के लिए लड़ रहे हैं उसमें मुसाफिर यादव, जनार्दन शाही. मनोज सिंह और हर जिले से संगठनों के प्रतिनिधि संपर्क में हैं। इन गतिविधियों से पता चलता है कि 2019 के चुनाव में पूर्वांचल की जनता का वोट लेने के लिए सभी दलों को पूर्वांचल का गठन मुख्य मुद्दा बनाना पड़ेगा। पूर्वांचल के दौरे से यह भी बात उभर कर आई है कि जो दल पूर्वांचल राज्य के गठन को अपने घोषणापत्र में शामिल नही करेगा उसके वोट का बॉयकाट किया जायेगा। उम्मीद है कि खुद यहां की जनता भी पूर्वांचल के गठन में वोट को साधन बनाने से नहीं चूकेगी।